नवरात्र विशेष: माता वैष्णो देवी धाम की महिमा है अपरंपार
शारदीय नवरात्र का आज पहला दिन है। हम आपको नवरात्र के दौरान एक शक्तिपीठ के बारे में बताएंगे, और बताएंगे शक्तिपीठ की महत्ता। कहा जाता है कि माता सती ने जब अपना शरीर त्याग किया था तब भगवान शिव ने तांडव शुरू कर दिया था। भगवान शिव के तांडव से पृथ्वी पर हाहाकार मचने लगा तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के 51 टुकड़े कर दिए थे जो धरती पर विभिन्न जगहों पर गिरे। हम आपको बताएंगे उन्हीं 51 शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ माता वैष्णो देवी मंदिर के बारे में।
डीएनबी भारत डेस्क
देश ही नहीं दुनिया में प्रसिद्ध माता वैष्णो देवी का मंदिर उत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां हम माता वैष्णो देवी की पूजा अर्चना करते हैं। यह मंदिर जमू कश्मीर के कटरा में स्थित त्रिकुटा पहाड़ पर स्थित है। यह मंदिर करीब 5200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
कहां और कैसा है मंदिर
यह मंदिर जम्मू कश्मीर के कटरा स्थित त्रिकुटा पहाड़ पर स्थित है, जिसे माता का दरबार भी कहते हैं। यहां एक गुफा में स्वयंभू तीन मूर्तियां विराजमान हैं। यहां देवी काली दाएं, लक्ष्मी जी बीच में और मां सरस्वती बाएं विराजमान हैं। यह पवित्र गुफा 98 फीट की है जहां एक चबूतरे पर माता विराजमान हैं।
पौराणिक कथा
माना जाता है कि देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के कल्याण के लिए राजकुमारी के रूप में प्रकट हुई थी। बाद में फिर वह सूक्ष्म रूप में परिवर्तित हो गई।
अर्धकुमारी की है विशेष महत्ता
कहा यह भी जाता है कि एक बार भैरो नाथ एक सुंदर कन्या के पीछे गलत नीयत से पड़ गए थे। माता तब भागते हुए त्रिकुटा पहाड़ पर पहुंची थी। वहां उन्होंने एक गुफा में करीब 9 महीने तक तपस्या की। इस दौरान हनुमान जी भी माता की रक्षा के लिए पहुंचे थे और वृद्ध साधु के रूप में उन्होंने गुफा के बाहर पहरा दिया था।
भैरोनाथ देवी का पीछा करते हुए गुफा तक पहुंच गए थे और हनुमान जी ने उन्हे समझाया था कि जिस सुंदरी के पीछे पड़े हो वह कोई साधारण सुंदरी नहीं देवी है, पीछा छोड़ दो। लेकिन जब भैरोनाथ नहीं माने तो देवी दूसरे रास्ते से निकल गई थी, वही गुफा आज अर्धकुमारी के रूप में विख्यात है।
माता ने किया भैरोनाथ का वध
भैरोनाथ जब देवी का पीछा नहीं छोड़ रहे थे तब हनुमान जी ने उन्हे युद्ध के लिए ललकारा। दोनो के बीच युद्ध छिड़ गया और युद्ध भीषण हो गया। दोनों के बीच युद्ध का अंत न देख देवी ने भैरोनाथ से युद्ध शुरू किया और फिर उनका वध कर दिया। देवी के प्रहार से भैरोनाथ का सर वहां से तीन किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर गिरा जो आज भैरोनाथ के नाम से जाना जाता है।
वध के बाद भैरोनाथ को हुआ पश्चाताप
जब माता ने भैरोनाथ का वध कर दिया तब भैरोनाथ को पश्चाताप हुआ और उन्होंने माता से क्षमादान की मांग की। उन्होंने कहा कि वे मोक्ष की प्राप्ति के लिए माता का पीछा कर रहे थे। तब माता ने उन्हे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त करते हुए कहा कि यहां मेरा दर्शन करने वाले जब तक भैरोनाथ का दर्शन नहीं करेंगे तब तक उनका तीर्थ पूरा नहीं होगा।
मंदिर की कथा
मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कटरा से कुछ दूरी पर स्थित एक गांव में श्रीधर नामक भक्त रहते थे। वे निःसंतान थे और देवी के बड़े भक्त थे। एक दिन उन्होंने भंडारा करने की सोची और गांव वाले को निमंत्रण दे दिया। एक दिन वे लोगों को निमंत्रण देते हुए लोगों के घर गए ताकि भंडारा के लिए सामग्री मिल सके।
जब श्रीधर लौट कर घर आए तो उन्हें ध्यान आया कि सामग्री कम है और मेहमान अधिक। वे काफी तनाव में थे। भंडारा के दिन जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो वे अपने घर के बाहर देवी की पूजा करने बैठ गए, इस बीच मेहमान भी आने लगे। एक एक कर मेहमान आते गए और बैठते गए।
पूजा के बाद जब श्रीधर ने अपना आंख खोला तो उन्होंने देखा कि छोटे से घर में इतने सारे लोग बैठे हुए थे और एक सुंदर कन्या सबको भोजन पड़ोस रहे थे। श्रीधर उस सुंदर कन्या को नहीं जानते थे लेकिन भंडारा समाप्त होने के बाद कन्या गायब हो गई। बाद में फिर उनके सपने में देवी ने बताया कि वह वैष्णो देवी हैं।