सिराजुद्दौला के शासन काल के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा राजस्व वसूली हेतु यहां प्रतिनियुक्त तीन सहोदर भाइयों दान सिंह, महान सिंह एवं सुजान सिंह द्वारा भवानंदपुर में देवी दुर्गा को स्थापित किया
डीएनबी भारत डेस्क
बेगूसराय जिले के वीरपुर प्रखंड के भवानंदपुर में माता के दरबार में दर्शन करने से भक्तों की मन्नतें पूरी होती है। यहां होनेवाली दुर्गापूजा में बेगूसराय के अलावा खगड़िया, दरभंगा, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर आदि जिले के भी श्रद्धालु देवी दर्शन को आते हैं। बताया जाता है कि सिराजुद्दौला के शासन काल के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा राजस्व वसूली हेतु यहां प्रतिनियुक्त तीन सहोदर भाइयों दान सिंह, महान सिंह एवं सुजान सिंह द्वारा भवानंदपुर में देवी दुर्गा को स्थापित किया गया।

ये तीनों भाई नदिया शांतिपुर (पश्चिम बंगाल) से आए थे। देवी की पूजा अभी भी तीनों भाइयों के वंशज (बंगाली राढ़ी कायस्थ परिवार) कर रहे हैं। नवरात्रि के दौरान कायस्थ परिवार के सभी सदस्य पूजा में लगे रहते हैं। सप्तमी के दिन देवी मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ 13 परिवारों का एक-एक अखंड दीप स्थापित कर दिया जाता है। इसके अलावे अन्य बंगाली परिवारों के मन्नत वाला अखंड दीप नवमी को प्रज्ज्वलित किया जाता है। यह दीप दशमी के दिन ही सुरक्षित निकाला जाता है। बंगाली परिवारों द्वारा इन दीपों की जान से भी ज्यादा हिफाजत की जाती है। ग्रामीण मनोरंजन सिन्हा, मुकुलचंद सिन्हा ने बताया कि मंदिर के अंदर कोई बल्ब नहीं जलते हैं।
कई बार लोगों ने अंदर में बल्ब जलाने की कोशिश की पर वह जल नहीं सका। फलतः अब लोग बल्ब जलाने की कोशिश भी नहीं करते। मंदिर के अंदर प्रज्ज्वलित दीपों से ही रोशनी होती है। राढ़ी कायस्थ दुर्गापूजा समिति के सचिव ओम प्रकाश सिन्हा के अनुसार यहां वृहत नंद किशोर पुराण से वैदिक रीति से पूजा की जाती है। यहां दुर्गापूजा में खर्च करने हेतु राशि के लिये बाहरी लोगों से चंदा नहीं लिया जाता है। कुल 13 बंगाली परिवारों में से प्रतिवर्ष एक बंगाली परिवार पूजा का पूरा खर्च वहन करता है। इस बार सुनील कुमार सिन्हा व्यवस्थापक हैं। ग्रामीणों के अनुसार, अष्टमी की रात में बंगाली परिवारों द्वारा सात बकरे की बलि दी जाती है। नवमी को अन्य लोग बलि देते हैं।
प्रतिवर्ष डेढ़-दो हजार बकरे की बलि दी जाती है। दशमी को भैंसा की वली भी दिए जाते हैं।भवानंदपुर में प्रतिवर्ष एक ही आकार, रंग व प्रकार की मूर्ति बनाई जाती है। वर्तमान में यहां मूर्ति बनाने का कार्य मंसूरचक का अशिक लाल पंडित करता है। उसका दस पुश्त यहां मूर्ति बना चुका है। मूर्तिकार के अनुसार, हर वर्ष एक ही आकार, प्रकार व रंग का मूर्ति बनाना चुनौतीपूर्ण होता है फिर भी मां की कृपा से संभव हो जाता है।
बेगूसराय वीरपुर संवाददाता गोपल्लव झा की रिपोर्ट