08 मार्च बुधवार को शुभ मुहूर्त में मनाई जाएगी होली पर्व

27 फरवरी सोमवार से प्रारंभ है होलिकाष्टक, 07 मार्च मंगलवार को शाम 07:24 के पूर्व ही होगा होलिका दहन।

27 फरवरी सोमवार से प्रारंभ है होलिकाष्टक, 07 मार्च मंगलवार को शाम 07:24 के पूर्व ही होगा होलिका दहन, शुभ मुहूर्त में करें होलिका दहन

डीएनबी भारत डेस्क 

रंगों का त्योहार होली पर्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस बार होली 08 मार्च (Holi 2023) को मनाई जाएगी। होली से 8 दिन पहले ही होलिकाष्टक लग जाता है। 27 फरबरी से होलिकाष्टक प्रारम्भ हो गया है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलिकाष्टक के दौरान विवाहादि किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। नव विवाहिता स्त्रियों की यात्रा आदि विशेष रूप से वर्जित रहता है।

ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री का कहना है कि मिथिला के क्षेत्र निवासी को होलिकाष्टक का दोष नहीं लगता इसका शास्त्रीय प्रमाण है। “मुहूर्तचिंतामणि के अनुसार”

“विपशेरावतिरेती शुतुदर्यश्च त्रिपुष्करे।विवाहादि शुभेनेष्टम होलिका प्रगदीनष्टकम।।

अर्थात विपाशा, इरावती, शुतुद्र यथाक्रम में पंजाब की व्यास राबी और सतलज नदियों के किनारे वाले क्षेत्रों में होलिकाष्टक का दोष लगता है एवं होलिका दहन से आठ दिन पूर्व से ही विवाहादि कार्य नहीं होते जबकि मिथिला क्षेत्र में ऐसा नहीं होता है।

पृथ्वी पर ही निवास करेगा भद्रा

5 मार्च रविवार को रात्रि 9 बजकर 41 मिंट में चंद्रमा सिंह राशि मे प्रवेश करेंगे और 8 मार्च को प्रातः 8 बजकर 38 मिनट तक चंद्रमा सिंह राशि में ही रहेगी। कुम्भ, कर्क, मीन एवं सिंह राशि में चंद्रमा हो तो भूलोक अर्थात पृथ्वी पर भद्रा का वास होता है। अन्य राशियों में स्वर्ग एवं पाताल लोक में भद्रा का वास होता है और जहां भद्रा का वास होता है वहीं भद्रा का शुभ अशुभ फल भी मिलता है।

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होली से एक दिन पहले अर्थात पूर्णिमासी तिथि को होलिका दहन करने की शास्त्रीय परंपरा है।

इस वर्ष पूर्णिमा 06 मार्च को अपराह्न 4 बजकर 10 मिंट में प्रवेश करेगा और दूसरे दिन अर्थात 07 मार्च मंगलवार को शाम 5 बजकर 52 मिनट में समाप्त होगा। 07 मार्च मंगलवार को मिथिला क्षेत्र में सूर्यास्त 5 बजकर 48 मिनट में होगा अतः सूर्यास्त के पश्चात 07 मार्च मंगलवार को होलिका दहन एवं 08 मार्च बुधवार को होलिकोत्सव मनाना शास्त्रसम्मत उचित है।

होलिका दहन में भद्रा वर्जित है।

ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री कहते है कि मुहूर्त चिंतामणि ग्रन्थ के अनुसार भद्रा में होलिका दहन नहीं करना चाहिए।काशी विश्वनाथ पंचांग के अनुसार मगध एवं काशी क्षेत्रों में 6 मार्च सोमवार को होलिका दहन एवं 8 मार्च को होली की चर्चा है। जो ज्योतिष शास्त्र सम्मत उचित नहीं है। पूर्णिमासी के पूर्वार्ध अर्थात प्रारंभ का आधा भाग भद्रा रहता है। यानी 06 मार्च को रात्रि के अंत भाग तक भद्रा रहेगा। इसलिए रात्रि काल में पूर्णमासी होने के बावजूद भी 6 मार्च को होलिका दहन शास्त्र सम्मत नहीं है। होलिका दहन 7 मार्च सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष काल में शाम 7:24 तक करना शास्त्र सम्मत उचित है।

होलिका बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है।

होलिका दहन की विधि- होलिका दहन में किसी पेड़ की शाखा को जमीन में गाड़कर उसे चारों तरफ से लकड़ी, कंडे या उपले से ढ़क दिया जाता है। इन सारी चीजों को शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है। इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां और उबटन डाले जातें है। ऐसी मान्यता है कि इससे साल भर व्यक्ति को आरोग्य कि प्राप्ति होती है और सारी बुरी बलाएं इस अग्नि में भस्म हो जाती हैं। होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है। होलिका दहन को कई जगह छोटी होली भी कहते हैं।

होलिका भस्म धारण मंत्र

ॐ वंदितासी सुरेंद्रन साथ शिवादीभिः।
अतस्तवम पाहीनो भीतेरभूषित भूतिदा भव।।

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