52 शक्तिपीठों में एक है मिथिला शक्तिपीठ, अब भी बरकरार है संशय

DNB Bharat Desk

डीएनबी भारत डेस्क 

नवरात्रि का आज दूसरा दिन है। आज के दिन लोग मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। नवरात्रि विशेष में आज हम आपको बताने जा रहे हैं 52 शक्तिपीठ में से एक मिथिला शक्तिपीठ के बारे में। कहा जाता है कि मिथिला शक्तिपीठ में माता सती का बायां कंधा गिरा था। हालांकि शक्तिपीठों के स्थान के बारे में अभी भी कई मतभेद हैं। मिथिला शक्तिपीठ को लेकर अभी तक तीन मंदिरों के बारे में दावा किया जाता है और तीनों ही मंदिरों में शक्तिपीठ की मान्यता के अनुसार ही पूजा अर्चना की जाती है।

कहां है मिथिला शक्तिपीठ

मिथिला शक्तिपीठ के स्थान के बारे में अब तक एकमत नहीं है। मिथिला शक्तिपीठ के बारे में कहा जाता है कि यह मधुबनी के उच्चैठ स्थान पर वनदुर्गा मंदिर है। वहीं एक अन्य मत के अनुसार मिथिला शक्तिपीठ बेगूसराय के जयमंगलागढ़ मंदिर है तो एक अन्य मत के अनुसार मिथिला शक्तिपीठ सहरसा का उग्रतारा मंदिर है।

उच्चैठ का वनदुर्गा मंदिर

यह मंदिर मधुबनी के उच्चैठ में स्थित है। इस मंदिर को वनदुर्गा मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में देवी की कंधे तक की ही प्रतिमा है और सर का भाग दिखाई नहीं देता है इसलिए इस मंदिर छिन्नमस्तिका मंदिर भी कहा जाता है। देवी भगवती की मूर्ति काले पत्थर पर बनी है। देवी मूर्ति की चार भुजाएं हैं।

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उच्चैठ मंदिर

इनके बाएं दो हाथों में कमल का फूल और गदा है तथा उसके नीचे बजरंगबली की मूर्ति है , इसी तरह दाहिने दो हाथों में चक्र और त्रिशूल तथा उसके नीचे देवी काली की मूर्ति, उसके नीचे मछली की आकृति तथा बाएं पैर में चक्र का चिह्न है। भगवती सिंह के ऊपर कमल की स्थिति में विराजमान हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि प्राचीन काल में कालिदास यहां कई वर्षों तक रहे थे और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति भी यहां हुई थी।

जयमंगलागढ़ मंदिर

जयमंगलागढ़ मंदिर बेगूसराय जिला में अवस्थित है। यहां लोग सिद्धि प्राप्ति के लिए आते हैं। देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक इस मंदिर को जागृत स्थल और सिद्ध शक्तिपीठ माना जाता है। कहा जाता है कि सती के स्कंद (कंधा) के गिरने की आवाज से झंकार उत्पन्न हुआ तो इस जगह पर गंधर्व पहुंच गए। जिसके बाद इस जगह पर गंधर्वों ने पूजा की थी तो यह स्थल शक्तिपीठ के साथ साथ सिद्धीपीठ के रुप में भी स्थापित हो गया।

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जयमंगलागढ़ मंदिर

मान्यता और सिद्धि प्राप्त करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण शारदीय नवरात्र में जिले ही नहीं बल्कि दूर-दूर से लोग यहां पर माता के दर्शन और पूजा करने के लिए भारी संख्या में जुटते हैं।

उग्रतारा मंदिर

उग्रतारा मंदिर सहरसा जिला के महिषी में अवस्थित है। इस प्राचीन मंदिर में भगवती तारा की मूर्ति बहुत पुरानी बताई जाती है और दूर-दूर से श्रद्धालु इसे देखने आते हैं। मुख्य देवी के दोनों ओर दो छोटी महिला देवता हैं जिन्हें लोग एकजटा और नील सरस्वती के रूप में पूजते हैं।

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उग्रातारा मंदिर

प्राचीन मान्यता के अनुसार कठिन साधना कर महर्षि वशिष्ठ द्वारा भगवती को प्रसन्न कर उन्हें सदेह यहां लाया गया था। कालांतर में शर्त भंग होने पर भगवती तारा पाषाण रूप में परिवर्तित हो गई। जिस कारण इन्हें वशिष्ठ अराधिता उग्रतारा भी कहा जाता है।

उपरोक्त तीनों मंदिर के बारे में दावा किया जाता है कि यहां माता सती का बायां कंधा गिरा था। तीनों मंदिरों के बारे में स्थानीय लोगों की अलग अलग धारणा है और लोग शक्तिपीठ मान कर वहां पूजा भी करते हैं। लेकिन अब तक मिथिला शक्तिपीठ का असली जगह के बारे में कोई ठोस सबूत नहीं है। वहीं तीनों ही मंदिरों में हर वर्ष श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है और लोग श्रद्धानुसार पूजा अर्चना भी करते हैं।

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