भीरहा की होली एक बार देख लेंगे तो बार बार आएंगे, जानें क्या है खासियत…

 

डीएनबी भारत डेस्क 

समस्तीपुर जिले के भिड़हा में होली के दौरान अगर आप एक बार आ जाएं तो बार बार आना यहां पसंद करेंगे। यहां की अनोखी होली विश्व प्रसिद्ध है। भिड़हा में ब्रज की तर्ज पर हर वर्ष एक पोखर पर पूरा गांव जुटता है। होली का समारोह यहां 3 दिनों तक चलता है। मुजफ्फरपुर समेत देश के दूसरे राज्यों से भी नर्तकी और कलाकारों को बुलाया जाता है लेकिन शालीनता ऐसी की होली के धुन में भी लोग भूल से भी गलती नहीं करते। मदिरा का सेवन वर्जित होता है। जिसका नतीजा है कि यहां कलाकार भी बार बार आना पसंद करते हैं। तभी तो राष्ट्रकवि दिनकर ने रोसड़ा के भिड़हा गांव को बिहार का वृंदावन बताया था। जहां आज भी ब्रज के तर्ज पर होली खेलने की परम्परा है। होली के दो तीन माह पूर्व से ही गांव में उत्सवी माहौल कायम रहता है। गांव में रात में युवाओं की टोली होली गाना शुरू कर देती है। गांव के तीनों टोल एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में सजावट के साथ साथ अच्छे से अच्छा बैण्ड पार्टी एवं नर्तकी लाने का प्रयास करते हैं।

 

होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन की संध्या से ही पूरब, पश्चिम एवं उत्तर टोले में निर्धारित स्थानों पर अलग-अलग नर्तकियों का नृत्य आयोजित होता है। इस गांव में जगह-जगह देश के बड़े-बड़े कलाकारों के द्वारा महफिल सजाया जाता है। देर रात्रि के बाद गाजे बाजे के साथ तीनों टोले से निकला जुलूस गांव के उच्च विद्यालय के प्रांगण में पहुंचता है। जहां भव्य होलिका दहन किया जाता है। साथ ही पटना बनारस, राजस्थान, बेंगलुरू और दिल्ली से आये बैण्ड पार्टी के बीच घंटो प्रतियोगिता होती है। उसमें प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले को ग्रामीण पुरस्कृत करते हैं।

Midlle News Content

इस होली के लिए भी बुक कर लिए गए हैं कलाकार
गांव के लोगों का कहना है कि इस होली की तैयारी को लेकर भी पिछले वर्ष ही नर्तकी और गीतकारों को बुक कर दिया गया था इस बार बनारस हरिद्वार के अलावे ब्रज से भी कलाकारों को बुलाया गया है। होली के दिन इस गांव में बड़े-बड़े कलाकारों द्वारा महफिल गांव में दर्जनों जगह सजाया जाएगा। जहां होली के गीतों पर बूढ़े, जवान और बच्चे रंग गुलाल के साथ झूम झूम कर इस महफिल का आनंद लेते हैं। बाद में गांव की तीनों टोली दोपहर बाद गांव के एक किनारे स्थित फगुआ पोखर पहुंचते हैं। जहां लोग स्नान करने नहीं बल्कि होली खेलने के लिए पहुंचते हैं। जिस कारण ही इस पोखर का नाम फगुआ पोखर रखा गया है।जहां रंगो की पिचकारी जिससे पोखर का पानी भी गुलाबी रंग में बदल जाता है। भिरहा की होली न सिर्फ मिथिलांचल में बल्कि देश स्तर पर इसकी एक अलग पहचान है। होली के रंग में रंगने के बावजूद भी नहीं होती नर्तकी के साथ छींटाकशी, भिरहा की होली में 3 दिनों तक कार्यक्रम का आयोजन होता है जिसमें बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से नर्तकी के अलावे गायन कलाकारों को बुलाया जाता है। लेकिन आज तक के इतिहास में नर्तकी अथवा गायन कलाकारों के साथ कभी अभद्र व्यवहार नहीं हुआ जिसका नतीजा है कि 1 वर्ष पूर्व ही कलाकार पुनः अगले वर्ष के लिए बुक हो जाते हैं।

फगुआ पोखर पर जमा होता है पूरा गांव
होली के दिन में मर्द को कौन कहे घर की महिलाएं और बच्चे भी भगवा पोखर पर जमा होते हैं जहां लोग पोखर में रंग भर कर एक दूसरे को रंगते नजर आते हैं यह नजारा अद्भुत होता है लोग आपस में एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर आपसी प्रेम और भाईचारा का मिसाल पेश करते हैं।

समस्तीपुर से अनिल चौधरी 

- Sponsored -

- Sponsored -