मिथिला एवं काशी विश्वनाथ सभी पंचांग का एक निर्णय 31अगस्त को हो रक्षाबंधन पर्व- आचार्य अविनाश शास्त्री

30 अगस्त को नही बल्कि 31 अगस्त को होगा सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्र में रक्षाबंधन। काशी विश्वनाथ पंचाग एवं मिथिला क्षेत्र के सभी पंचांगो का एक मत निर्णय 30 अगस्त नहीं 31 अगस्त को होगा रक्षाबंधन।

30 अगस्त को नही बल्कि 31 अगस्त को होगा सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्र में रक्षाबंधन। काशी विश्वनाथ पंचाग एवं मिथिला क्षेत्र के सभी पंचांगो का एक मत निर्णय 30 अगस्त नहीं 31 अगस्त को होगा रक्षाबंधन।

डीएनबी भारत डेस्क 

30अगस्त को रात्रि 9 बजकर 2 मिनट तक रहेगा भद्रा, रक्षाबंधन के लिए भद्रा वर्जित है इसलि पूर्णिमासी तिथि होने के बाद भी 30 अगस्त को नहीं मनाया जायेगा रक्षा बंधन।

शुक्ले पूर्वार्धे अष्टमी पंचदश्योरभद्रकेदशयं चतुर्थयाम परार्द्ध।। ।।मुहूर्तचिन्ता मणि।।45।।

रक्षाबंधन नजदीक आते ही बाजारों में रंग-बिरंगी राखियां सजने लगी हैं दूरदराज के भाई के लिए बहन राखियां कोरियर के माध्यम से भेजना शुरू कर दिया है। लेकिन इस बीच कैलेंडर और पंचांग में प्रकाशित तिथियों को लेकर आमलोगों के बीच उहापोह की स्थिति बनी हुई है। की कब है रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त।

एक तरफ जहां घर-घर में प्रचलित छुट्टी कैलेंडरों में 30 अगस्त को रक्षाबंधन घोषित किया गया है। वहीं दूसरी ओर काशी विश्वनाथ पंचांग सहित मिथिला के विभिन्न पंचांग में 31 अगस्त को रक्षाबंधन का उल्लेख है।

इस संदर्भ में ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री ने कहा है कि छुट्टी का कैलेंडर कोई पंचांग नहीं बल्कि यह दिन एवं तारीख देखने का ईसाई का माध्यम है और हिंदू पर्व त्योहारों का निर्णय पंचांग एवं ज्योतिषी ग्रंथ के अनुसार होता है।

क्या है ज्योतिषीय प्रमाण

रामाचार्य के मुहूर्त चिंतामणि में ऐसा वर्णन है कि पूर्णिमा तिथि के प्रारंभ का आधा भाग भद्रा होता है जिसके अनुसार 30 अगस्त को प्रातः10 बजकर 30 मिनट में पुर्णिमा तिथि का प्रवेश हुआ है परन्तु प्रवेश के साथ ही भद्रा आरम्भ हो गया है एवं यह 30 अगस्त को रात्रि के 9 बजकर 02मिनट तक रहेगा यानी 30 अगस्त को रात्रि 9 बजकर 02मिनट के बाद रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त प्रारंभ होता है जो कि रात्रि काल में रक्षाबंधन शास्त्रिक एवं व्यावहारिक नहीं है।

निर्णय सिंधु, वृद्धगर्ग, धृतगोभिल आदि आचार्य एव ग्रंथो के अनुसार “कर्मणो यस्य यः कालः तत्कालव्यापिनी तिथि” अर्थात जिस समय में जो कर्म किया जाता है उस समय की तिथि को ग्रहण करना चाहिए। चूंकि रक्षा बंधन प्रातः काल का कर्म है इसलिए उदयव्यापिनी तिथि में ही रक्षा बंधन हो।
इसलिए 31 अगस्त को प्रातःकाल रक्षाबंधन शास्त्रसम्मत उचित है।

कब मनाये रक्षा बंधन

31 अगस्त को प्रातः सूर्योदय काल से ही पूर्णिमा की तिथि प्रारंभ हो जाएगी। जोकि प्रातः 7 बजकर 52मिनट तक रहेगा जिस समय भद्रा काल भी नहीं रहेगा अतः 31 अगस्त को ही प्रातःकाल रक्षाबंधन शास्त्र सम्मत और शुभ मुहूर्त है।

क्या है पंचांगों का निर्णय

आचार्य अविनाश शास्त्री कहते हैं कि शास्त्र सम्मत मिथिला के कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित विश्वविद्यालय पंचांग, वैदेही पंचांग, विद्यापति पंचांग, मैथिली पंचांग सहित बनारस से प्रकाशित प्रतिष्ठित काशी विश्वनाथ पंचांग आदि सभी सम्मानित पंचांग में 31 अगस्त को ही रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त में मनाये जाने का निर्णय दिया गया है जोकि शास्त्रसम्मत है।

वैदिक रक्षासूत्र

रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है। यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प बांधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है।

प्रतिवर्षश्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है, इस दिन गुरु अथवा पुरोहित अपने जजमान एवं शिष्यों को, साथ ही इसी दिन बहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं। यह रक्षासूत्र यदि वैदिक रीति से बनाई जाए तो शास्त्रों में भी उसका बड़ा महत्व है।

कैसे बनायें वैदिक राखी 

वैदिक राखी बनाने के लिए सबसे पहले एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें। दूर्वा, अक्षत (साबूत चावल), केसर या हल्दी, शुद्ध चंदन, सरसों के साबूत दाने
इन पांच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधांकर सिलाई कर दें। फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें। सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पांच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं।

वैदिक राखी का महत्त्व

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वैदिक राखी में डाली जानेवाली वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जानेवाले संकल्पों को पोषित करती हैं।

दूर्वा- जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जायें, बढ़ते जायें…’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा। दूर्वा गणेशजी की प्रिय है अर्थात् हम जिनको राखी बांध रहे हैं उनके जीवन में आनेवाले विघ्नों का नाश हो जाय।

अक्षत (साबूत चावल)– हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के, गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखंड और अटूट हो, कभी क्षत-विक्षत न हो – यह अक्षत का संकेत है। अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं। जो कुछ अर्पित किया जाय, पूरी भावना के साथ किया जाय।

केसर या हल्दी- केसरकेसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो। उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय। केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं। हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है। यह नजरदोष व नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है।

चंदन- चंदन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है। यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बांध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो। उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे । उनकी सेवा-सुवास दूर तक फैले।

सरसों- सरसोंसरसों तीक्ष्ण होती है। इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में, समाज-द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें। अतः यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक संकल्पों से परिपूर्ण होकर सर्व-मंगलकारी है।

रक्षासूत्र बाँधते समय यह श्लोक बोला जाता है

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां अभिबध्नामि१ रक्षे मा चल मा चल।।

रक्षासूत्र बांधते समय एक श्लोक और पढ़ा जाता है जो इस प्रकार है-

ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं,
शतानीकाय सुमनस्यमाना:।
तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।

इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, मां अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बांध सकती है। यही नहीं, शिष्य भी यदि इस वैदिक राखी को अपने सद्गुरु को प्रेमसहित अर्पण करता है तो उसकी सब अमंगलों से रक्षा होती है भक्ति बढ़ती है।

क्या है पौराणिक कथा

महाभारत में यहरक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बांधी थी। जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई। इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहितवर्ष भर सूखी रहते हैं।

रक्षा सूत्रों के विभिन्न प्रकार

1-विप्र रक्षा सूत्र- रक्षाबंधन के दिन किसी तीर्थ अथवा जलाशय में जाकर वैदिक अनुष्ठान करने के बाद सिद्ध रक्षा सूत्र को विद्वान पुरोहित ब्राह्मण द्वारा स्वस्तिवाचन करते हुए यजमान के दाहिने हाथ मे बांधना शास्त्रों में सर्वोच्च रक्षा सूत्र माना गया है।

2-गुरु रक्षा सूत्र- सर्वसामर्थ्यवान गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए इसे बांधते है।

3-मातृ-पितृ रक्षा सूत्र- अपनी संतान की रक्षा के लिए माता पिता द्वारा बांधा गया रक्षा सूत्र शास्त्रों में “करंडक” कहा जाता है।

4-भातृ रक्षा सूत्र- अपने से बड़े या छोटे भैया को समस्त विघ्नों से रक्षा के लिए बांधी जाती है देवता भी एक दूसरे को इसी प्रकार रक्षा सूत्र बांध कर विजय पाते है।

5-स्वसृ-रक्षासूत्र- पुरोहित अथवा वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा रक्षा सूत्र बांधने के बाद बहिन का पूरी श्रद्धा से भाई की दाहिनी कलाई पर समस्त कष्ट से रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधती है। भविष्य पुराण में भी इसकी महिमा बताई गई है। इससे भाई दीर्घायु होता है एवं धन-धान्य सम्पन्न बनता है।

6-गौ रक्षा सूत्र- अगस्त संहिता अनुसार गौ माता को राखी बांधने से भाई के रोग शोक डोर होते है। यह विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है।

7-वृक्ष रक्षा सूत्र – यदि कन्या को कोई भाई ना हो तो उसे वट, पीपल, गूलर के वृक्ष को रक्षा सूत्र बांधना चाहिए पुराणों में इसका विशेष उल्लेख है। बरगद या पीपल के धागा लपेटने की प्रक्रिया रक्षाबंधन से ही संबंधित है।

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