खोदावंदपुर प्रखंड से मिट गया कई संस्कृत विद्यालयों का अस्तित्व

DNB BHARAT DESK

खोदावंदपुर| संस्कृत देव भाषा माना गया है।सरकार भी संस्कृत भाषा को बढ़ावा दे रही है, परंतु संस्कृत शिक्षा व्यवस्था धरातल पर दम तोड़ती नजर आ रही है। सन् 70 व 80 के दशक में स्थापित किये गये कई संस्कृत विद्यालय खोदावंदपुर में दम तोड़ रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार बाड़ा पंचायत अंतर्गत मिर्जापुर गांव में संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालय की स्थापना की गयी थी। इस स्कूल में बरियारपुर पश्चिमी गांव के तत्कालीन प्रधानाध्यापक कृष्ण मोहन महतो, इसी गांव के तत्कालीन शिक्षक नंदकिशोर महतो, विशुनदेव महतो, बरियारपुर पूर्वी गांव के तत्कालीन शिक्षक मधूसूदन महतो, प्रेम कुमार शर्मा उर्फ जामुन शर्मा, रामनरेश महतो, सिरसी गांव के रामप्रसाद महतो करीब पंद्रह वर्ष पूर्व ही सेवानिवृत्त हो गये.

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इस विद्यालय को साढ़े तीन कट्ठा अपनी जमीन है, जो बिहार सरकार के नाम से है.स्कूल की जमीन का खाता नंबर- 262, खेसरा नंबर 327 है, जिसका लगान अद्यतन है। इस स्कूल में वर्ग प्रथम से अष्टम् तक की पढ़ाई की व्यवस्था थी. जिला परिषद बेगूसराय के तत्कालीन उपाध्यक्ष रामजपो यादव ने 29-01-1982 को इस विद्यालय को सरकारी स्कूल का दर्जा देने की मांग जिला प्रशासन से किया था। उनकी इस मांग के आलोक में बिहार प्रशासनिक सेवा से जुड़े उपसमाहर्ता एवं अंचलाधिकारी खोदावंदपुर विपिन कुमार सिन्हा के द्वारा 25-01-1983 को इस स्कूल का भौतिक निरीक्षण किया गया था. इसके अलावे बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड पटना के निरीक्षक सहजानन्द राय के द्वारा भी दिनांक 02-04-1983 को इस विद्यालय का औचक निरीक्षण किया गया था।

खोदावंदपुर प्रखंड से मिट गया कई संस्कृत विद्यालयों का अस्तित्व 2शिक्षा राज्य मंत्री रामदेव राय ने भी दिनांक 20-06-1984 को इस विद्यालय का निरीक्षण किया था। मिली जानकारी के अनुसार तत्कालीन गृह राज्य मंत्री भोला सिंह ने दिनांक 06-07-1984 को शिक्षा विभाग से इसकी मान्यता प्रदान करने की मांग की थी। इनके अलावे स्थानीय विधायक सुखदेव महतो ने दिनांक 03-08-1984 को इस स्कूल का निरीक्षण किया था और विद्यालय की स्वीकृति प्रदान करने की मांग की थी। बिहार के तत्कालीन परिवहन व कल्याण मंत्री हरिहर महतो ने भी दिनांक 10-12-1989 को इस विद्यालय की मान्यता एवं सहायता के लिए अनुशंसा किया था। इसके आलोक में खोदावंदपुर के तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी कुबेर चन्द्र प्रसाद ने 18-07-1990 को इस स्कूल का निरीक्षण किया था। तत्कालीन विधायक अनिल चौधरी ने भी दिनांक 02-09-2010 को इस विद्यालय के उज्जवल भविष्य की कामना की थी।

इसके अलावे खोदावंदपुर के तत्कालीन जिला पार्षद अरविंद कुमार ने भी दिनांक 23-12-2010 को इस विद्यालय की मान्यता देने की मांग सरकार से की थी। तत्कालीन विधायक कुमारी मंजू वर्मा ने 02-01-2011 को इस संस्कृत विद्यालय परिसर में पहुंचकर स्कूल की गतिविधि का अवलोकन किया था। संस्कृत विद्यालय में पदस्थापित तत्कालीन शिक्षकों ने बताया कि इस स्कूल को मान्यता दिलवाने के लिए बिहार संस्कृत शिक्षक संघ के बैनर तले कई बार धरना प्रदर्शन भी किये गये। बताते चलें कि यह स्कूल वर्तमान समय में अपने अतीत की कहानी बयां कर रहा है, इसका ईट खपरैल का पुराना भवन जीर्णशीर्ण अवस्था में है। इसके अलावे बरियारपुर पश्चिमी गांव में संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालय तारा बरियारपुर के नाम से विद्यालय की स्थापना दिनांक 01-01-1979 को की गयी थी।

 स्थापना काल में रामविलास चौधरी इसके प्रधानाध्यापक थे। सहायक शिक्षक के रूप में उमेश प्रसाद गुप्ता, जवाहर चौधरी, देवकी देवी, श्याम बिहारी गुप्ता व आदेशपाल के रूप में भोला प्रसाद गुप्ता ने इस स्कूल को जीवंत करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार पूरे बिहार में 1640 निरीक्षित विद्यालय में नाम दर्ज कर प्रस्वीकृति मांगी गयी थी, जिसकी स्थापना स्वीकृति भी की गयी थी। एसडीएम के द्वारा निरीक्षण भी किया गया था। बरियारपुर पश्चिमी गांव के सरयुग प्रसाद गुप्ता व श्याम बिहारी गुप्ता ने अपनी 6 कट्ठा 5 धूर जमीन स्कूल निर्माण के लिए राज्यपाल के नाम से निबंधित किया था। किसान जागेश्वर चौधरी ने भी अपनी 7 कट्ठा 10 धुर कीमती जमीन स्कूल निर्माण के लिए दान में दी थी।

जिसका खाता नंबर- 760, 35, 353, खेसरा नंबर 479, 463, 476, 477, 478, 765, 88 है. स्कूल निर्माण के लिए कुल 14 कट्ठा साढ़े दस धूर जमीन राज्यपाल के नाम से निबंधित है। इस स्कूल में उस समय कुल 206 बच्चे नामांकित थे। इसके अलावे दौलतपुर पंचायत के बेगमपुर गांव में भी संस्कृत विद्यालय की स्थापना की गयी थी, जिसके तत्कालीन प्रधानाध्यापक बेगमपुर गांव के शिवकांत झा थे। इतना ही नहीं फफौत पंचायत के चकवा गांव में भी संस्कृत विद्यालय की स्थापना की गयी थी, इसके तत्कालीन प्रधानाध्यापक रामजपो महतो थे। संस्कत विद्यालय से जुड़े कई शिक्षकों ने बताया कि नौकरी के लोभ में वे लोग फ्री में बच्चों को पढ़ाई लिखाई करवाते थे। करीब पंद्रह वर्षों तक अपने घर से खाना खाकर किसी तरह विद्यालय का नियमित संचालित किया गया था।

उस समय संस्कृत स्कूल के सभी शिक्षकों ने जन-सहयोग से ईट खपरैल का विद्यालय भी बनवाया था, लेकिन सरकार ने ना तो किसी शिक्षकों का नौकरी दी और ना ही विद्यालय विकास मद में किसी तरह की राशि का आवंटन ही किया। जिसके कारण शिक्षकों का धैर्य जवाब दे दिया। विवश होकर शिक्षकों ने धीरे-धीरे संस्कृत विद्यालय को छोड़ दिया और अपने जीविकोपार्जन के लिए दूसरे धंधे से जुड़ गये. क्षेत्र के सामाजिक व राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने दशकों पूर्व से जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़ें संस्कृत प्राथमिक सह मध्य विद्यालयों को जीर्णोद्धार कर नये सिरे से व्यवस्थित तरीके से पठन-पाठन सुचारू रूप से संचालित किये जाने की मांग अधिकारियों एवं सरकार से की है।

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