देवोत्थान एकादशी पर जगत के पालनहार की विशेष पूजा कर उन्हें नींद से जगाया जाता है- स्वामी चिदात्मन जी महाराज

देवोत्थान एकादशी साल में आने वाली सभी 24 एकादशी में सबसे महत्वपूर्ण।

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देवोत्थान एकादशी साल में आने वाली सभी 24 एकादशी में सबसे महत्वपूर्ण होती है।

डीएनबी भारत डेस्क 

भगवान विष्णु जब निंद्रा में होते हैं तब हिंदू धर्म में होने वाले तमाम तरह के शुभ कार्यों पर चार महीने की रोक लग जाती है। मान्यताओं के अनुसार देवोत्थान एकादशी पर जगत के पालनहार की विशेष पूजा कर उन्हें नींद से जगाया जाता है और इसी दिन चातुर्मास व्रत समाप्त हो जाता है। और सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह ,मुंडन ,जनेऊ, गृह प्रवेश, यज्ञ जैसे कार्यों की शुरुआत हो जाती है। उक्त सारगर्भित मार्मिक और मार्गदर्शक वचन देवोत्थान एकादशी व्रत पर सिमरिया धाम स्थित सिद्ध पीठ काली धाम सर्वमंगला आश्रम के ज्ञान मंच से शुक्रवार को प्रातः स्मरणीय गुरुदेव सर्वमंगला के अधिष्ठाता करपात्री अग्निहोत्री स्वामी चिदात्मन जी महाराज जी ने व्यक्त किए।उन्होंने कहा कि इस अवसर पर गंगा स्नान बनाने, गंगा तट पर साधु संत महात्माओं को दान करने, पूजा अर्चना करने से पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिस मनोरथ का फल त्रिलोक में भी ना मिल सके, वो देवोत्थान एकादशी का व्रत कर प्राप्त किया जा सकता है।देवोत्थान एकादशी से पूर्णिमा तक भगवान शालिग्राम एवं तुलसी माता का विवाहोत्सव का पर्व मनाया जाता है।

वहीं सिमरिया धाम में विगत 9 अक्टूबर से कल्पवास कर रहे मिथलेश दास उर्फ बौवा हनुमानजी महाराज ने कहा कि हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी, हरि प्रबोधनी एकादशी और देवउठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं इसीलिए इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान की विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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बेगूसराय जिले के तिलरथ निवासी पंडित मुकेश कुमार मिश्रा ने बताया कि धार्मिक ग्रंथों में वर्णित उल्लेख के अनुसार, प्रत्येक वर्ष की आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवशयनी या हरिशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है, से जगत के पालनकर्ता श्री हरि विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी के दिन जागते हैं. इस वर्ष देवशयनी एकादशी 10 जुलाई 2022 को पड़ी थी।

वहीं त्रिदंडी स्वामी के शिष्य वाराणसी निवासी ज्ञानेश्वर कुमार चौबे ने बताया कि देवोत्थान एकादशी साल में आने वाली सभी 24 एकादशी में सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस वर्ष देवोत्थान एकादशी 4 नवंबर यानी शुक्रवार को मनाई जाएगी।एकादशी की तिथि तीन नवंबर यानी गुरुवार रात आठ बजकर 51 मिनट पर लग जाएगी और चार नवंबर शुक्रवार को शाम सात बजकर दो मिनट तक रहेगी। सूर्योदय व्यापिनी तिथि की वजह से हरि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत 4 नवंबर को ही होगा। जबकि इसका पारण 5 नवंबर 2022 को किया जाएगा। इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि आज़ के दिन समस्त श्रृष्टि , मानव जगत और अखण्ड ब्रह्मांड के लिए फल दायिनी है।

बेगूसराय बीहट संवाददाता धर्मवीर 

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