मेला क्षेत्र में अस्पताल ढूंढने में लगता है घंटो समय, तब तक मरीज़ की हालत हो जाती है गम्भीर – सुरेश चौधरी

DNB Bharat Desk

राजकीय कल्पवास मेला को लेकर हर वर्ष अस्थाई तौर पर अस्पताल प्रशासनिक शिविर में खुला रहता था। इस चीज़ों को जानकर सभी कल्पवासी निश्चिंत होकर रहते थे कि प्रमुख स्थानों पर अस्पताल है वहां सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध है। पर इस बार प्रथम सप्ताह में ही अचानक से अस्पताल को वहां से हटाकर मेला क्षेत्र अंतर्गत सुदूरवर्ती क्षेत्र शवदाह गृह से आगे शमशान घाट के पास भेज दिया गया है। जिस स्थान पर आम श्रद्धालुओं का पहुंचना दू भर है। तो गम्भीर स्थिति होने पर अविलंब कैसे स्वास्थ सुविधा प्राप्त किया जा सकता है।

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ऐसी ही एक मामला सोमवार की देर शाम में उभर कर आया है। मिली जानकारी अनुसार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बरौनी का अस्थाई स्वास्थ्य केंद्र बनाया गया है जहां 24 घंटे एम्बुलेंस की सुविधा उपलब्ध है। पर इसका लाभ लेने के लिए लोगों को तो पहले घण्टे भर अस्पताल ढूंढने में लग जाता है। इस सम्बन्ध में जानकारी देते हुए पोखरण, बिरौल,दरभंगा जिला निवासी सुरेश चौधरी बताते हैं कि वह संध्या क़रीब सात बजे से पहले से ही सिमरिया धाम में अस्पताल ढूंढने में लगे हुए थे। वह बार बार प्रशासनिक शिविर के आसपास खोज कर वापस लौट जाते थे और बाहर में प्राईवेट मेडिकल दुकानों से ओ आर एस पाउडर सहित अन्य दवा खरीद कर अपनी बीमार पड़ती जा रही पत्नी रामलक्ष्मी को दे देते थे।

मेला क्षेत्र में अस्पताल ढूंढने में लगता है घंटो समय, तब तक मरीज़ की हालत हो जाती है गम्भीर - सुरेश चौधरी 2पर एक घंटे से अधिक समय लग गए अस्पताल ढूंढने में। जहां जाने पर कर्मियों ने तुरन्त एम्बुलेंस गाड़ी से प्रशासनिक शिविर के समीप भूतनाथ मंदिर के पास एम्बुलेंस लगाया। जहां से एम्बुलेंस से लेकर पत्नी रामलक्ष्मी देवी को अस्पताल लाए और वहां उपचार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि हमारी पत्नी रामलक्ष्मी देवी को दस्त और उल्टी हो रही थी फिर पेट में भी दर्द होने लगा था। मौके पर पीड़ित परिवार के साथ रहे मोहन चौधरी एवं संत चौधरी ने बताया कि मामले को गंभीरता से जिला प्रशासन को लेना चाहिए और अविलंब अस्पताल को फ्रंट पर लाना चाहिए।

मेला क्षेत्र में अस्पताल ढूंढने में लगता है घंटो समय, तब तक मरीज़ की हालत हो जाती है गम्भीर - सुरेश चौधरी 3जिससे सभी और अधिक से अधिक लोगों को स्वास्थ्य सुविधा मिल सकती है। उन्होंने बताया कि वृद्धों और महिलाओं को अस्पताल आना लोहे की चने चबाना जैसा ही है। कहा कौन डेढ़- दो किलोमीटर दूर दर्द से कराहते हुए यहां तक आएगा। इसलिए लोग प्राइवेट से ही चुटका – फटका दवा खरीद लेते हैं।

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