हजारों वर्षों से चमथा गंगा तट पर कल्पवास मेला होते आ रहा है,वास्तविक कल्पवास मेला चमथा ही है-संत सत्यनारायण दास जी महराज

 

चमथा गंगा घाट पर प्रत्येक वर्ष सैकड़ों की संख्या में पूर्णकुटीर व खालसा लगाया जाता है जहां एक माह तक भगवान के कीर्तन भजन से भक्तिमय बना रहता है।

डीएनबी भारत डेस्क

मिथिलांचल इलाके के प्रसिद्ध चमथा गंगा घाट पर कल्पवास मेला को लेकर दुर दराज से आए साधुसंतो, स्थानीय जनप्रतिनिधि व ग्रामीणों की बैठक आयोजित की गयी. बैठक की अध्यक्षता विशनपुर पंचायत के मुखिया उदय कुमार राय ने किया. बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि चमथा गंगा घाट एक ऐतिहासिक तीर्थ स्थल है,ये विदेह राज राजा जनक व कवि विद्यापति की तपोभूमि रही है.हजारो वर्षों से चमथा गंगा घाट पर समस्तीपुर,दरभंगा, मधुबनी व नेपाल की तराई क्षेत्र से साधु संत समेत सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कल्पवास करने चमथा गंगा तट पर आते हैं और एक माह तक पूर्णकुटीर बनाकर सुर्योदय से पुर्व गंगा स्नान कर पूजा पाठ व कथा सुनते हैं व सुनाते हैं.

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उन्होंने कहा कि गंगा नदी व गंगा बाया नदी के बीच अवस्थित चमथा गंगा घाट पर प्रत्येक वर्ष सैकड़ों की संख्या में पूर्णकुटीर व खालसा लगाया जाता है जहां एक माह तक भगवान के कीर्तन भजन से भक्तिमय बना रहता है. कार्तिक माह आंरम्भ होने के साथ हीं शुरु होने वाले इस कल्पवास मेले के दौरान दुर दराज से पहुंचे श्रद्धालुओं व साधु संतों की सुरक्षा व्यवस्था में हमेशा स्थानीय लोग लगे रहते हैं. रात्री के समय महान संतों के द्वारा प्रवचन किया जाता है और प्रवचन के उपरांत खालसा की ओर से प्रसाद वितरण किया जाता है. इस गंगा तट पर गो लोक सिधारे पुर्व विधायक रामदेव राय व राज्य सरकार के की मंत्री के द्वारा कल्पवास मेला के दौरान श्रद्धालुओं के लिए हर सुविधा उपलब्ध कराने की घोषणा कर गयी.

बावजूद स्थानीय प्रशासन के द्वारा कोई सुविधा उपलब्ध नही कराया गया है. वही संत सत्यनारायण दास जी महराज ने कहा कि हजारों वर्षों से चमथा गंगा तट पर कल्पवास मेला होते आ रहा है, जिसमें नेपाल ,दरभंगा, मधुवनी, सहरसा समेत पुरा मिथलांचल समेत अन्य जिले से श्रद्धालुओं आते रहते हैं इससे प्रतीत होता है कि मिथिलांचल का वास्तविक कल्पवास मेला चमथा ही है. यहां का दृश्य रमणीय है,शुद्ध वातावरण है,और सबसे बढ़कर यहां शांति ही शांति है. चमथा गंगा का यह तट साधु संतों का धरोहर है. वही चमथा कल्पवास मेले के मुख्य संत बाबा ननकी महराज ने कहा कि चमथा कल्पवास मेला को राज्य सरकार के मंत्री के द्वारा राजकीय मेला घोषित करने का अश्वासन दिया गया था लेकिन राजकीय मेला लगना तो दुर कल्पवास मेला परिसर में ना तो शौचालय की व्यवस्था की गई है ना ही समुचित पेय जल की व्यवस्था है और ना ही स्वास्थ्य विभाग के द्वारा कोई सुविधा प्रदान किया गया है.

ऐसे में दुर दराज से मेला में आए हुए श्रद्धालुओं की जिन्दगी भगवान भरोसे चल रहा है. ये चमथा कल्पवास मेला ही वास्तविक कल्पवास मेला है, जहां चमथा गंगा घाट से जुड़ा हुआ कवि विद्यापति व राजा जनक का एतिहास हो, आज पदाधिकारी व राज्य नेताओं के द्वारा सिमरिया गंगा धाम को बढ़ावा व हर सुविधा उपलब्ध कराने का काम किया जा रहा है जबकि वास्तविक कल्पवास मेला जिसका साक्षी इतिहास है वैसे कल्पवास स्थल चमथा को दबाने का प्रयास किया जा रहा है.लेकिन हम साधु संतो पर माता गंगा, विद्यापति धाम, और राजा जनक का आशीर्वाद है, कितना भी कठिन प्रस्थिति क्यों ना हो हम सभी साधु संत व श्रद्धालु यहां आते रहेंगे और कल्पवास करते रहेंगे.उन्होंने प्रशासन से मांग करते हुए कहा कि चमथा कल्पवास मेला में श्रद्धालुओं के लिए समुचित व्यवस्था की जाय, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी का सामना करना ना पड़े.

बेगूसराय बछवाड़ा संवाददाता सुजीत कुमार की रिपोर्ट

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