14वीं शताब्दी में की गई थी ‘थावे मंदिर’ की स्थापना, आज तक नहीं बदला गया प्राचीन गर्भगृह

थावे वाली मां को कामाख्या, सिंहाशिनी देवी और रहशू भवानी के नाम से भी जानते हैं लोग। एक राजा के घमंड का किया था अंत, राज्य भी हो गया था बर्बाद। गोपालगंज से 6 किलोमीटर दूर अवस्थित है मां का यह प्राचीन मंदिर

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थावे वाली मां को कामाख्या, सिंहाशिनी देवी और रहशू भवानी के नाम से भी जानते हैं लोग। एक राजा के घमंड का किया था अंत, राज्य भी हो गया था बर्बाद। गोपालगंज से 6 किलोमीटर दूर अवस्थित है मां का यह प्राचीन मंदिर

डीएनबी भारत डेस्क

बिहार की राजधानी पटना से करीब 150 किलोमीटर दूर गोपालगंज जिले के जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर हटकर एक मंदिर है थावे मंदिर। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में किया गया था जब मां दुर्गा असम से चलकर यहां आई थी। यह देश के 52 शक्तिपीठों के समान ही है। इस मंदिर के बीचोबीच एक रहस्यमई पेड़ है जिसके वानस्पतिक परिवार का अभी तक पहचान नहीं किया जा सका है। यहां मनोकामना मांगने वाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस मंदिर को थावे वाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां माता को कामाख्या वाली माता और सिंहासिनी देवी के रूप में भी जाना जाता है। यहां का मुख्य प्रसाद है पीड़किया।

 

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मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि यहां 14वीं शताब्दी में चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को माँ दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त मानते थे। एक बार अचानक राजा के राज्य में अकाल पड़ा। वहीं थावे में माता रानी की एक भक्त थी। अकाल के दौरान रहशू प्रतिदिन एक बाघ से मिलता था और मिल कर जब रहशु बाघ के पास से चलता तो अन्न निकलने लगता। एक और बात कही जाती है कि रहशू दिन में घास काटता और रात में उसी से अनाज निकलते। इसलिए वहां के लोगों को खाद्यान्न मिलने लगा। बात राजा तक पहुंच गई, लेकिन राजा को विश्वास नहीं हुआ। राजा ने रहशु का विरोध किया और उसे पाखंडी कहा और रहशु को अपनी मां को यहां बुलाने के लिए कहा। इस पर रहशु ने राजा से कहा कि यदि माता यहां आई तो वह राज्य का नाश कर देगी लेकिन उसे राजा नहीं माना। रहशु भगत के आह्वान पर, देवी माँ कामाख्या से चलकर पटना और सारण के अमी से होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंचीं। राजा की सभी इमारतें ढह गईं। तब राजा की मृत्यु हो गई।

मंदिर की महत्ता
वैसे तो इस मंदिर में हर दिन भीड़ लगता है लेकिन सप्ताह में दो दिन सोमवार और शुक्रवार को मां के दर्शन के लिए आम दिनों के अपेक्षा अधिक लोग जुटते हैं। इसके साथ ही यहां वर्ष में दो बार चैत्र नवरात्र और आश्विन नवरात्र में भारी भीड़ जुटती है और मेला लगता है। यहां नवरात्र के अष्टमी को पूजा की जाती है।

कहां है मंदिर 
यह मंदिर गोपालगंज सीवान राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोपालगंज से करीब 6 किलोमीटर दूर अवस्थित है। सीवान गोरखपुर लूप लाइन पर यहां एक रेलवे स्टेशन भी है थावे जंक्शन। यहां बिहार के किसी भी जिला से सीवान के रास्ते गोपालगंज पहुंचा जा सकता है जो कि गोपालगंज से मात्र 6 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर तीन तरफ से जंगलों से घिरा हुआ है। कहा जाता है कि इस मंदिर के गर्भगृह में आज तक कोई बदलाव नहीं किया गया। जैसा मंदिर पहली बार बनाया गया था आज भी वैसा ही है।

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