ईश्वर का वह मर्म जो ब्रम्हा विष्णु और महेश न जान सके ऋषि मुनि योगी जन्म जन्मांतर तक तप योग हठ योग करते करते थक गए और नही जान सके ।
डीएनबी भारत डेस्क
कुलिक काल में राम नाम मंत्र क जाप ही मुक्ति का ससख्त साधन है। उक्त बातें उत्तर प्रदेश जौनपुर से पधारे आचार्य श्री श्याम जी महाराज शास्त्री ने बुधवार की रात मेघौल पश्चियारी शिव मंदिर के प्रांगन में आयोजित राम कथा के पांचवे दिन बुधवार को कहा।
उन्होने बुधवार की रात राम कथा में केवट और राम प्रसंग सुनाते हुए कहा कि जब भगवान श्री राम मां सीता और लक्ष्मण के साथ सरयुग पार करने तट पर पहुंचे, और निषाद राज को नाव गंगा के किनारे लाने को कहा तो भक्तराज निषाद ने अपनी नाव को गंगा किनारे लाने से इंकार कर दिया और कहा जब तक आपका पांव पखाड़ न लू तब तक आपको नाव पर नही बिठाउँग और नाव नही लाऊंगा। क्योकि मैं आपके मर्म को जनता हूं ।
ईश्वर का वह मर्म जो ब्रम्हा विष्णु और महेश न जान सके ऋषि मुनि योगी जन्म जन्मांतर तक तप योग हठ योग करते करते थक गए और नही जान सके । ईश्वर के उस मर्म को निषाद राज जनता है । ऐसा सुनकर भगवान अचंम्भित होकर मुस्कुरा दिए, और अंततः भगवान केवट के शर्त को स्वीकार किया। और फिर केवट ने उसका पांव पखडा और सपरिवार पूर्वज सहित भवसागर पार करने का वचन लेते हुए सरयुग पार किया ।
भक्त और भगवान का यह संबंध सर्वश्रेष्ठ और अटूट है । भगवान अपने भक्तों के लिए हमेशा द्रवित होते रहे हैं । आज भी समाज मे जो कोई भी दूसरों की भलाई करता है । दुसरो के दुख से दुखी होता है । विनम्र और सहज होता है समाज उसकी पूजा करता है और वह व्यक्ति भगवान का ही रूप होता है । केवट राम संवाद के सरस् प्रवचन एवं संगीतमय वचन को सुनकर ज्ञान पंडाल में सैकड़ो की संख्या मौजूद लोग कथा सुनकर भाव विभोर हो गए ।
बेगूसराय , खोदावंदपुर संवादाता नितेश कुमार की रिपोर्ट