माघ पूर्णिमा माघ महीने के अंत का प्रतीक है और आध्यात्मिक चिंतन और शुद्धि का समय है –  स्वामी चिदात्मन जी महाराज

DNB BHARAT DESK

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बुधवार को माघी पूर्णिमा को लेकर मंगलवार के शाम से ही श्रद्धालुओं, स्नानार्थियों, भक्त, मुंडन संस्कार, जप-तप, भक्ति, पूजा, अर्चना, अराधना,दान, महादान करने को लेकर भीड़ उमड़ रही थी। श्रद्धालुओं की कसमकश भीड़ के बीच रामघाट से लेकर मुख्य घाट एवं नमामी गंगे घाट श्रद्धालुओं से पटा रहा। भीड़ एसी उमड़ पड़ी थी कि वहां सुई के नोक बराबर भी भूमि कहीं खाली नहीं था। वहीं इससे सामने साफ-सफाई, विधि-व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था, पुलिसिया व्यवस्था कब को घुटना टेक चुकी थी। यातायात व्यवस्था पर बढ़ते दबाव ने पटना और बेगूसराय जिले के परिवहन, सुरक्षा और विधि – व्यवस्था का पोल खोल कर रख दिया।

माघ पूर्णिमा माघ महीने के अंत का प्रतीक है और आध्यात्मिक चिंतन और शुद्धि का समय है -  स्वामी चिदात्मन जी महाराज 2वहीं इस दौरान प्रातः तीन बजे से ही स्थानीय गोताखोर गंगा नदी में लगातार भ्रमणशील रहे। वहीं दूसरी ओर गंगा नदी तट पर मुंडन संस्कार जप-तप भक्ति पूजा अर्चना अराधना दान महादान करने वालों की भीड़ उमड़ रही थी। वहीं इसका साक्षी व चश्मदीद गवाह राज्य सरकार के कैबिनेट में नगर एवं आवास मंत्री सह प्रभारी मंत्री भागलपुर नितीन नवीन भी राजधानी मुख्यालय से भागलपुर में प्रधानमंत्री के निर्धारित कार्यक्रम को लेकर आयोजित एनडीए की बैठक में भाग लेने जानें के दौरान राजेंद्र सेतू पर दोनों तरफ वाहनों की लम्बी कतार देखकर बने। वहीं इस दौरान दोनों जिलों के पुलिस प्रशासन और स्काउट टीम को पसीना छूट रहा था।

माघ पूर्णिमा माघ महीने के अंत का प्रतीक है और आध्यात्मिक चिंतन और शुद्धि का समय है -  स्वामी चिदात्मन जी महाराज 3वहीं माघी पूर्णिमा को लेकर भक्तों के माध्यम से संदेश देते हुए बुधवार को सिमरिया धाम गंगा तट स्थित सर्वमंगला परिवार के अधिष्ठाता प्रातः स्मरणीय परम पूज्य संत स्वामी गुरूदेव चिदात्मन जी महाराज ने कहा कि हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास में शुक्ल पक्ष का 15वीं तिथि ही माघ पूर्णिमा कहलाती है।इस दिन का धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से खास महत्व है और भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। कुंभ आयोजन के दौरान इसीलिए माघ पूर्णिमा का महत्व और बढ़ जाता है। आगे स्वामी चिदात्मन जी महाराज ने कहा कि माघ पूर्णिमा माघ महीने के अंत का प्रतीक है और आध्यात्मिक चिंतन और शुद्धि का समय है ।

भक्त उपवास रखते हैं, ज़रूरतमंदों को भोजन और ज़रूरी चीज़ें देते हैं, और प्रार्थनाएं, हवन और वैदिक मंत्रोच्चार करते हैं। वहीं तीलरथ निवासी सुप्रसिद्ध पंडित मुकेश कुमार मिश्र ने बताया कि माघ पूर्णिमा के पावन अवसर पर भक्त पवित्र स्नान, उपवास, दान और प्रार्थना में संलग्न होते हैं। माना जाता है कि ये अनुष्ठान पापों को धोते हैं और दिव्य आशीर्वाद प्रदान करते हैं। दिन का समापन आध्यात्मिक विकास और मुक्ति प्राप्त करने की आशा के साथ होता है, जो निस्वार्थता और दिव्य ऊर्जाओं के साथ संबंध के कार्यों द्वारा चिह्नित होता है। पंडित श्री मिश्र ने आगे कहा कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघ पूर्णिमा की उत्पत्ति 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र से हुई है और हिंदू इस दिन भगवान विष्णु और हनुमान जी की पूजा करने के लिए इसे बहुत महत्वपूर्ण और शुभ अवसर मानते हैं।

ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। वहीं काशी-विश्वनाथ के विद्वान पंडित ज्ञानेश्वर कुमार ने कहा कि पूर्णिमा तिथि के दिन चांद यानी चंद्रदेव अपनी पूर्णकला के साथ आसमान में शोभायमान होते हैं इसलिए पूर्णिमा तिथि का हिंदू धर्म में बड़ा ही महत्व है। चंद्रमा का पूर्ण प्रभाव में होना चंद्रमा के शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है। ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह बताया गया है। इसलिए एक हाथ में साबुत सुपारी, पान का पत्ता और अपने बालों का एक कोना लेकर दूसरे हाथ से चंद्रमा को जल अर्पित करें। ऐसा माना जाता है कि चांदी के बर्तन में थोड़ा पानी और दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने से व्यक्ति को अपने जीवन में कई लाभ मिलते हैं।

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