लखनपुर में बंगाली पद्धति से की जाती है मां दुर्गा की पूजा, जो भी भक्त सच्चे दिल से जाते हैं मंदिर उनकी मन्नते पूरी करती हैं मां

मां की पिंडी को सिद्धमंत्रो के जाप के साथ यहाँ स्थापित किया नित्य प्रतिदिन सुबह शाम यहाँ पूजा पाठ की प्रथा निरंतर है।

सप्तमी तिथि के तृतीय कलश की स्थापना नव पत्रिका पूजा के उपलक्ष्य में किया जाता है और सप्तमी की रात्रि में ही पूर्ण विधि विधान के साथ देवी की आराधना पूजा की जाती है।

डीएनबी भारत डेस्क

भगवानपुर प्रखंड क्षेत्र के लखनपुर गांव स्थित बलान नदी किनारे अवस्थित माता के मंदिर ऐतिहासिक एवं शक्ति स्थल है जहां देवी की बंगाली परंपरा से पूजा अर्चना की जाती है यहां की पूजा पद्धति में व्यापक बली की परंपरा है इस आस्था स्थल मैया के दरबार की कई किवदंतीया प्रचलित है मंदिर के प्रधान विमल घोष ने बताया कि हमारे पूर्वज वर्षो पूर्व मुगल काल में पश्चिम बंगाल से यहां आए थे उन्हीं लोगों में से कुछ लोग बेगूसराय की विभिन्न गांव में आकर बस गए उन्हीं परिवारों में मनराज सिंह का परिवार भी शामिल थे जो भगवानपुर प्रखंड के लखनपुर गांव में बस गए थे ।

कहा जाता है कि मनराज सिंह जब नदिया जिला से जब भागे थे तो अपने राजपुरोहित एवं अपनी आस्था का ईष्ट माता का पिंडी भी लेकर आए थे आज वह परिवार नहीं रहा लेकिन इन्हीं के रिश्तेदार बछवारा प्रखंड के बेगमसराय निवासी महेश प्रसाद सिन्हा इस देवी मंदिर के मैहरपति है प्राप्त जानकारी के अनुसार पूर्व में उक्त मंदिर के दो मैहरपति हुआ करते थे एक बेगम सराय एवं एक लखनपुर गांव के साहू परिवार से हुआ करते थे मनराज सिंह अपनी काबिलियत यह बल पर ना सिर्फ इलाके के तहसीलदार बन गए थे बल्कि लखनपुर के जमींदार भी बन गए थे ।

और साथ आए राजपुरोहित के उचित सलाह पर साथ लाये मां की पिंडी को सिद्धमंत्रो के जाप के साथ यहाँ स्थापित किया नित्य प्रतिदिन सुबह शाम यहाँ पूजा पाठ की प्रथा निरंतर है जिसके लिए सहायक पुजारी  नियुक्त है अश्वनी शुक्ल पक्ष चतुर्थी को भी दी जाती है बली पुजारी की मान्यता है की इसी दिन शरदकाल को तुला राशि में  देवी का आगमन होता है इसी दिन भगवान श्री राम लंका पर विजय हेतु देवी का आह्वान किया था इस दिन भी बली की प्रथा चलायमान है ।

इसके बाद पुनः अश्विनी शुक्ल पक्ष चतुर्थी को भी बलि दी जाती है सप्तमी तिथि के तृतीय कलश की स्थापना नव पत्रिका पूजा के उपलक्ष्य में किया जाता है सप्तमी की रात्रि में ही पूर्ण विधि विधान के साथ देवी की आराधना पूजा की जाती है जिसे जागरण भी कहते हैं महाअष्टमी तिथि की रात्रि में निशापूजा कालरात्रि के बाद भेर खस्सी की बलि दी जाती थी नवमी तिथि को महानवमी पूजा के बाद महीष तथा भेर का संकल्प किया जाता था जो अब विगत कई वर्षों से नहीं होता है।

वही मद्ध रात्रि के बाद मंदिर के अंदर और बाहर धो पोछ कर पुजारी कुछ विशेष लोगों के साथ मंदिर में फूलहाइस का कार्यक्रम आरंभ करते हैं फुलहाइस के उपरांत भी बलि दी जाती है लेकिन केरोना काल से ही खस्सी की बलि प्रथा अस्थगित कर दी गई उसकी जगह सिसकोहरा की बली वर्तमान में हो रही है नवमी के दिन जहां मंदिर में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है वही ब्राह्मण भोज एवं मुंडन जैसे भी शुभ कार्य संपन्न कराए जाते हैं

बेगूसराय भगवानपुर संवाददाता गणेश प्रसाद की रिपोर्ट

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