नमस्ते बिहार कार्यक्रम में विकास बैभव ने अपने संबोधन की शुरुआत राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को नमन करते हुए एवं गंगा को नमन करते हुए की।
डीएनबी भारत डेस्क
बेगूसराय जीडी कॉलेज के प्रांगन में चर्चित आईपीएस विकास वैभव के द्वारा आयोजित कार्यक्रम नमस्ते बिहार में विकास बैभव ने अपने संबोधन की शुरुआत राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को नमन करते हुए एवं गंगा को नमन करते हुए की। साथ ही साथ उन्होंने कहा कि आज हजारों की तादाद में पूरे बिहार से लोग यहां जमा हुए हैं और अपने आप में यह कार्यक्रम एक अलग महत्व रखता है, क्योंकि ना तो यह राजनीतिक कार्यक्रम है और ना ही यह कोई धार्मिक मंच है ।
इस मंत्र से सिर्फ लोगों को पुराने बिहार की याद दिलाने का काम किया जा रहा है क्योंकि अगर बिहार के इतिहास पर गौर किया जाए तो देखा जाएगा कि जब बिहार के पास संसाधन नहीं थे संसाधन की कमी थी उस समय बिहार में दर्जनों महापुरुषों को जन्म लिया जिन्होंने अपने-अपने योग्यता से पूरे विश्व में अपना परचम लहराया। और यही वजह थी कि बिहार को ज्ञान की भूमि कहा जाता था और विक्रमशिला इसका जीता जागता उदाहरण है।
जिस वक्त बिहार में संसाधन नहीं थे उस वक्त हमारी सीमा रेखा अफगानिस्तान तक होती थी लेकिन आज वैसा सोच भी नहीं है और यही वजह है कि एक समय ज्ञान के लिए पूरे विश्व से लोग बिहार आते थे और आज बिहार के लोग विभिन्न जगहों पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए जा रहे हैं। उन्होंने खुले मंच से कहा कि एक समय था जब बिहार का नाम आते ही लोगों के मन में सम्मान भर जाता था लेकिन आज वही समय है जब बिहार का नाम कहने में बिहारियो को शर्म आती है। साथ ही साथ प्रदेश से बाहर बिहारी को उचित सम्मान नहीं मिल पाता आखिर इसकी वजह क्या है।
यह बिहारी को सोचने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आज और पूर्व के बिहार में इतना अंतर है इसे सरल भाषा में समझा जाए तो पहले भी जातियां होती थी लेकिन जातिवाद नहीं था। यही वजह थी कि आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त की जाती ना देखते हुए उसे सम्राट बनाया । लेकिन आज बिहार जातिवाद के दंश में झुलसता जा रहा है । बिहार की अस्मिता पर अगर गौर करें तो महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने भी इसका वर्णन करते हुए कहा था कि मगध की वीरता की वजह से हमें अपनी राजधानी बदलनी पड़ी थी।
भागलपुर जो पूर्व में चंपा के नाम से जाना जाता था तो वही मुंगेर जो अंग प्रदेश के रूप में जाना जाता था और इसी अंग प्रदेश के राजा कर्ण ने अपने कर्मों की वजह से दानवीर की उपाधि भी पाई थी। उन्होंने सीधे-सीधे कहा की आओ प्रेरित करें बिहार कार्यक्रम के माध्यम से आज बिहारी को उनको अपने आप से परिचय कराने का प्रयास किया जा रहा है क्योंकि बिहारी में ऊर्जा एवं अस्मिता की कोई कमी नहीं है ।
आज खेतिहर मजदूर से लेकर छात्रों एवं ओहदे पर बैठे लोग जो बिहार के हैं वह काफी ऊर्जावान है और अपने-अपने क्षेत्र में नाम रोशन कर रहे हैं । जब व्यक्ति का सोच और व्यक्ति का विचार महानता को प्राप्त करता है तो व्यक्ति बड़ा हो जाता है। बिहार की सोच जाति संप्रदाय गरीब अमीर से पड़े सोचने की रही है और यही इसकी पहचान है। प्राचीन बिहार में महिलाओं की अगर हम बात करें तो उनमें सिद्ध पुरुषों को भी शिक्षा देने की योग्यता थी।
लेकिन आज महिलाएं क्यों पीछे रह गई यह सोचने की बात है। बिहार में युवाओं की कुल संख्या अभी लगभग 9 करोड़ के आसपास है और 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया गया है जिसमें बिहार के युवाओं की अहम भूमिका रहेगी और इसके लिए युवाओं को सिर्फ संकल्प लेने की जरूरत है। लेकिन इसके लिए अगले दो दशकों में जितने युवा हैं उन्हें उत्कृष्ट शिक्षा एवं अपने बिहार में रोजगार की आवश्यकता होगी।
और इसके लिए हमें दृढ़ संकल्प लेकर काम करना होगा। आज की स्थिति यह है कि अगर हम जाति लिंग भेद समुदाय में बटकर रह गए हैं और यही वजह है कि हम पीछे जा रहे हैं । लेकिन बिहार को बदलने की आवश्यकता है और इसके लिए हमें बड़े सोच की आवश्यकता है । अब सवाल उठता है कि हमें इसके हल को भी ढूंढना पड़ेगा और इसके लिए 9 करोड़ युवाओं को नौकरी देने के लिए उद्यमिता उद्योग का विकास करना होगा जिससे कि आने वाले समय में हम बेरोजगारी को दूर कर सकें।
किसी भी स्थल का विनाश तभी होता है जब सज्जन और योग्य लोग निष्क्रिय हो जाएं दुर्जनों के प्रयास करने से किसी भी स्थल का बिनाश संभव नहीं है और आज हमें इसी बात को आगे करके चलना है और हमें अपने आप को समझने की आवश्यकता है।
बेगूसराय डीएनबी भारत डेस्क