डीएनबी भारत डेस्क
बेगूसराय जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर उत्तर खोदावंदपुर प्रखंड के इलाके में आज भी क्रेशर चालित कोल्हू से देसी गुड़ के निर्माण और उसका कारोबार किसान और कारोबारी दोनों के लिए लाभकर है। बिना केमिकल देसी तकनीक से निर्मित इस देसी गुड़ के मिठास का मुरीद है कोलकाता और दिल्ली के लोग। जी हां सुनने में थोड़ा अटपटा जरूर लग रहा होगा लेकिन यह हकीकत है ।वर्षों पूर्व दर्जनों कोलहू बैल चालित दिसंबर से मार्च तक 4 माह इस इलाके में चला करता था। जहां से देसी शक्कर का निर्माण होता था। समय बदल गया तकनीक का जमाना आ गया और लोग इस कारोबार से विमुख हो गए। लेकिन आज भी खोदाबंदपुर गांव के भगवान लाल महतो इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं ।भगवान लाल बताते हैं कि हमारे द्वारा तैयार देशी शक्कर अर्थात गुड़ मूल रूप से आसपास के जिले जवार में ही बिक जाते हैं।
हम गुड़ बेचने कहीं बाहर नहीं जाया करता। लोग हमारे कोल्हू पर आकर शक्कर खरीदते हैं। गांव देहात के जो कामगार कोलकाता और दिल्ली में रहते हैं वह अपने साथ यहां से तैयार गुड़ चेकी अर्थात ढ़ेला वाला राबा अर्थात गीला वाला शक्कर अपने साथ ले जाते हैं। जहां वह रहते हैं वहां के आसपास के लोग बड़े शौक से इस देसी गुड़ का सेवन करते हैं और इसकी मिठास का प्रशंसा करते हैं ।जब कभी भी दिसंबर का महीना आता है वह उन कामगारों को के माध्यम से यहां के देसी गुरु को मंगाते हैं और उन्हें लाभकारी मूल्य भी देते हैं। गन्ना उत्पादक किसानों को होता है फायदा। खोदाबंदपुर में देशी गुड़ का निर्माण स्थानीय किसानों से गन्ना खरीद कर किया जाता है। इससे किसानों को यह फायदा होता है जो मिल रेट होता है उसी के अनुसार इन्हें नगद भुगतान मिल जाता है ।
यह हसनपुर चीनी मिल का इलाका है। मिल को सीजन चलाना होता है ।तो वह अपने हिसाब से चलान सिस्टम के द्वारा किसानों का गाना खरीदता है जिसमें विलंब होता है। लेकिन हमारे यहां गन्ना बेच लेने से खेत समय पर खाली हो जाता हैजिसमें वह रवि फसल का बुवाई कर लेते हैं। और एक साथ इस खेत में दो-तीन प्रकार का फसल उगा लेते हैं। इस प्रकार किसानों को दोहरा लाभ मिल जाता है। जो किसानों के हित में है। वीरेंद्र कुमार सिंह किसान ,ग्राम मटिहानी खोदाबंदपुर। गुड़ निर्माता भगवान लाल की कहानी उन्हीं के जुबानी। क्रेशर कोल्हू से गुड़ बनाने के लिए गाना की खरीदारी हम स्थानीय किसान से करते हैं।₹300 प्रति क्विंटल गाना हमको मिल जाता है। 5 क्विंटल गन्ना में 40 से 50 किलो गुड़ तैयार होता है। राबा गुड़ अर्थात गीला गुड़ 45 किलो। तथा चेकी गुड़ अर्थात ढेला वाला गुड़ 50 से 55 रुपए किलो बिक जाता है। पांच क्विंटल गन्ना में 30 से 35किलो ढीला वाला गुड़ तैयार होता है। 5 क्विंटल गन्ना को पेरने में पांच मजदूर लगता है प्रत्येक मजदूर प्रतिदिन 500 मजदूरी का भुगतान करते हैं।
गन्ना को कोल्हू में पेड़ कर तैयार रस को उसी के सिठी से आग पर गर्म कर शक्कर तैयार करते । इस शक्कर में हम लोग किसी केमिकल का प्रयोग नहीं करते हैं। गन्ना के रस को गर्म करने में उससे जो मैली निकलता है इसी मैली से रस को साफ करते हैं। जिसके कारण हमारे शक्कर में पिल्लू नहीं होता है ।हां ज्यादा पूराना होने पर स्वाद थोड़ा बदल जाता है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ो लोगों को मिलता है रोजगार। भगवान महतो बताते हैं दिसंबर से मार्च तक 4 महीना हम लोग शक्कर बनाने का कारोबार करते हैं । इस अवधि में जो गुड़ तैयार होता है अधिकतर स्थानीय स्तर पर ही बिक जाता है । शेष गुड़ को हम लोग सालों भर बेचते हैं। इस प्रकार इस व्यवसाय में गन्ना उत्पादक किसान, देसी गुड़ तैयार करने वाले कारोबारी, इस व्यवसाय में काम करने वाले मजदूर, और हमारे यहां से खुदरा और थोक खरीद कर दिल्ली ,कोलकाता और आजू-बाजू के बाजार में बेचने वाले व्यापारी को इससे रोजगार मिलता है। इस प्रकार एक हमारे कारण सैकड़ो व्यक्ति को रोजगार मिलता है । उन पर आश्रित हजारों लोगों को रोटी मिलता है।
बेगूसराय खोदावंदपुर संवाददाता नितेश कुमार की रिपोर्ट