माता की प्रतिमा का निर्माण नहीं की जाती, बंगाली पद्धति से की जाती है मां दुर्गा की पूजा
डीएनबी भारत डेस्क
प्रखंड मुख्यालय से करीब एक किलोमीटर दुरी पर स्थित रानी दो पंचायत के बेगमसराय माता दुर्गा मैया का मंदिर आस्था का बहुत बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां हर साल नवरात्रा में हजारो की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है। लोग कहते है कि यह मंदिर अपने आप में रहस्य समेटे हुए है। मान्यता है की माता की कृपा इतनी प्रवल है । जिसने भी यहां आकर जो माता से मांगी उसका जीवन बदल गया। यही बजह है मैया हर किसी के दिल में बसे हुए है।

बेगमसराय गांव की माता दुर्गा मैया का अपना अलग महत्व है। वर्षो पूर्व बंगाल से लाई गई मां दुर्गे की पूजा बंगाली पद्धति से की जाती है। यह एक मात्र दुर्गा स्थान है। जहां आज भी बंगाली समुदाय की परंपरा को जीवंत रखे हुए है। प्रखंड क्षेत्र के बेगमसराय दुर्गा मां की महिमा अपार है। उनके दरबार में जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से जाते हैं उनकी मन्नते पूरी करती हैं मां । यहां की खास बात यह है की यहां प्रतिमा का निर्माण नहीं होता है। एक छोटी सी प्रतिमा मंदिर परिसर में है जिस प्रतिमा का विशर्जन नहीं होता है। मंदिर में बेगूसराय ही नहीं वरन कई जिले के श्रद्धालु मन्नतें पूरी होने पर मां के दरबार में आते हैं।
क्या है इतिहास
इस संबंध में बेगमसराय के बुजुर्ग सुरेन्द्र मोहन सिन्हा ने बताया कि लगभग सात सौ साल से मां दुर्गा की उपासना की जा रही है। जनमानस में ऐसा प्रचलित है कि बंगाल की नदिया शांतिपुर के मंदराज जब अपने पूर्वजों से अलग होकर अपने गांव बेगमसराय चले तो कुलदेवी ने मां दुर्गा को अपने साथ गांव लाने के लिए मना लिए थे। मां को यहां लाने में मां की शर्त के अनुसार प्रत्येक एक कदम पर एक बकरे एवं शीषकोहरा की बली तथा एक मिल पर एक भैसा का बलि देना होगा। इस शर्त पर मां चले थे। लेकिन बंगाल से मां का प्रतिमा का मूर्ति लाने के दौरान भगवानपुर थाना के लखनपुर बलान नदी के किनारे नदी पार करने के लिए नदी तट के किनारे रखा गया और आस पास के इलाके में बकरे व् शीषकोहरा की खोजबीन की गई लेकिन कही नहीं मिला। जिस कारण लखनपुर नदी के किनारे ही मां दुर्गा को स्थापित कर बंगाली समुदाय के लोगो ने पूजा पाठ शुरू कर दिया। तब से कुछ बंगाली समुदाय के लोग वही बस गए और तब से आज तक लखनपुर और बेगमसराय दोनों जगह पूजा की जाती है। भवाननपुर के चक्रव्रती परिवार के पंडित आकर पहले बेगम सराय में पूजा करते है। उसके बाद लखनपुर में पूजा की जाती है
क्या है पूजा-पद्धति
मां की पूजा के बारे में बंगाली समुदाय के लोगो ने बताया कि पहले बेगमसराय में जिउतिया पारन के नवमी के दिन पूजा का संकल्प लिया जाता है। फिर सप्तमी के दिन वैधानिक ढंग से गंगा नदी में पूजा कर कलश स्थापित की जाती है। अष्टमी की रात में बंगाली समुदाय के बकरे का बलि दी जाती है। एवं नवमी को सार्वजनिक रूप से सैकड़ो बकरे की बलि पड़ती है बंगाली समुदाय के लोगो का कहना है कि भवानंदपुर के बंगाली पुरोहितके द्वारा पहले बेगमसराय के मंदिर में ही नवमी की दिन में मां को खुश करने के लिए पहले फुलहांस होता है। इसके बाद शिष्कोहरा को कटा जाता है । फिर यहां से पंडित नौवी के रात में लखनपुर जाकर मां का फुलहांस करता है उसके बाद लखपुर में शिष्कोहरा का बलि शुरू की जाती।
कहते है बेगमसराय गांव निवासी लखनपुर दुर्गा मंदिर के मेरपति
बेगमसराय गांव निवासी महेश प्रसाद सिन्हा ने बताया कि 1850 ई में किये गए सर्वे कार्य में भी इस शक्तिपीठ का उल्लेख होने से इस बात का संकेत मिलता है कि यहां सैकड़ों वर्षो से पूजा-अर्चना की जाती है। मां देवी के पराक्रम से प्रभावित होकर नरहन स्टेट की मालकिन विशेश्वरी कुमारी ने मंदिर निर्माण के लिए जमीन प्रदान की थी। उन्होंने बताया कि लखनपुर दुर्गा मंदिर का परिसर सात बीघा में फैला हुआ है। मंदिर परिसर के बाद शेष जमीन में साल भर खेतो में फसल लगाईं जाती है। फसल से जो धन इकट्ठा होता है। वह हर साल मंदिर के कार्य में लगाये जाते है। उन्होंने बताया कि कोई भी श्रद्धालु को अगर मन्नत पूरी होने पर बेगमसराय और लखनपुर कही भी प्रसाद चढ़ा सकते है। दोनों माता एक ही है। बंगाली पद्धति से ही दोनों जगह पूजा की जाती है।
डीएनबी भारत डेस्क