मकर संक्रांति पर्व पर साफ दिख रहा है महंगाई का असर

लोगों में खरीददारी को लेकर उत्साह में देखी जा रही है कमी, ग्राहकों के इंतजार में दुकादार।

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लोगों में खरीददारी को लेकर उत्साह में देखी जा रही है कमी, ग्राहकों के इंतजार में दुकादार।

डीएनबी भारत डेस्क 

बेगूसराय जिला के विभिन्न प्रखण्डों सहित गढ़पुरा बाजार में मंहगाई के कारण इस वर्ष मकर संक्रांति पर्व को लेकर खरीदारी पर व्यापक असर साफतौर पड़ देखा जा रहा है। पर्व तो मनाया जाना निश्चित है। जिसको लेकर लोगों में पूर्व की भांति इस बार खरीदारी बहुत कम करते देखा जा रहा है।

बीते वर्ष 35 रुपए किलो की दर वाले मुरही इस बार 50 रुपए किलो बिक रहे हैं। जबकि चूड़ा 35 किलो के बजाय इस बीते वर्ष 40 रुपए किलो हो गया है। इसी तरह से काला तिल 100 रुपए किलो पिछले वर्ष था। वह काला तिल 150 रुपए किलो बिक रहा है। जबकि सफेद तिल पिछले वर्ष 120 रुपए किलो मिल रहा था। उसका दाम इस वर्ष 220 रुपए प्रति किलो हो गया है।

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कोल्हू पर तैयार किया गया गुर पिछले वर्ष 35 रुपए किलो था। वही गुर 40 रुपए प्रति किलो की दर से बाजार में बिक रहा है। सामान्य तिलकुट बीते वर्ष 150 रुपए किलो था। वह इस बार 200 रुपए किलो बिक रहा है। इस महंगाई का प्रभाव खरीदारी पर पड़ रहा है।

इस संबंध में किराना दुकानदार मनोज यादव ने बताया कि जो व्यक्ति सात किलो वाला मुरही तथा चुड़ा का पैकेट खरीदा करते थे। वह व्यक्ति इस बार 4 किलो का पैकेट खरीद रहे हैं। इसी तरह से ढ़ाई किलो तिल खरीदा करते थे। वह इस वर्ष मुश्किल से 1 किलो तिल खरीद पा रहे हैं। महंगाई को लेकर लोगों की परेशानी बढ़ी हुई है।

जानकारों की मानें तो महंगाई तो बढ़ गई है परंतु मेहनत मजदूरी करने वालों का मजदूरी वही पुराना है। उसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। इस महंगाई का असर सामान्य से नीचे वर्ग तक के लोगों के ऊपर अधिक दिखाई पड़ रहा है।

गेहूं का आटा जो कुछ दिन पहले तक 25 रुपए किलो में मिला करता था। आज का गेहूं का आटा 40 से 45 रुपए किलो में मिल रहा है। इसी तरह से विभिन्न सामग्रियों के दाम काफी बढ़ गए हैं। तेल साबुन का दाम भी बीते वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष डेढ़ गुना बढ़ गया है।

वहीं मालीपुर पंचायत के मोरतर गांव के किसान रामकिशोर राय का कहना है कि उत्पादन करने वालों के हाथों से व्यापारी सरकार से कुछ अधिक दर देकर सामान खरीद कर ले जाते हैं। जब किसानों के घर गेहूं से लेकर सरसों एवं अन्य उत्पादित सामग्री व्यापारी के हाथों चला जाता है। उसके बाद वही सामान मनमाने मूल्य पर बाजार में मिलने लगते हैं। बाजार पर से सरकार का नियंत्रण समाप्त हो गया है। जिसका असर बाजार में साफतौर पर देखा जा सकता है।

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