वेद मंत्रों की गलत व्याख्या के कारण बलि प्रथा हुआ प्रारंभ, बलि प्रथा वेद विरुद्ध- आचार्य भूपेंद्र आर्य

अभेदानंद आश्रम आर्य समाज मंदिर बारो परिसर में आयोजित यज्ञ हवन के दौरान विद्वानों ने कही धर्म के नाम पर निर्दोष पशुओं की हत्या से ईश्वर प्रसन्न नहीं होते।

अभेदानंद आश्रम आर्य समाज मंदिर बारो परिसर में आयोजित यज्ञ हवन के दौरान विद्वानों ने कही धर्म के नाम पर निर्दोष पशुओं की हत्या से ईश्वर प्रसन्न नहीं होते।

डीएनबी भारत डेस्क 

आर्य समाज मंदिर बारो में बलि प्रथा पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ वैदिक यज्ञ के साथ किया गया। जिसके मुख्य यजमान धर्मेंद्र आर्य एवं निभा आर्या थे। गोविंद आर्य ने यज्ञ को संपन्न कराया।

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बलि प्रथा पर चर्चा करते हुए आचार्य भूपेंद्र आर्य ने कहा वेद में कहीं भी निर्दोष पशुओं की हत्या की बात नहीं की गई है बल्कि उसकी रक्षा की बात की गई है। पवित्र वेद (यजुर्वेद) की यही शिक्षा है, आर्य को सबका मित्र होना चाहिए। निश्चय ही वह किसी का जीवन नष्ट नहीं कर सकता। इसलिए पवित्र शास्त्रों में उसका आदेश दिया गया है।

(यजु० 42-49)।” तू घोड़े को मत मार; तू गाय को नहीं मारेगा; तुम भेड़ या बकरी को नहीं मारोगे; तुम दो पैरों वाले को नहीं मारोगे; हे मनुष्य। मिलनसार हिरण की रक्षा करें। दुधारू या अन्य उपयोगी जानवरों को मत मारो।” अन्यत्र शास्त्र कहता है: “जो अपनी भलाई के लिए दूसरों को परेशान करते हैं वे राक्षस (राक्षस) हैं।

मांस खाना, शराब पीना, जुआ खेलना और व्यभिचार, ये सभी मनुष्य की मानसिक क्षमताओं को नष्ट कर देते हैं (अथर्व VI.7-70-71)। निर्दोष पशुओं की हत्या कहीं भी धर्म नहीं है। हमें पशुओं की रक्षा करनी चाहिए। इस मौके पर रविंद्र नाथ आर्य, कैलाश आर्य, सुधीर आर्य, संतोष आर्य, वेद प्रकाश आर्य, श्याम आर्य, विष्णु, अमित, सुशांत, अग्निवेश, रामप्रवेश, सत्य प्रकाश, शौर्य, सहित ग्रामीण उपस्थित थे।

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