कद छोटा लेकिन हौसलों में है उड़ान, लोगों के लिए मिसाल हैं गौतम

DNB Bharat Desk

बेगूसराय में सबसे छोटे कद के एक शिक्षक आज लोगों के लिए मिसाल बन गए हैं। गौतम सबसे छोटे कद के शिक्षक होने के बावजूद अपने आप को भाग्यशाली समझते हैं। गौतम ने अब तक एक हजार से अधिक लोगों को शिक्षा दी है। गौतम का जन्म सामान्य बच्चों की तरह मंझौल अनुमंडल के चेरियाबरियारपुर विक्रमपुर गांव में रामनरेश सिंह के बड़े बेटा के रूप में 5 फरवरी 1983 को हुआ था। गौतम कुमार पोलियो का शिकार हो गए थे। इस कारण बौने कद के रह गए, तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि छोटे से गांव का छोटा सा व्यक्ति इतनी चर्चा अर्जित कर लेगा।

गौतम ने बताया कि ननिहाल में बड़ा नाती और पिता का भी बड़ा बेटा था। नौ महीने से ही हमने चलना और बोलना शुरू कर दिया, मेरे विकास की गति में काफी तीव्रता थी। दो वर्ष के बाद पोलियो का शिकार हो गया, संपूर्ण अंग शिथिल पड़ गए, और वही से मेरा संघर्ष का दौड़ शुरू हो गया। मैं कहीं जाता था तो रिश्तेदार भी मुंह मोड़ लेते थे, सामान्य दिव्यांगों की तरह हर ओर तिरस्कार, अपमान झेलना पड़ता था। कुत्ते भी मुझ पर ही भोंकते थे, गाय भी हमें देखकर रस्सी तोड़ने लगती थी। सभी मेरा उपहास उड़ाते थे।

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गौतम कहते हैं कि शारीरिक अक्षमता के बाद भी मुझ में कुछ करने की इच्छा थी, मनोभाव को मरने नहीं दिया। शारीरिक अक्षमता के बीच अपने को गतिमान मानते हुए चलता रहा। इस कारण मैंने कोचिंग में पढ़ाया, ट्यूशन पढ़ाया, अन्य लोगों की सहायता ली। किसी से मदद मांग कर किसी के साइकिल, ठेला, रिक्शा, बैलगाड़ी पर चढ़कर मैं स्कूल और महाविद्यालय की यात्रा करता था। लोग मेरी मदद करते थे, क्योंकि, मुझ में जीवन की संभावना थी। इन्हीं सामाजिक परिस्थितियों के बीच हमने गांव से ही प्राथमिक और मध्य शिक्षा ली। उच्च शिक्षा के लिए आरसीएस कॉलेज मंझौल और जीडी कॉलेज में पढ़ाई की।

शिक्षा के क्षेत्र में कदम बढ़ाना कठिन चुनौती शारीरिक समस्याओं को लेकर जीवन की यात्रा प्रारंभ करना और शिक्षा के क्षेत्र में कदम बढ़ाना कठिन चुनौती थी। लेकिन, इसी समाज के कुछ लोगों के सहयोग के कारण यह भी हासिल हो सका। मैं शिक्षक बना, ढेर सारे विद्यार्थियों को शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में लाकर बिहार सरकार और केंद्र सरकार में शिक्षक बनने का मार्ग प्रशस्त किया, जिनकी संख्या हजार में है। ऐसी स्थिति में आकर लगता है कि आज मैं देश की समस्या नहीं, समाधान का हिस्सा हूं। संघर्ष से ही उत्कर्ष की प्राप्ति जब मैं पढ़ाने क्लास गया तो पहले दूसरे दिन मैं उपहास का शिकार हुआ। लेकिन उसके बाद मेरा क्लास प्रारंभ हुआ तो मेरा उपहास एहसास में बदल गया। तब विद्यार्थी और उनके अभिभावकों के बीच धारणा बदल गई।

मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और खूबसूरत दिन था 26 मई 2005, जब राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का हाथ मेरे हाथ में मिला और हम दोनों एक सोफा पर बैठे थे। वह मुझे देखकर प्रसन्न थे। गंभीरता से मुझसे सवाल पूछते थे, अपने बच्चों की तरह। उसी दिन से मेरे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन हुआ। उन्होंने मुझे विजन, मिशन और गोल अर्थात ध्येय, दृष्टिकोण और लक्ष्य के निर्धारण की बात कही। जिस दिन से उनके हाथ का स्पर्श मेरे छोटे से हाथ से हुआ,उस दिन से मेरे जीवन में उत्तरोत्तर प्रगति से होती गई। मंझौल आए तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद का मंच हो या राजनीति के भीष्म पितामह कहे जाने वाले डॉ भोला सिंह का मंच, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का मंच हो या चर्चित आईपीएस विकास वैभव का मंच, अधिकतर मंच के संचालन की जिम्मेदारी संभालने वाले गौतम बिहार के सबसे छोटे कद के शिक्षक हैं। इनके कारण एक हजार से अधिक लोग शिक्षक बन चुके हैं।

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