बेगूसराय ब्रांच द्वारा नियोनेटल रिससिटेशन प्रोग्राम पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित
बेगूसराय के शिशु रोग विशेषज्ञ, स्त्री रोग विशेषज्ञ और नर्सिंग स्टाफ ने इस कार्यशाला में नवजात बच्चों के रिससिटेशन की ट्रेनिंग ली
डीएनबी भारत डेस्क
इंडियन एकेडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स, बेगूसराय ब्रांच द्वारा रविवार को नियोनेटल रिससिटेशन प्रोग्राम एनआरपी – एफजीएम की एक दिवसीय कार्यशाला का सफल आयोजन बेगूसराय शहर स्थित आईएमए हाल में हुआ। लगभग 60 की संख्या में बेगूसराय के शिशु रोग विशेषज्ञ, स्त्री रोग विशेषज्ञ और नर्सिंग स्टाफ ने इस कार्यशाला में नवजात बच्चों के रिससिटेशन की ट्रेनिंग ली।
वहीं पटना से आए नामचीन विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ अमित कुमार सह प्राध्यापक, आइजीआइएमएस , डॉ रुपेश कुमार डीएम नियोनिटोलॉजी ,डॉ विवेक कुमार पांडे कंसलटेंट शिशु रोग विशेषज्ञ, महावीर वात्सल्य अस्पताल, पटना और डा केशव कुमार पाठक सहायक प्राध्यापक, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना ने वर्कशॉप में ट्रेनिंग दी। वहीं डा प्रवीण कुमार राय आईएपी, अध्यक्ष, डॉ ए के राय आईएमए अध्यक्ष , डा शशि भूषण प्रसाद सिंह सीनियर शिशु रोग विशेषज्ञ , डॉ पंकज कुमार सिंह आईएमए सचिव, डा विजयंत कुमार आईएपी सचिव और डॉ बालमुकुंद झा प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर ने दीप प्रज्वलित कार्यक्रम का उद्घाटन किया और अपने विचार रखें।
डा बालमुकुंद झा प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर ने कार्यक्रम के आयोजन को बहुत सफल बताया। वहीं आईएपी सचिव डा विजयंत कुमार ने कहा कि इस कार्यक्रम द्वारा प्रशिक्षित डाक्टर और चिकित्साकर्मी नवजात बच्चों की जन्म के बाद तुरंत स्वांस नहीं शुरू होने की बीमारी और इस कारण होने वाली नवजात बच्चों की मृत्यु, ब्रेन डैमेज और अपंगता के खतरे को कम करने में बहुत हद तक सक्षम होंगे। वहीं प्रशिक्षण में गोल्डन मिनट पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा कि गोल्डन मिनट नवजात शिशु के जीवन के पहले 60वें दशक को संदर्भित करता है।
जिसके दौरान अंतर्गर्भाशयी जीवन से लेकर गर्भाशय के बाहर तक का जटिल लेकिन प्राकृतिक संक्रमण होता है। आमतौर पर, दाइयां गोल्डन मिनट के दौरान नवजात शिशु का मूल्यांकन करती हैं। शिशु के जन्म के बाद का एक मिनट गोल्डेन टाइम माना जाता है। इस एक मिनट में बच्चे का रोना जरूरी है। अगर बच्चा नहीं रोता है तो उसे हल्की चपत लगाकर रूलाना चाहिए। वहीं शिशु की नब्ज जांचना पर भी जानकारी देते हुए वक्ताओं ने कहा कंधे और कोहनी के बीच बांह के अंदरूनी हिस्से पर नाड़ी को महसूस करें: जब तक आपको धड़कन महसूस न हो, तब तक दो अंगुलियों को धीरे से उस जगह पर दबाएं।
जब आपको नाड़ी महसूस हो, तो 15 सेकंड तक धड़कनों की गिनती करें । प्रति मिनट धड़कनों की संख्या जानने के लिए आपने जितनी धड़कनों की गिनती की है, उसे 4 से गुणा करें। वहीं नवजात शिशु की पहली सांस क्यों महत्वपूर्ण जैसी सवाल प्रशिक्षणार्थियों द्वारा किए जाने पर प्रशिक्षित डाक्टर ने बताया कि नवजात शिशु को अपनी पहली सांस लेने पर, नवजात शिशु के फेफड़ों में तरल पदार्थ हवा से बदल जाता है, और ऑक्सीजन एल्वियोली के आसपास की रक्त वाहिकाओं में फैल जाती है। फुफ्फुसीय धमनियों में शिथिलता आती है, जिससे फुफ्फुसीय प्रतिरोध कम हो जाता है और रक्त फेफड़ों में प्रवाहित होने लगता है।
बेगूसराय बीहट संवाददाता धरमवीर कुमार की रिपोर्ट