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अतिथि सेवा से बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं है – आचार्य मणिकांत

DNB BHARAT DESK

खोदाबंदपुर, अतिथि सेवा से बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं है ।जितना धर्म और पुण्य किसी व्रत करने से होता है उससे कोटी गुना अधिक धर्म और पुण्य अतिथियों की सेवा करने से होता है ।उक्त बातें आचार्य मणिकांत त्रिपाठी ने प्रखंड के मेघौल में आयोजित सात दिवसीय भागवत कथा के तीसरे दिन गुरुवार को व्यास पीठ से प्रवचन करते हुए कहा। कथा के तीसरे दिन मनु वंश की कथा आरंभ करते हुए मनु और शतरूपा से लेकर ध्रुव और प्रहलाद तक के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा भगवान भक्तों की आत्मा में निवास करते हैं।

अतिथि सेवा से बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं है - आचार्य मणिकांत 2दर्जनों उदाहरण भागवत के सातवें अध्याय में वर्णित है कि एक से एक दुराचारी के आतंक का अंत भगवान ने भक्तों के माध्यम से किया है। जो भगवान का भक्त होता है उसे किसी चीज की याचना नहीं होती। वह निर्भय होता है निर्लोभ होता है । संत की सेवा को ही अपना कर्म और धर्म समझता है। भारतवर्ष कर्म योगीकी भूमि है यहां एक से एक भक्त हुए हैं। यहां ईश्वर भी अवतार लिए हैं और आततायिओं का अंत कर भक्तों का कल्याण किए हैं। भागवत के सातवें स्कंद में नरसिंहका अवतार और फिर हिर ना कश्यप का वध और भगवान द्वारा प्रहलाद का राज्याभिषेक इस बात को दर्शाता है की भक्त जब-जब भगवान को याद करता है भगवान दौर ेकर उनके पास पहुंचते हैं। और उनकी रक्षा करते हैं।

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अतिथि सेवा से बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं है - आचार्य मणिकांत 3भगवान को प्राप्त करने के पश्चात भक्त की कोई इच्छा नहीं होती वह भगवान में अपने को समाहित कर लेता है ।भक्त और भगवान एकाकार हो जाते हैं ।यही सत्य है यही भक्त और भगवान का रिश्ता है ।भागवत भगवान इसी बात की शिक्षा देता है कि मानव योनि जो सर्वोत्तम यानी है। इसको पा कर हम संतों की सेवा करें ।पीड़ितों की मदद करें ।पीड़ित मानवता की सेवा की अपना धर्म समझे। तभी हमारा यह मानव जीवन सफल है ।अन्यथा मानव जीवन को धारण करना ना धारण करना दोनों बराबर है। मौके पर मुख्य यजमान और अप्रवासी भारतीय कृष्ण शैखारम रामानुज प्रसाद सिंह के अलावे वैद्यनाथ मिश्र, राज किशोर शर्मा कृष्णकांत शर्मा, हरे कृष्णा प्रसाद सिंह, सुनील प्रसाद सिंह, राजकुमार मिश्रा चंद्रशेखर महतो, मीरा कुमारी, सहित सैकड़ो की संख्या में महिला और पुरुष भक्तजन मौजूद थे।

कथा के आरंभ में मेघौल पंचायत के मुखिया पुरुषोत्तम सिंह ने द्वारपूजन एवं व्यास पीठ पूजन के पश्चात भागवत के ज्ञान मंच से कथा वाचक आचार्य मणिकांत त्रिपाठी को अंग वस्त्र एवं पुष्प माला देकर सम्मानित किया । उन्होंने अपने संबोधन में कहा आज हमसब का परम सौभाग्य है कि भारतवर्ष से 10000 किलोमीटर दूर रहकर भी इस मिट्टी का लाल कृष्ण शेखरम ने पश्चात संस्कृति में रहते हुए भारतीय सनातन की ध्वजा को धारण किए हुए हैं और अपनी जन्मभूमि पर भागवत कथा का आयोजन करके न सिर्फ पुण्य अर्जित कर रहे हैं वरण समाज को भी लाभान्वित कर रहे हैं।

सनातन की संस्कृति को और पुस्ट कर रहे हैं ।यह हम सबों के लिए गौरव की बात है। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि हमारे समाज के सभी लोग व्यास पीठ से आचार्य द्वारा द्वारा दिया गया उपदेश का कुछ अंश भी अपने चरित्र में धारण कर अपने जीवनी और समाज को धन्य करेंगे।

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