शिवोपासना का पवित्र मास सावन 4 जुलाई से 31 अगस्त रक्षाबंधन तक रहेगा, 4 जुलाई से सावन शुरू
– 19 वर्षों के बाद लग रहा है श्रावण मास में पुरुषोत्तम मास योग, 08 सोमवारी होगा इस वर्ष।
– चातुर्मास के बीच जब विवाहादि संस्कार शास्त्रिक रूप से वर्जित है तो इस बीच होती है हरि और हर की भक्ति- आचार्य अविनाश शास्त्री
डीएनबी भारत डेस्क
सत्यम शिवम सुंदरम अर्थात जो सत्य है वही शिव है और वह शिव सुंदर है। वैसे तो शिव का अर्थ ही कल्याण होता है अर्थात जो कल्याण करने वाले देवता है वो ही शिव कहलाते हैं। कल्याणकारी शिव की आराधना नित्य ही कि जाती है परंतु श्रावण मास में की जाने वाली शिव आराधना विशेष पुण्यलाभ देने वाला होता है। इस वर्ष गुरुपूर्णिमासी के बाद 4 जुलाई से श्रावण मास प्रारम्भ हो कर रक्षाबंधन के साथ यानी 31 अगस्त को समाप्त होगा।
ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री के अनुसार जब शुक्लपक्ष प्रतिपदा से कृष्ण पक्ष अमावश्या के बीच सूर्य की संक्रांति नही होती है तो उसे पुरूषोत्तम मास कहा जाता है। 18 जुलाई 2023 को प्रथम श्रावण शुक्लपक्ष प्रतिपदा है और 16 अगस्त को द्वितीय श्रावण कृष्णपक्ष अमावस्या है यानी इस 30 दिन के मध्य सूर्य की राशि परिवर्तन अर्थात संक्रांति नहीं हुई है इसलिए यह अतिरिक्त मास अधिक मास या पुरुषोत्तम मास कहा जायेगा।
पहले कृष्णपक्ष बाद में होता है शुक्लपक्ष पुरुषोत्तम मास में
वैसे सो साधारणतः हिंदी मास दो पक्षो में बंटा होता है जिसमें पहले का 15 दिन कृष्ण पक्ष एवं बाद का 15 दिन शुक्ल पक्ष होता है परंतु पुरुषोत्तम मास में पहले शुक्ल पक्ष और बाद में कृष्ण पक्ष आते है।
ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री कहते हैं कि सूर्य जब कर्क राशि से तुला राशि में रहते हैं तो विवाह, उपनयनादि संस्कार कार्य वर्जित है। चंद्र मास के हिसाब से आषाढ़ शुक्ल पक्ष हरि शयन एकादशी के कार्तिक शुक्ल पक्ष देवोत्थान एकादशी तक भगवान नारायण की शेष शैया पर शयन करते हैं इसलिए विवाह आदि शुभ कार्य वर्जित होता है। इस बीच लोगों को भगवान विष्णु एव कल्याणकारी शिव का आराधना करना चाहिए।
और कहाँ से शास्त्रिक प्रमाण
ऋग्वेद के 10वें मंडल में पुरुषसूक्त के अंतर्गत परमात्मा परमेश्वर के लिए पुरुष शब्द का सम्बोधन मिलता है। पुरुष सूक्त में भगवान विष्णु के विराट रूप का वर्णन है जहां विष्णु को असंख्य शिर, आंख, पैर और सर्वत्र विद्यमान कहा गया है।
वैसे तो शिव की उपासना नित्य ही की जाती है परंतु विशेष मुहूर्त में की जाने वाला आराधना विशेष पुण्य लाभ देने वाला होता है। शिवोपासना के विशेष मुहूर्त के लिए शिववास का विचार किया जाता है जोकि तिथि एवं दिन के अनुसार लगने वाला एक योग होता है परंतु श्रावण मास में नित्य ही पूजन का शास्त्रोक्त निर्णय है।
श्रावणे अधिकमासे च आद्रायं च गते रवौ।
नित्य आराधनकाले च शिववासम न चिन्त्येत।।
अर्थात श्रावण मास में, आद्रा नक्षत्र में सूर्य हो, अधिकमास में एवं नित्य दैनिक पूजन आराधना में शिववास का विचार नहीं किया जाता है।
कैसे करें शिवोपासना
स्वयं को स्नानादि से शरीर को शुद्ध करके गले मे रुद्राक्ष और
ललाट में भस्म धारण करें।
बिना भस्म त्रिपुंडेन बिनु रुद्राक्ष मालया। बिना वेलपत्रें शिवर्चा कदा भवेत।
शिव जी के पूजन में अभिषेक अर्थात स्नान का सर्वाधिक महत्व है।
विभिन्न प्रकार की कामनाओं लिए अलग अलग तरल पदार्थों से अभिषेक करना चाहिए।
ज्वर शांति बुखार – जलधारा । वंश वृद्धि – घृतधारा । प्रमेह – दुग्ध धारा । बुद्धि वृद्धि – शक्करमिश्रितजल । शत्रु नाश – सरसों तेल । राजदंड, भय, न्यायालय विजय- मधु । रोग नाश- कुश मिश्रित जल । दीर्घायु -दूध । धन, लाभ, लक्ष्मी प्राप्ति-ईख का रस।