चुनावी चौपाल: आजादी के 77 साल बाद भी नहीं हुआ गांव का समुचित विकास 

डीएनबी भारत डेस्क
लोकसभा चुनाव सिर पर है। बेगूसराय में आगामी 13 मई को लोकसभा चुनाव के लिये मतदान निर्धारित है। वोट को लेकर लोगों में खासा उत्साह है। मतदाता बेशब्री से 13 मई का इंतजार कर रहे हैं। राजनीतिक का स्वरूप बदल चुका है। एक दलीय राजनीति का जमाना लग चुका है।

गठबंधन की राजनीति समय की मांग बन चुकी है। गठबंधन का स्वरूप बन चुका है। प्रत्याशी भी घोषित हो चुके हैं। गठबंधन के प्रत्याशी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ गांव की ओर कुच कर गये हैं।गांव के चौपालों, नुक्कड़ों, डॉक्टर के क्लिनिक, खेत खलीहानों, हाट बाजारों में मतदाताओं द्वारा गठबंधन के भाग्य भविष्य, उम्मीदवारों की हार जीत तथा विकास योजनाओं को लेकर चर्चाएँ तेज हो गयी है।

अभी खोदावन्दपुर प्रखंड के फफौत पंचायत अंतर्गत ग्राम चकवा स्थित डॉ संजय पासवान के क्लिनिक पर मौजूद हैं। यहां चिकित्सक, चिकित्सा कर्मी और काजू बाबू के कुछ रोगी व ग्रामीण सुबह की चाय पी रहे हैं.तथा आपस में चुनाव पर चर्चा कर रहे हैं। आइए हम भी कुछ इनसे गुप्तगू कर लेते हैं।और जानते हैं इस चुनावी चौपाल पर इनकी क्या समझ है।

डॉ संजय पासवान कर रहे हैं आजादी के 77 साल बाद भी हमने एक दलीय, बहुदलीय और गठबंधन के राजनीतिक का सरकार भी देखा है। नेताजी वोट के समय बड़ा बड़ा वादा करते है। गांव को स्वर्ग बनाने की बात करते हैं, लेकिन चुनाव जीतकर कुर्सी पर बैठ जाते हैं, तब उनका चुनाव के समय किया गया घोषणा व वादा उनको जुमला दिखता. और हम मतदाता ठगे जाते हैं।

चौपाल पर मौजूद हैं खोदावन्दपुर के प्रमोद कुमार साथी व सामने बैठे डॉ समीर कुमार से बहस कर रहे हैं। साथी प्रमोद का कहना है आज से पूर्व 17 बार लोकसभा का चुनाव हो चुका है। सरकारें बनी बिगड़ी आयी और गयी। जनता ने किसी दल को हटाया तो किसी दल को बैठाया। लेकिन गांव में विकास की रफ्तार जिस रुप में होना चाहिए नहीं हो सका।

आज भी गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, गली, कुचा की हालत बदतर है। नतीजतन गांव की एक बड़ी आबादी इन सुविधाओं के अभाव में शहरों की ओर भाग रहे हैं। सरकार किसी भी पार्टी की बनें, पर उनकी बने जो जनता की जरुरतमंदों को समझें. गांव और शहर की दूरी को पाट सकें। चौपाल पर मौजूद हैं मुसहरी के असीम आनंद- जो डॉक्टर साहब से दिखाने आये थे। असीम पढ़े लिखे युवा हैं। युवा जोश है।
चौपाल के बहस में हस्तक्षेप करते हुए कहते हैं- हम मानते हैं विकास हुआ है, लेकिन जिस रुप में विकास होना चाहिए था, उस रुप में नहीं हो सका। ये सरकार या वो सरकार अर्थात पटना की पटना की सरकार या दिल्ली की सरकार। किसी ने भी गांव में रोजगार के सोच का सृजन नहीं किया।

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जिसके कारण बड़ी तादाद में गांव के युवा रोजगार के लिए पलायन के लिए मजबूर हैं, हम वैसे दल और प्रत्याशी को वोट करना पसंद करेगें, जिनका विजन गांव में ही स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन करने का विजन हो।

खोदावन्दपुर गांव निवासी परीलाल पासवान का मानना है कि सभी नेता कहते हैं कि भारत कृषि प्रधान है। किसी ने भी हम किसानों के लिये ठोस कार्यक्रम तैयार नहीं किया। सरकार किसानों की आय दुगुनी करने का डंका पीट रही है, लेकिन सच्चाई है कि समर्थन मूल्य क्या लागत मूल्य भी नहीं मिल रहा है। कृषि पर बिचौलिया राज हावी है।

सरकार की कृषि और किसान कल्याण की योजनाएं भ्रष्टाचार की गोद में खेल रही है। जिसका नतीजा है किसान आज किसान से कृषि मजदूर बन गये हैं। उत्पादन बढ़ गया, लेकिन लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा है। हम उस प्रत्याशी को वोट करेगें जो हम किसानों को आवाज बन सकें।

क्या बताउं- नेता की बात पर हर चुनाव में विश्वास करते हैं और ठगे जाते हैं। करु तो क्या करु, जाऊं तो कहां जाऊ, फिर भी हम सभी किसान भाईयों से अपील करते हैं कि वोट जरूर करें।
चकवा के चौपाल में बरियारपुर पश्चिमी के कृष्ण मोहन महतो जो दवा लेने डॉक्टर साहब के यहां आये थे, चुनावी चर्चा में रुचि लेते हुए इनका मानना है वोट देते देते हम वोटरों की स्थिति में सुधार नहीं हुआ, लेकिन नेताजी का झंडा आसमान में फहरा रहा है।

बड़ा बड़ा कोठी, बंगला, आराम की जिंदगी, लेकिन वोटरों को देखने वाला कोई नहीं। नेताओं का आज ना नीति है और ना नियत। वोट लेकर सत्ता करना एक मात्र उदेश्य है, तभी तो गांव और ग्रामीण गरीब हुआ है। सत्ता और नेता अमीर हैं। मोहन कहते हैं बाबू हम त ओकरे वोट करवै जेय गांव सुधारते।

बेगूसराय खोदावंदपुर संवाददाता नितेश कुमार की रिपोर्ट

 

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