अष्टावक्र दलित – पीड़ित जीवन की है कहानी

राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के तीसरे दिन पहली प्रस्तुति कलर व्हील दरभंगा की रही। निर्देशक श्याम कुमार सहनी के निर्देशन में अष्टावक्र नाटक की प्रस्तुति की गयी। अष्टावक्र दलित-पीड़ित जीवन की कहानी है। अष्टावक्र अपनी बूढ़ी मां के साथ अंधेरी तथा बदबूदार कोठरी में रहता है। उसका शरीर टेढ़ा-मेढ़ा है, जो हिंडोले की तरह झूलता है। वह स्पष्ट बोल भी नहीं पाता है। एकमात्र उसकी मां उसका सहारा है।
वह खोमचा लगाता था, पर वह भी ठीक से बेच नहीं पाता है। वह गली-गली चाट लो चाट, आलू की चाट, पानी के बतासे कहकर बेचा करता था। कुछ दिनों के बाद मां को ज्वर चढ़ आया दो-तीन दिनों तक बीमार रहने के बाद वह चल बसी। अब उस कोठरी में एक कुल्फी वाला बूढ़ा आ बसा । कुल्फीवाले के पूछने पर उसने मां को पुकारा। कुल्फीवाले ने कहा, तुम्हारी मां मर गई है। मां के मरने की बात सुनकर उसे विश्वास हो गया कि अब उसकी मां नहीं आएगी।
उसी रात कुल्फी वाले ने उसे दर्द भरे स्वर मां-मां पुकारते सुना तो उसे अस्पताल में भर्ती करवा देता है, लेकिन क्रूर नियति उसे अपने साथ ले जाती है। इस अवसर पर मां के रूप में ईशा, अष्टावक्र के रूप में संदीप कुमार, कुल्फ़ीवाला सौरभ कुमार, डॉक्टर के रूप में मनोज कुमार और विकास कुमार ने अपने अभिनय से लोगों का दिल जीत लिया। वहीं दूसरी प्रस्तुति अभिरंग फाउंडेशन मुंबई की मेरा कुछ सामान रहा।
लेखक रवि कांत मिश्रा की रचना को निर्देशक फ़िल्म अभिनेता संजय पांडेय ने अपने साथ अभिनेता मनोज टाईगर के साथ लोगों को अपनी प्रस्तुति से गदगद कर दिया। पति – पत्नी के संबंधों पर आधारित कथानक में संजय पांडेय और उनकी पत्नी के रूप में उनकी धर्मपत्नी दीपा पांडेय ने जबरदस्त अभिनय से लोगों का दिल जीत लिया।
वहीं मनोज टाईगर और राजन कानू ने अपने चुटीले और मनोरंजक अंदाज में लोगों को बार- बार हंसने के लिए मजबूर कर दिया। निर्देशक ने आज के दौर में जहां रिश्ते बनते ही टूटने की कगार पे आ जाते हैं , एक दूसरे की कमियों और खूबियों को समझते हुए, ग़लतियों को नज़र अन्दाज़ करते हुए रिश्ते निभाने का सब्र कम होता जा रहा है और रिश्ते सीधे परिणाम पर पहुंच जाते हैं को दिखाने की कोशिश की। नाटक के नायक और नायिका अरुण और सुनीता की अरेंज मैरिज होती है, 12 साल तक रिश्ता किसी तरह खीच खांच के चलता है और एक दिन दोनों अलग होने का फ़ैसला करते हैं और एक साल तक अलग रहने के बाद वो दोनों कोर्ट में तलाक़ की अर्ज़ी देते हैं।
कोर्ट अलग होने से पहले उन्हें एक महीने और साथ रहने को कहता है और अगर एक महीने साथ रहने के बाद भी वो अलग होना चाहें तो उन्हें तलाक़ मिल जाएगा। दोनों को अपनी गलती का अहसास होता है और एक महीना पूरा होने से पहले ही दोनों साथ में घर छोड़ने का फ़ैसला करते है पर इस वादे के साथ कि वो इसी छत के नीचे मिलते रहेंगे, क्या पता इसी तरह मिलते- बिछड़ते, लड़ते – झगड़ते वो हमेशा के लिए मिल जायें के साथ नाटक समाप्त होता है। मंच अभिकल्पना मनीष शिर्के और प्रकाश परिकल्पना महेश विश्वकर्मा ने किया। पार्श्व संगीत अनीश सिंह और वेश भूषा विद्या विष्णु ने किया।
इसके पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन दी सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार सिंह धनकु, कला संस्कृति पदाधिकारी श्याम कुमार सहनी, पूर्व विधान पार्षद भूमिपाल राय, उपमुख्य पार्षद ऋषिकेश कुमार, जन संस्कृति मंच के दीपक सिंह, निओ कार्बन के राजकुमार सिंह राजू, अरुण प्रकाश द्वारा किया गया। मौके पर एसोसिएशन के अध्यक्ष अमर ज्योति, सचिव गणेश गौरव, मनीष कुमार, अंकित कुमार, रूपेश कुमार, शिव, राधे, जितेंद्र के द्वारा अतिथियों का सम्मान किया गया।
इस अवसर पर मिथिलांचल कला मंच बीहट के अशोक कुमार पासवान के निर्देशन में भिखारी ठाकुर कृत बारहमासा संगीत की प्रस्तुति निशु, कशिश, रुपाली सहित अन्य के द्वारा किया गया। वहीं आकाश गंगा के कलाकार आनंद कुमार, बलिराम बिहारी, राजू कुमार, सन्तोष, अंकित, लालू बिहारी, अंजली, निधि, साक्षी, संस्कृति सहित अन्य के द्वारा गीत और नृत्य की प्रस्तुति की गयी।