हाथ नहीं तो क्या हौसला तो है, खगड़िया की कृष्णा चाहती है आत्मनिर्भर होना, पैरों से लिखती है, सरकार से की मांग

DNB Bharat Desk

 

डीएनबी भारत डेस्क 

कहा जाता है कि जब मन में विश्वास और हौसला हो तो इंसान जीवन में हर मुसीबत को पार कर जाता है। हौसला हमें लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रेरित करता है। इन बातों को साबित कर रही है खगड़िया जिले अंतर्गत अलौली प्रखंड की भुपेंद्र यादव की 15 वर्षीय पुत्री कृष्णा। कृष्णा ने वर्ष 2016 में एक दुर्घटना में अपने दोनों हाथ तो खो दिया लेकिन अपना हौसला नहीं खोया और अपनी पढ़ाई जारी रखी। हाथों के नहीं रहने से कृष्णा को लिखने में दिक्कत होती थी तो उसने हाथ की जगह पैरों से लिखना शुरू किया और धीरे धीरे उसने पैर से लिखने की आदत बना ली।

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उच्च शिक्षा हासिल करना चाहती है कृष्णा
कृष्णा बताती है कि वह उच्च शिक्षा हासिल कर खुद के पैरों पर खड़े होना चाहती है। वह दुर्घटना में अपने हाथ तो गंवा दी लेकिन उसके हौसले मानो बढ़ ही गए। कृष्णा बताती है कि वह किसी के उपर निर्भर नहीं रहना चाहती है। उसकी दिव्यांगता उसके संकल्प और ललक के बीच रोड़ा नहीं बने इसलिए वह पैरों से लिखना शुरू कर दी। 15 वर्षीया कृष्णा पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ खेलकूद में भी दिलचस्पी रखती हैं। कृष्णा कहती है कि सरकार द्वारा महावीर विकलांग मिशन के तहत 400 सौ रुपये मिलते हैं।मैं भविष्य में पढ़ लिखकर जॉब करना चाहती हूं।अपने परिवार की देखभाल करना चाहती हूं। इसके साथ-साथ अपने जिले सहित राज्य का नाम रौशन देश-विदेश में करना चाहती हूं। जिस वजह से मुझे सरकार से मदद की जरूरत है। उन्होंने ने बताई कि 2 भाई और 6 बहन में तीसरे नम्बर पर वो है। अभी एसएस हाईस्कूल, अलौली में 9वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही है।

 

हादसे में गंवा दिए थे दोनों हाथ:
कृष्णा कुमारी जब 9 वर्ष की थी तब स्कूल से घर आने के बाद अपने भाई बहन के साथ छत पर खेलने गयी थी। जहां हाथों का स्पर्श 11हजार वोल्टेज के बिजली के तार से हो गया जिसके बाद इलाज के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अलौली ले गये वहां से रेफर के बाद खगड़िया और खगड़िया से भागलपुर और भागलपुर से पटना ले गए। जहां डाक्टरों को ईलाज के दौरान उसके दोनों हाथ काटना पड़ा। घटना के बाद छात्रा को तृतीय कक्षा तक की पढ़ाई कर अपनी पढ़ाई रोकने पड़ी थी। लेकिन उसने भी आम बच्चों की तरह कुछ कर दिखाने की दृढ़ इच्छा जताई। अपने माता पिता और भाई बहनों के लिए कुछ करने की मन में इच्छा जताते हुए उसने फिर से हाथ नहीं रहने के बावजूद पैर से ही लिखकर पढ़ना शुरू किया।

“हादसे के बाद मम्मी ने सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया। फिर मैंने पैर से लिखना शुरू किया। अभी 9वीं कक्षा की तैयारी कर रही हूं। सरकार मुझे मदद करे ताकि आगे भी पढ़ सकूं। मेरे पिता मजदूरी कर पूरे परिवार का भरण पोषण करते हैं। 400 रुपए विकलांग राशि मिलता है उससे क्या होगा?” डीएम साहब से आग्रह है कि मेरे दोनों हाथ लगाने का प्रयास करें…

खगड़िया से राजीव कुमार 

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