बिहार में अमित शाह को चाणक्यगिरी करना पड़ सकता  महंगा:- मसूद हसन

DNB Bharat Desk

समस्तीपुर। दिल्ली पब्लिक स्कूल ताजपुर के निदेशक मसूद हसन शब्बू ने कहा है कि 14 तारीख के बाद जो बिहार की सियासत में होगा, उसकी गूंज दिल्ली की गलियारों तक पहुंचेगी।यह मामूली झटका नहीं होगा। राजनीति में चालें चलना कोई बुरी बात नहीं, मगर जब वही चालें अपने ही घर की नींव हिला दें, तो उसे समझदारी नहीं, नादानी कहते हैं।

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 अमित शाह ने बिहार में जो कदम उठाए हैं, उन्हें देखकर यही कहना बनता है “आ बैल, मुझे मार।” कहावत है — “काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।”

किसी को बार-बार आज़माना, साथी को नीचा दिखाना या भरोसे की डोर तोड़ना — बिहार की मिट्टी पर यह तरीका नहीं चलता। यहाँ की राजनीति चालबाज़ी से नहीं, भरोसे और सम्मान से चलती है।उन्होंने ने कहा कि अमित शाह शायद भूल गए हैं कि केन्द्र में उनकी सत्ता जिनके रहमो-करम पर टिकी हुई है, वे चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार हैं। 

इन्हीं दो नेताओं के सहयोग से दिल्ली की कुर्सी को सहारा मिला था। मगर अमित शाह ने वही किया, जो कोई समझदार राजनीतिज्ञ कभी नहीं करता।  अपने ही भरोसेमंद साथियों पर चोट करना यह सीधा सीधा  राजनीतिक आत्मघात की मिसाल है। उन्होंने जिस तरह से बिहार में माहौल बनाया, वह वैसा ही है जैसे “मधुमक्खी के खोते में ढेला मार देना।” अब जो हलचल उठेगी, उसका असर सिर्फ़ पटना तक नहीं रहेगा — वह दिल्ली की दीवारों तक गूंजेगा। 

नीबिहार में अमित शाह को चाणक्यगिरी करना पड़ सकता  महंगा:- मसूद हसन 2तीश कुमार कोई बोलने वाले नेता नहीं है, वे चुपचाप जवाब देते हैं, मगर जब देते हैं, तो सामने वाले के पाँव उखड़ जाता है। श्री हसन ने आगे कहा कि 14 तारीख के बाद जो होने वाला है, वह सिर्फ़ नतीजा नहीं होगा बल्कि वह एक सियासी जवाब होगा, जिसकी गूंज केंद्र की सत्ता के गलियारों में भूकंप की तरह महसूस की जाएगी। बिहार की जनता दिल की साफ़ है, मगर जब कोई उनके सम्मान से खेलता है, तो जवाब भी पूरे दम से देती है। 

अमित शाह ने इस बार वही गलती की है जो सत्ता के नशे में लोग अक्सर करते हैं। अपने ही साथियों को कमज़ोर समझ लेना। मगर बिहार में जो भरोसे को तोड़ता है, उसे जनता बहुत देर तक माफ़ नहीं करती। अमित शाह को समझना होगा कि राजनीति का असली बल चालों में नहीं, भरोसे में होता है। सत्ता का किला तभी मज़बूत रहता है जब उसकी नींव रिश्तों और सम्मान पर टिकी हो। 

मगर जब वही नींव हिलाई जाती है, तो महल चाहे जितना ऊँचा हो, गिरना तय है।14 तारीख के बाद का दिन यह साबित करेगा कि बिहार की मिट्टी चालबाज़ी नहीं, भरोसे को मानती है। और नीतीश कुमार का जवाब इस बार खामोश नहीं रहेगा — वह ऐसा जवाब होगा जिसे दिल्ली तक सुना जाएगा।

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