शारदीय नवरात्र में गणपतौल रक्तदंतिका बड़ी दुर्गा मैया की पूजा अर्चना का है विशेष महत्व 

मंसूरचक प्रखंड अंतर्गत यह प्रसिद्ध मंदिर 1902 के सर्वे के बाद चर्चा में आया था

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मंसूरचक प्रखंड अंतर्गत यह प्रसिद्ध मंदिर 1902 के सर्वे के बाद चर्चा में आया था- ग्रामीण

डीएनबी भारत डेस्क

मंसूरचक प्रखण्ड अंतर्गत गणपतौल में शक्तिपीठों में से एक मां रक्तदंतिका मंदिर अवस्थित हैं। यहां पर शारदीय नवरात्र के अवसर पर रक्तदंतिका बड़ी दुर्गा मैया की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है। रक्तदंतिका मंदिर को लोग बड़ी दुर्गा स्थान के नाम से भी जानते हैं। पूजा समिति सदस्य बताते हैं कि ग्रामीण पूजा को लेकर शारीरिक श्रम करते थे। इस मंदिर में मुस्लिम महिलाएं भी मैया के दरबार में आकर मन्नतें मांगती हैं। इसी का नतीजा है कि मां रक्तदंतिका की पूजा सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल हुआ करती है। आज भी इस मंदिर में यह परंपरा जीवंत है।

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मंदिर का इतिहास
क्षेत्र के जानकारों की मानें तो मां रक्तदंतिका की पूजा सैकड़ों वर्षों से होती आ रही है। जिले के प्राचीनतम दुर्गा मंदिरों में से एक बड़ी दुर्गा माता मंदिर के नाम से चर्चित रक्तदंतिका की पूजा का इतिहास काफी पुराना है। यहां लाल रंग की मूर्ति की पूजा का प्रचलन है। बताया जाता है कि तत्कालीन जमींदार गुरु प्रसाद लाल ने यह मंदिर बनवाया था। 1902 के सर्वे में दुर्गा महारानी के नाम से मंदिर के लिए जमीन बंदोबस्ती का प्रमाण मिला है। लेकिन मंदिर उससे भी पुराना है। ऐसा माना जा रहा है। बताया जाता है कि वर्ष 1880 में मंदिर के पुनर्निर्माण के क्रम में नरसग पासवान को सैकड़ों वर्ष पुराना काले पत्थर की नारी आकृति का सिर और पीतल का बड़ा दीप मिला था। काले पत्थर की मूर्ति आज भी दर्शन के लिए उपलब्ध है। इसकी प्रतिदिन पूजा और आरती होती है। वर्ष 1948 में तत्कालीन जमींदार अंबा प्रसाद ने मंदिर को स्थानांतरित कर सड़क के किनारे मूर्ति बनवाई थी, जो सप्तमी तिथि को स्वयं खंडित हो गई। उस वर्ष इलाके में महामारी के रूप में प्लेग फैला था। जिसमें सैकड़ों मवेशियों और लोगों की जानें गई थी।

बलि प्रथा हो गया बंद
70 के दशक से पूर्व इस मंदिर में बलि प्रदान किया जाता था जो बाद में बंद हो गया। मंदिर परिसर में पहले मन्नतें पूरी होने पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रसाद के रूप में आकर बलि देते थे। लेकिन आम लोगों के सुझाव के बाद इस मंदिर में बलि प्रथा बंद कर दिया गया है। पूजा समिति अध्यक्ष दयानंद सिन्हा, आलोक कुमार मिश्रा, सुरेश पासवान, सुमीत कुमार हैप्पी, अमर कुमार पासवान, उदय पासवान ने बताया कि मंदिर का नये रूप में विकसित किया गया है और जैसे जैसे भगवती का आशीर्वाद मिला रहा वैसे वैसे और भव्य बनाने में भक्त लगे हैं।

कहते हैं पुजारी मूलीधर झा
रक्तदंतिका की पूजा शारदीय नवरात्र में होती है। पूजा पाठ से मनोकामना पूरी होती है। नौवीं एवं दशमी को यहां भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है।

 

मंसूरचक से आशीष झा

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