बेगूसराय के इस मंदिर में मां की प्रतिमा का नहीं होता है निर्माण, बंगाली पद्धति से की जाती है पूजा अर्चना

DNB Bharat Desk

माता के प्रतिमा का निर्माण नहीं किया जाता, बंगाली पद्धति से की जाती है मां दुर्गे की पूजा। जो भी भक्त सच्चे दिल से जाते हैं मंदिर उनकी मन्नते पूरी करती हैं मां

डीएनबी भारत डेस्क 

बेगूसराय जिलांतर्गत बछवाड़ा प्रखंड के रानी दो पंचायत के बेगमसराय गांव की मां दुर्गा का अपना अलग महत्व है। वर्षो पूर्व बंगाल से लाई गई मां दुर्गे की पूजा बंगाली पद्धति से की जाती है। यह एक मात्र दुर्गा स्थान है। जहां आज भी बंगाली समुदाय की परंपरा को जीवंत रखे हुए है। प्रखंड क्षेत्र के बेगमसराय दुर्गा मां की महिमा अपार है। उनके दरबार में जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से जाते हैं उनकी मन्नतें पूरी करती हैं। यहां की खास बात यह है की यहां प्रतिमा का निर्माण नहीं होता है। एक छोटी सी प्रतिमा मंदिर परिसर में है जिस प्रतिमा का विसर्जन नहीं होता है। मंदिर में बेगूसराय ही नहीं वरन कई जिले के श्रद्धालु मन्नतें पूरी होने पर मां के दरबार में आते हैं।

- Sponsored Ads-

क्या है इतिहास
इस संबंध में बेगमसराय के बुजुर्ग सुरेन्द्र मोहन सिन्हा ने बताया कि लगभग सात सौ साल से मां दुर्गा की उपासना की जा रही है। जनमानस में ऐसा प्रचलित है कि बंगाल की नदिया शांतिपुर के मंदराज जब अपने पूर्वजों से अलग होकर अपने गांव बेगमसराय चले तो कुलदेवी ने मां दुर्गा को अपने साथ गांव लाने के लिए मना लिया था। मां को यहां लाने में मां की शर्त के अनुसार प्रत्येक एक कदम पर एक खस्सी एवं शीषकोहरा की बली तथा एक मिल पर एक भैसा का बलि देना होगा। इस शर्त पर मां चले थे।

बंगाल से मूर्ति लाने के दौरान भगवानपुर थाना के लखनपुर बलान नदी के किनारे नदी पार करने के लिए नदी तट के किनारे रखा गया और आस पास के इलाके में खस्सी व शीषकोहरा की खोजबीन की गई लेकिन कही नहीं मिला। जिस कारण लखनपुर नदी के किनारे ही मां दुर्गा को स्थापित कर बंगाली समुदाय के लोगों ने पूजा पाठ शुरू कर दिया। तब से कुछ बंगाली समुदाय के लोग वहीं बस गए और तब से आज तक लखनपुर और बेगमसराय दोनों जगह पूजा की जाती है। भवाननपुर के चक्रव्रती परिवार के पंडित आकर पहले बेगमसराय में पूजा करते है उसके बाद लखनपुर में पूजा की जाती है

क्या है पूजा-पद्धति
मां की पूजा के बारे में बंगाली समुदाय के लोगो ने बताया कि पहले बेगमसराय में जिउतिया पारन के नवमी के दिन पूजा का संकल्प लिया जाता है। फिर सप्तमी के दिन वैधानिक ढंग से गंगा नदी में पूजा कर कलश स्थापित की जाती है। अष्टमी की रात में बंगाली समुदाय के अनुसार खस्सी का बलि दी जाती थी एवं नवमी को सार्वजनिक रूप से सैकड़ो खस्सी की बलि पड़ती थी लेकिन कोरोना काल के समय से बलि प्रथा को बंगाली समुदाय के लोगो ने बंद कर दिया है।

बंगाली समुदाय के लोगो का कहना है कि भवानंदपुर के बंगाली पुरोहित के द्वारा पहले बेगमसराय के मंदिर में ही नवमी की दिन में मां को खुश करने के लिए पहले फुलहांस होता है। इसके बाद शिशकोहरा को काटा जाता है। फिर यहां से पंडित नवमी की रात में लखनपुर जाकर मां का फुलहांस करता है उसके बाद लखपुर में शिशकोहरा का बलि शुरू की जाती।

कहते है बेगमसराय गांव निवासी लखनपुर दुर्गा मंदिर के मेरपति
बेगमसराय गांव निवासी महेश प्रसाद सिन्हा ने बताया कि 1850 ई में किए गए सर्वे कार्य में भी इस शक्तिपीठ का उल्लेख होने से इस बात का संकेत मिलता है कि यहां सैकड़ों वर्षो से पूजा-अर्चना की जाती है। मां देवी के पराक्रम से प्रभावित होकर नरहन स्टेट की मालकिन विशेश्वरी कुमारी मंदिर निर्माण के लिए जमीन प्रदान की थी। उन्होंने बताया कि लखनपुर दुर्गा मंदिर का परिसर सात बीघा में फैला हुआ है। मंदिर परिसर के बाद शेष जमीन में साल भर खेतो में फसल लगाईं जाती है। फसल से जो धन इकट्ठा होता है। वह हर साल मंदिर के कार्य में लगाये जाते है। उन्होंने बताया कि कोई भी श्रद्धालु को अगर मन्नत पूरी होने पर बेगमसराय और लखनपुर कहीं भी प्रसाद चढ़ा सकते है। दोनों माता एक ही है। बंगाली पद्धति से ही दोनों जगह पूजा की जाती है।

बछवाड़ा, बेगूसराय से देवेंद्र कुमार 

Share This Article