मगध मिथिला सहित पूरे विश्व में फैले बिहारियों ने शुरू किया चार दिवसीय सूर्योपासना का महापर्व छठ पूजा
लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा धार्मिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण।
लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा धार्मिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण।
डीएनबी भारत डेस्क
वैसे तो सनातनियों के द्वारा मनाये जाने वाले सभी पर्व त्योहारों का अपना विशेष धार्मिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। लेकिन इन सभी महत्व को एक साथ जोड़ने वाला चार दिवसीय लोक अस्था का महापर्व छठ पूजा की शुरुआत मगध एवं मिथिला नहीं बल्कि पूरे विश्व में बसे बिहारियों ने नहाय खाय के साथ किया। छठ पूजा को लेकर गांव के गली मोहल्लों से शहर के बाजारों तक बाजार सज चुकी है।
इस संदर्भ में ज्योतिषाचार्य आचार्य अविनाश शास्त्री कहते हैं कि 28 अक्टूबर शुक्रवार को नहाए खाए के साथ व्रत प्रारंभ होता है। इसमें व्रत करने वाली महिलाएं एवं पुरुष कद्दू की बनी सब्जी एवं अरवा चावल का भात खाते हैं जो कि हमारे शरीर के विकारों को निकालकर शरीर को व्रत के लिए शुद्ध एवं तैयार करता है।दूसरे दिन खरना का आयोजन होता है जिसमें अपने पुत्र पौत्रादि परिवारजनों के मंगल कामना के लिए गेहूं के आटे की बनी रोटी खीर केला आदि नैवेद्य भगवान भास्कर देव एवं षष्ठी माता को अर्पित करने के पश्चात प्रसाद स्वरूप भोजन एक बार ग्रहण करते हैं।
30 अक्टूबर रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हुए सूर्योपासना प्रारंभ होगा। रविवार को सायं कालीन अर्घदान अति महत्वपूर्ण ज्योतिषीय योग लगा रहा है।ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य भगवान रविवार दिन के अधिष्ठाता देवता है और रविवार के दिन सूरज की उपासना विशेष रूप से लाभकारी होता है। 31 अक्टूबर सोमवार के दिन प्रातः कालीन सूर्य अर्घ दान के साथ व्रती पारण करेंगे एवं सूर्य षष्ठी छठ पूजा की समाप्ति होगी।
सामाजिक विज्ञान के अनुसार वैसे तो हमारे यहां सभी पर्व त्योहारों का अपना विशेष महत्व है परंतु छठ पूजा समाज के निचले पायदान के लोगों को भी महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है और यह सामाजिक समरसता का द्योतक भी है वहीं दूसरी ओर हम अन्य सभी आयोजन एवं उत्सवों को अपने-अपने घरों में मनाते हैं लेकिन वर्ष में एक दिन ऐसा आता है जहां सभी सूर्य उपासक यानी कि सभी सनातनी अलग-अलग वर्ण अलग-अलग कर्म अलग-अलग जाति व्यवस्था के लोग अपने क्षेत्र नदी के तट पर एक ही स्थान पर आकर सामाजिक समरसता एकता सामूहिकता एवं पर्यावण जल संरक्षण का संदेश भी देता है।
भारत की प्राचीन सिंधु नदी घाटी सम्यता से आज तक सूर्य उपासना और नदियों की पूजा चलती आ रही है। छठ पूजन में पहले अस्ताचलगामी सूर्य की पूजा का तात्पर्य यह है कि उत्थान एवं पतन निश्चित है उत्थान की स्थिति में अति हर्षित नहीं होना चाहिए क्योंकि जिसका पतन हुआ है वह पुनरुत्थान करेगा यानी जो अस्त हो रहा है वह फिर उदय होगा यह सकारात्मक विचार हमें जीवन में उतारना चाहिए।
कब होगा सूर्यास्त और सूर्योदय
मैथिला क्षेत्र में 30 अक्टूबर को सूर्यास्त शाम 5:32 बजे होगा। जबकि 31 अक्टूबर को सूर्योदय प्रातः 6:28 बजे होगा।
कैसे करें पूजा और सूर्य को दें अर्घ
शाम अर्घ दान के समय पश्चिम मुख होकर एड़ी पर अथवा एक पैर पर खड़े होकर अपने दोनो हाथों को सिर के ऊपर तक लीजये और सूर्य अर्घ दे ध्यान रहे शाम का जल अर्घ जल में नही दे और प्रातः का जल अर्ध जल में डालें ऐसा करपात्री स्वामी जी के गर्न्थो में वर्णन है। अर्घ देने के लिए अलग-अलग पत्रों का महत्व है जल का अर्थ तांबे के लोटे में रख कर दें। दूध चांदी अथवा पीतल के बर्तन में रखकर अर्घ देना चाहिए। दक्षिणावर्ती शंख में जल अथवा दूध डालकर अर्घ देना उत्तम माना गया है। अर्घ देने के पश्चात दोनों हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर भगवान सूर्य को प्रणाम करना चाहिए एवं अर्ध के जल को अपने मित्र व हृदय में स्पर्श करना चाहिए।
अर्घ मंत्र
ॐ एहिसूर्य सहत्रशो तेजोराशि जगतपते।
अनुकम्पय मा भक्त्या गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते।।
अथवा
गायत्री मंत्र से भगवान सूर्य को अर्घ दे।
भगवान सूर्य को अर्घ देने के बाद आर के स्थान पर प्रदक्षिणा करते हुए प्रणाम करना चाहिए
प्रदक्षिणा मंत्र
ॐ उद्वयम तम्ससपरि स्वः पश्यंत उत्तरम।
देवं देवत्रा सूर्यमगनम ज्योतिरुत्तमम।।
सूर्य दर्शन मंत्र
ॐ चित्रम देवनामुदाग़दानिकम चक्षुमित्रस्य वरुणस्यागने।।
आप्रा द्यावा पृथ्वी अंतरिक्ष सूर्य आत्मा जगतः तस्थुश्च।।यह मंत्र नित्य सूरज दर्शन के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है इस मंत्र से नित्य सूर्य दर्शन करने पर नेत्र की ज्योति एवं हृदय रोग में लाभ प्राप्त होता है।