डीएनबी भारत डेस्क
लोक आस्था का चार दिवसीय महां पर्व छठ आज भी अपने आप में समाजवादी धाराओं को संजोए हुए है।यह पर्व पुंजी वाद, ऊंच,निच, जाती प्रथा,अगला पिछला,बाहुं बल,काला गोरा रंग भेद जैसे कट्टरता को सिरे से खारीज करते हुए आज भी अपने आप में अछून्न है। तभी तो रूढ़िवादी प्रमप्राओं को सदैव से दर किनार करते हुए यह पर्व सदीयो से सभी समुदायों के कुछ ना कुछ सहभागिता से हीं मनाया जाता है। लोकांतर में यह पर्व बिहार वासीयों का मुख्य पर्व था।

जो आज अपनी समाजवादी प्रमप्राओं के साथ बढ़ते बढ़ते हिंदुस्तान के अन्य राज्यों से विस्तार होते हुए वर्तमान समय में कयी विदेशी देसों में हर्षोल्लास के साथ भी मनाया जाने लगा है।जो पुंजी वाद, ऊंच निच, जाती प्रथा, अगला पिछला, आदि कट्टर वादी सोच को दरकिनार करते हुए समाज वादी व्यवस्था को आज भी जिवंता को दर्शाता है। इस पर्व के अवसर पर बाजारों में लोग विविध तरह के फल आदि खरिदा करते हैं। जो हिंदूओं के सभी जात धर्म के मानने वाले लोगों के अलावे मुस्लिम समुदाय के लोग भी बेचते हैं।खास बात तो यह है कि इस पर्व में बद्धी भी चढ़ाया जाता है।
जो मुस्लिम समुदाय के लोगों के द्वारा बनाया जाता है।सुप मल्लिक समुदाय के लोगों के द्वारा बनाए जाते हैं।लोक आस्था का यह महा पर्व नदीयो,तलावों,गंगा तटों के अलावे अपनी अपनी सहुलियत के हिसाब से लोग मनाते हैं। जहां सभी छठ व्रती महिलाएं एक कतार में पंक्ति बध खरे होकर भगवान भास्कर से प्रार्थना किया करते हैं।।लोक आस्था के इस चार दिवसीय महां पर्व में महिलाएं 36 घंटा निर्जला रहकर इर्सीया द्वेष से कोषों दुर रहते हुए सप्तमी को प्रातः कालीन अर्घ्य दान के साथ अपने अपने घरों में देवी, देवताओं को पुजा अर्चना करते हुए तत्पश्चात पारन करती हैं।
बेगूसराय वीरपुर संवाददाता गोपल्लव झा की रिपोर्ट