शुभ अशुभ कर्मों का फल हमें अवश्य ही भोगना पड़ता है – पं योगेश दत्त आर्य

आर्य समाज बारो परिसर में आयोजित 87वां वार्षिकोत्सव चार दिवसीय वैदिक यज्ञ व विराट महासम्मेलन के तीसरे दिन संध्याकालीन सत्र में 'कर्म फल सिद्धान्त' विषय पर गहन हुआ चिंतन।

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आर्य समाज बारो परिसर में आयोजित 87वां वार्षिकोत्सव चार दिवसीय वैदिक यज्ञ व विराट महासम्मेलन के तीसरे दिन संध्याकालीन सत्र में ‘कर्म फल सिद्धान्त’ विषय पर गहन हुआ चिंतन।

डीएनबी भारत डेस्क 

आर्य समाज बारो परिसर में आयोजित 87वां वार्षिकोत्सव के उपलक्ष्य में चार दिवसीय वैदिक यज्ञ व विराट महासम्मेलन के तीसरे दिन सायंकालीन सत्र में ‘कर्म फल सिद्धान्त’ विषय पर गहन चिंतन हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ नगर परिषद बीहट पूर्व चेयरमैन राजेश कुमार टूना ने किया। अतिथि का सम्मान मंत्री राजेंद्र आर्य एवं प्रधान रविंद्र नाथ आर्य ने किया। आर्य समाज मंदिर में अतिथि कक्ष का निर्माण कराने वाले निरंजन ठाकुर, शिवजी आर्य को भी सम्मानित किया गया। देश के कई हिस्सों से बारो पहुंचे वैदिक विद्वानों ने विचार रखे।

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इस मौके पर यूपी के मुजफ्फरनगर से पधारे वैदिक प्रवक्ता आचार्य योगेश भारद्वाज ने कहा कि कर्म फल सिद्धान्त से ही किसी व्यक्ति,परिवार,समाज व राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव दिखता है। दुख होता है कि भारत में रहने वाले बहुत सारे लोग अपनी सनातनी धर्म बदल कर अपने कर्म कांड अन्य धर्मों से जोड़ रखे हैं। इसके कारण वैसे लोगों की आस्था, संवेदना, समर्पण भारत देश से कभी हो ही नहीं सकता। उनकी आस्था उन धर्म के संचालन करने वाले विदेशों से जुड़ी होगी। चिंतन करना होगा कि ऐसे में हमारा धर्म और देश कैसे सुरक्षित रहेगा। आर्य समाज राष्ट्र धर्म निभाता है। यह देश के लोगों को भारतीय होने का गर्व महसूस कराता है। यह महर्षि दयानंद की ही देन है जो अपनी देश के लोगों को संस्कृति की रक्षा और संस्कार देने के लिए लगातार तत्पर है।

यूपी विजनौर आये आचार्य योगेश दत्त आर्य, यूपी बरेली से आये आचार्य सत्यदेव शास्त्री, बिहार के दानापुर से आये सत्य प्रकाश आर्य व पटना से आये आचार्य संजय सत्यार्थी ने अपने सुमधुर भजनों के माध्यम से लोगों को कर्म फल सिद्धान्त के लाभ व हानि बताए। बताया कि पाप कर्म शरीर से नहीं होता है जो गंगा में स्नान करने से धूल सकता है।पाप या पुण्य मन से होता है। मन को पानी से नहीं धोया जाता है। वह कर्म से धुलता और बनता है। इसके प्रायश्चित के लिए ध्यान, योग व यज्ञ करने की जरूरत है। वक्ताओं ने लोगों को सुकर्म कर अपने पीढ़ी को योग्य नागरिक बनाने पर जोर दिया।

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