लोकल फाॅर वोकल को दें बढ़ावा, स्वदेशी अपनाएं पर्यावरण प्रदुषित होने से बचाएं

अपनी पुरानी सांस्कृतिक परंपरा अपनाएं मिट्टी के दीप में दियें जलाएं।

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अपनी पुरानी सांस्कृतिक परंपरा अपनाएं मिट्टी के दीप में दियें जलाएं, खुशियाली बांटें खुशी मनाएं।

डीएनबी भारत डेस्क

आज की इस तेज रफ्तार जिंदगी में लोग अपनी परंपरा को भूलते जा रहे हैं। जिसका परिणाम है कि आज देश में पर्यावरण संकट के साथ-साथ कई तरह की समस्या उत्पन्न हो रही है। जिसके चलते सभी लोग और जीव-जंतु के जीवन पर भी संकट है। इस परंपरा में एक दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये जलाना भी है। जिसको आज लोग भूलते जा रहे हैं और उसकी जगह पर इलेक्ट्रानिक लाइटों का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन जो सुंदरता मिट्टी के दीये जलने पर दिखती है वो इलेक्ट्रानिक लाइटों के जलने से नहीं।

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आपको बता दें कि दीपावली को लेकर बिजली के दुकानों में रंग-बिरंगे बल्ब और नये-नये डिजायन के बल्ब, झालर, इलेक्ट्रिक मोमबत्ती, इलेक्ट्रिक दीया एवं डीजे लाईटों से दुकानें गुलजार हो रही हैं। गांवों में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन-रात काम कर रहे हैं। कुम्हारों को उम्मीद है कि दीपावली पर इस बार लोगों के घर-आंगन मिट्टी के दीये से रोशन होंगे और उनके कारोबार को दोबारा दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे।

आधुनिकता के इस दौर में लोग अब इलेक्ट्रिक लाइटों को अधिक महत्त्व दे रहे हैं। जिस कारण मिट्टी के दीयों का डिमांड काफी कम हो गई है और कुम्हारों के समक्ष कुछ कमाई की उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। बता दें कि हिंदू परंपरा में मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।

मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। मंगल साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि को न्याय और भाग्य का देवता कहा जाता है। मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा प्राप्त होती है।

समस्तीपुर से अनिल चौधरी 

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