देश के विभिन्न पंचांगो का एकमत 15 जनवरी को ही ज्योतिष शास्त्र की गणना के अनुसार दिन के 12 बजे तक बीतेगा पुण्यकाल।
डीएनबी भारत डेस्क
वैसे तो यहां अवधारणा बन गई थी कि 14 जनवरी को ही तिलसंक्रान्ति या मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। परंतु पिछले कई वर्षों से 14 और 15 जनवरी को लेकर विभिन्न पंचांगों में मतभेद के कारण आम लोगों में उहाफोह कई स्थिति बन रही है। लेकिन इस वर्ष ज्योतिष गणना के अनुसार स्पष्ट है कि मकर संक्रांति पूरे देश मे 15 जनवरी को ही मनाया जायेग।
ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री कहते है कि संक्रांति का अर्थ सूर्य का एक राशि से दूसरे राशि मे प्रेवेश करना है जिसे अंग्रेजी के दिनांक से कोई लेना देना नहीं है। तिलसंक्रांति सूर्य के धनुराशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है, सूर्य अपनी गति एक अंश प्रति दिन के हिसाब से चलते है और 30 अंश पर राशि परिवर्तित करते है जो संक्रांति कहलाता है। 14 जनवरी 2023 को रात्रि 2 बजकर 30 मिंट 36 सकेंड पर सूर्य धनु राशि से मकर राशि मे प्रवेश करेंगे यानी संक्रांति होगा।
क्या कहते है ज्योतिष ग्रंथ
ज्योतिषशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ मुहूर्तचिंतामणि के संक्रांति प्रकरण के अनुसार अगर मकर की संक्रांति अर्धरात्रि के बाद हो तो दूसरे दिन के पूर्वार्ध में पुण्यकाल रहता है अर्थात मकर संक्रांति संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी 2023 को प्रातः 6:45 से दिन के 12 बजे तक रहेगा।
“निशिथतो अवार्गपरत्र संक्रमे पूर्वापराहन्तिमपूर्वभागयो”
“पूर्व परस्तात यदि याम्यसौम्यायने दिने पूर्वपरे तु पुण्ये”
क्या है ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री कहते हैं कि शास्त्रों के अनुसार सूर्य एक राशि सिंह है एवं शनि की राशि मकर और कुंभ है। सूर्य एवं शनि नैसर्गिक मैत्री चक्र के अनुसार परस्पर शत्रु है।सूर्य का शत्रु राशि मे प्रवेश करना मकर संक्रांति के ज्योतिषीय महत्व को बढ़ा देता है।
क्या करें मकर संक्रांति पर
मकर संक्रांति के पुण्य काल बीतने के समय अर्थात 15 जनवरी प्रातः सूर्योदय से 12 बजे के बीच तिल मिश्रित जल से स्नान करें, तिल का उबटन लगावे,तिल को जला कर आग का सेवन करें, तिल दान करें एवं तिल के बने पदार्थो का भोजन करें। साथ ही मकर की संक्रांति पर मिश्रित अनाज अर्थात खिचड़ी का दान एवं भोजन अवश्य ही करना चाहिए। तिल का उपयोग, मिश्रित अनाज का दान एवं भोजन शनि ग्रह की शांति एवं समृद्धि को देने वाला होता है।
मकर संक्रांति पर नदी तालाब जलाशय गंगा आदि पूण्य स्थानों पर स्नान करना चाहिए। लोकश्रुति के अनुसार “ग्रहने काशी मकर प्रयाग” अर्थात मकर राशि में जब सूर्य रहे तो प्रयाग के तट पर सात्विक जीवन यापन करते हुये नित्य संगम में स्नान करना चाहिए। साधु संतों के अलावे अपाहिज अंग भंग से हीन व्यक्तियों को अन्न वस्त्र आदि का विशेष रूप से दान करना लाभकारी होता है क्योंकि सेवक,भिखारी,दास, अपाहिज ये सभी शनि का ही स्वरूप है।
14 एवं 15 जनवरी के संसय को लेकर इतिहास शिक्षिका मधु कुमारी कहती है कि भारत के प्रशिद्ध दार्शनिक संत स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था।ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार 1863 की मकर संक्रांति 12 जनवरी को ही हुआ था और स्वामी विवेकानंद का जन्म मकर सक्रांति के ही पूण्य तिथि पर हुआ था। म यानी आज से 150 वर्ष पूर्व मकर संक्रांति अंग्रेजी के 12 जनवरी को हुआ और अब 14 से 15 हो रहा है इसमें किसी प्रकार के तर्क वितर्क की आवश्यकता नही है।
क्या कहते है विभिन्न पञ्चाङ्ग
काशी एवं मिथिला के पंचांग में बार-बार विभेद देखने को मिलता है जिस कारण व्रत एवं त्यौहार ओं के निर्णय में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है परंतु मकर संक्रांति एवं उनके पुण्य काल को लेकर विभिन्न पंचांगों में एकरूपता देखने को मिलती है। वाराणसी से प्रकाशित ऋषिकेश पंचांग कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय पंचांग वैदेही पंचांग विद्यापति पंचांग एवं मैथिली पंचांग में एकमत से 14 जनवरी को अर्धरात्रि के बाद संक्रांति एवं उसका पुण्य काल वह मकर संक्रांति त्योहार 15 जनवरी को ही मनाने का निर्णय दिया है।