ब्रिटिश शासन काल से ही होती घटकिंडी दुर्गा स्थान बरौनी गांव में धूम धाम से माता की पूजा अर्चना
डीएनबी भारत डेस्क
साक्षात माता का मिलता है आशीर्वाद, यहां 1793 ई को स्थापित किया गया था घटकिंडी दुर्गा मैया का मंदिर
भक्तों को मनोवांछित फल देने वाली बरौनी गांव में स्थापित घटकिंडी वाली मैया दुर्गा अपने दिव्य स्वरूप में भक्तों का कष्ट हरने के लिए नित्य विराजमान रहती है. बरौनी जंक्शन से लगभग चार किलोमीटर एवं बरौनी फ्लेग स्टेशन से महज लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित बेगूसराय जिला का प्रसिद्ध मां घटकिंडी दुर्गा मंदिर बरौनी गांव में है।
माता का यह प्रसिद्ध मंदिर सड़क मार्ग से बरौनी जंक्शन के पश्चिम दिशा में एवं बरौनी फ्लेग गुमती से दक्षिण गंगा नदी से सटे गुप्ता लिमिटेड बांध से बिल्कुल सटा स्थित हैं. इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में ग्रामीण एवं जानकार बतातें हैं यहां पर संकल्प मात्र से श्रद्धालुओं का मनोकामना पूर्ण होती है।
शारदीय नवरात्रि में मां के समस्त स्वरूप की इस मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है. वैसे इस मंदिर में सालों भर विशेष विधि से पिंडी पूजा व आरती की जाती है. नवरात्रि के दिनों में सप्तमी तिथि श्रृंगार और प्राण प्रतिष्ठा, अष्टमी तिथि को तांत्रिक एवं वैदिक दोनों विधि से पूजा अर्चना किया जाता है. जिसे महानिशा पूजा कहते हैं. लोगों का मानना है इस मंदिर में भक्तों के द्वारा श्रद्धा पूर्वक की गई पूजा अर्चना से हर मनोकामनाएं पूरी होती है. इस मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व है.
1793 ई में विद्वान पंडित शिवप्रसाद पाठक के द्वारा घटकिंडी दुर्गा मंदिर की स्थापना की गई थी
इस मंदिर में सालोभर प्रतिदिन हजारों लोग माथा टेकने आते हैं एवं पूरे विधि विधान से माता की पूजा अर्चना करते हैं. शारदीय नवरात्रि की तो बात ही अलग है मैया घटकिंडी दुर्गा स्थान की. नवमी तिथि की सुबह से ही छागल की बलि तथा रात्रि में महिष की बलि दी जाने की पूर्व से ही परंपरा रही है एवं इस मंदिर में दशमी तिथि को हवन एवं विसर्जन का प्रावधान है।
जानकारों के मुताबिक 1793 ई में विद्वान पंडित शिव शरण उर्फ शिव प्रसाद पाठक के द्वारा मिट्टी मंदिर की स्थापना की गयी थी. मंदिर स्थापना 20 साल बाद आयी भयानक बाढ़ में मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था. लेकिन माता कि पूजा अर्चना पूरे विधि विधान से की जाती रही.
ब्रिटिश हुकमरान ने मांगी मन्नतें, मुरादें हुई पूरी तो कराया मंदिर का जीर्णोद्धार
जानकारों कि मनें तो भयानक बाढ़ में मंदिर क्षतिग्रस्त होने के बाद 1818 ई में ब्रिटिश हुकमरान के प्रमुख लाइलाज जख्म से काफी परेशान थे लाख कोशिश और चिकित्सकीय सलाह के बाद भी जख्म ठीक होने का नाम नहीं ले रहा था। दिनों दिन उनकी स्थिति गंभीर हो रही थी तब जाकर बिमार ब्रिटिश हुक्मरान के परिजन लार्ड मेना अपने दरबार में कार्यरत भारतीय की सलाह पर घटकिंडी मैया की शरण में जाकर जख्म ठीक होने की मन्नत मांगी।
जिसके कुछ महीने बाद जख्म ठीक होने लगा और कुछ महीनों बाद वह पूर्णत: स्वस्थ हो गये. यही नहीं अंग्रेज हुकमरान लार्ड मेना को संतान सुख नहीं था उसकी पत्नी ने पति के जख्म सुधार को देख घटकिंडी दुर्गा मैया से संतान सूख की मन्नतें मांगी और पूजा अर्चना की। मैया कि महिमा अपरंपार उसे संतान सुख को सौभाग्य मिला उसकी यह मुराद भी पूर्ण हुई।
बरौनी फ्लेग घटकिंडी मैया का चमत्कार और मनोकामना पूरी होने के बाद ब्रिटिश हुकमरान ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया और पूरे विधि-विधान के साथ घटकिंडी दुर्गा मंदिर में धूम धाम से पूजा अर्चना की गई. 1971 ई में दुर्गा स्थान व धर्मशाला का पक्कीकरण एवं खपड़़ैल के दो कमरों का धर्मशाला का भी निर्माण कराया गया था. माता कि महिमा और चमत्कार देश स्तर पर विख्यात है. और घटकिंडी दुर्गा माऔआ स्थान मनोकामना माता के नाम से प्रसिद्ध हैं. मान्यता है जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से जो भी मन्नत मांगतें हैं मैया सबों की मुरादें पूरी करती है।