जीवन समर उपन्यास में परिवर्तन की अकुलाहट दिख रही है – डॉ चंद्रभानु प्रसाद सिंह

DNB Bharat Desk

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जीवन समर उपन्यास में परिवर्तन की अकुलाहट दिख रही है। उपन्यासकार राजेन्द्र राजन ने इस उपन्यास के पात्र के माध्यम से यह संदेश दिया है कि इस देश में वैचारिक रूप से परिपक्व कम्युनिष्ट नहीं होने के कारण कम्युनिष्ट आंदोलन सफल नहीं हुआ। कम्युनिष्टों के भीतर के अंतरविरोध को इस उपन्यास में दिखाया गया है। जीवन समर का परिअवसान जीवन संघर्ष से होता है। उक्त बातें बीहट रतन चौक स्थित डॉ. संगीता राजन चिकित्सालय परिसर में शनिवार को चर्चित लेखक प्रलेस के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन लिखित जीवन समर उपन्यास का लोकार्पण करते हुए लोकार्पण सह परिचर्चा में मुख्य वक्ता एलएनएमयू के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रख्यात आलोचक डॉ. चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा।

जीवन समर उपन्यास में परिवर्तन की अकुलाहट दिख रही है - डॉ चंद्रभानु प्रसाद सिंह 2उपन्यास का लोकार्पण आगत अतिथियों ने संयुक्त रूप से किया। मुख्य अतिथि डॉ प्रसाद ने कहा कि लेखक ने राहुल सांकृत्यायन एवं यशपाल की परंपरा का निर्वाह किया है। स्वाधीनता आंदोलन का उत्कर्ष काल और आजादी के बाद का वर्तमान इस उपन्यास के केंद्र में है। विशिष्ट अतिथि बिहार प्रलेस के महासचिव रविन्द्र नाथ राय ने कहा कि जीवन समर एक राजनैतिक उपन्यास है। राजेन्द्र राजन एक्टिविस्ट रचनाकार हैं। इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने यह संदेश दिया है कि बिना कम्युनिज्म के समाज नहीं बदल सकते। उन्होंने गांधीवाद से वर्ग संघर्ष को इस उपन्यास में दिखाया है। वहीं बिहार प्रलेस के सचिव सत्येन्द्र कुमार ने उपन्यास के केंद्रीय भाव को रखा एवं इसे एक जरूरी किताब बताया।

जीवन समर उपन्यास में परिवर्तन की अकुलाहट दिख रही है - डॉ चंद्रभानु प्रसाद सिंह 3ई. सुनील कुमार सिंह ने जब इतिहास और साहित्य का मिलन होता है तो वह लेखन सफल हो जाता है। जीवन समर उपन्यास हर किसी को पढ़ना चाहिए जिनके भीतर समाज परिवर्तन की अकुलाहट हो। अतिथियों का स्चागत एवं परिचर्चा का विषय प्रवेश कराते हुए लेखक राजकिशोर सिंह ने कहा कि मौत की शताब्दी में इस तरह के उपन्यास का आना सुखद है। उन्होंने उपन्यासकार राजेन्द्र राजन की 78वां जन्मदिवस पर बधाई देते हुए कहा कि दुनिया जब तक रहेगी मार्क्सवाद किसी न किसी रूप में अवश्य रहेगी। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार डॉ. सीताराम प्रभंजन एवं संचालन डॉ. कुंदन कुमार ने किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में आनंद ने अपनी टीम के साथ कलम आज उनकी जय बोल को प्रस्तुत किया वहीं आचार्य सुदामा गोस्वामी ने रोटियां गरीब की प्रार्थना बनी रही को सुनाकर लोगों का मन मोह लिया।

जीवन समर उपन्यास में परिवर्तन की अकुलाहट दिख रही है - डॉ चंद्रभानु प्रसाद सिंह 4धन्यवाद ज्ञापन डॉ. शगुफ्ता ताजवर ने किया। प्रलेस बेगूसराय इकाई की सचिव कुंदन कुमारी एवं प्रलेस के सदस्य डॉ. रामरेखा ने भी परिचचर्चा में हिस्सा लिया। मौके पर दिनकर पुस्तकालय के अध्यक्ष विश्वंभर सिंह, जयप्रकाश सिंह, डॉ. संगीता राजन, दिलेर अफगन, उपमुख्य पार्षद ऋषिकेश कुमार, अशोक पासवान, नवीन सिंह, राजेश कुमार सिंह, रामनाथ सिंह, अवनीश राजन, मनोरंजन विप्लवी, पंकज कुमार, संजीव फिरोज, जनसुराज के आर. एन. सिंह, शिक्षक नेता अमरनाथ सिंह, रामकुमार, संजीत कुमार, नरेन्द्र सिंह, अनिल पतंग, अशोक रजक, फुलेना पासवान, विनोद बिहारी, बबलू दिव्यांशु समते सैकड़ों बुद्धिजीवी व साहित्यकार मौजूद थे।

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