30 मई को होगा गंगा दशहरा, गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के दिवस के रूप में मनाते है गंगा दशहरा

श्रीरामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना गंगदशाहरा के दिन ही हुई थी

डीएनबी भारत डेस्क 

पूरी दुनिया में बसे सनातन हिंदुओं के लिए गंगा, गीता, गायत्री और गाय का बड़ा ही धार्मिक महत्व है। ऐसे में गंगा दशहरा अपने आप में महत्वपूर्ण शुभ तिथि है।

क्या है पौराणिक कथा

इस संदर्भ में इतिहास की शिक्षिका मधु कुमारी कहती है कि ऋग्वेद सम्पूर्ण वेदों में सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। अगर प्राचीन ऋग्वेद को प्रमाण मानते हुए इतिहास का संदर्भ लेकर हम कहे तो गंगा के पृथ्वी पर आने की कथा चंद्रवंशीयों से संबंधित है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। ऋग्वेद में ऐसा प्रमाण आया है कि ययाति के 5 पुत्र पुरु, यदु, तुर्वस, अनु और दुह्यूमु ने मिलकर संपूर्ण एशिया महादेश पर राज किया था।

महाभारत युद्ध से पूर्व आर्यावर्त क्षेत्र में आर्यों के बीच दसराज युद्ध हुआ था। इस युद्ध का वर्णन ऋग्वेद के सातवें मंडल में मिलता है।
इस युद्ध से पता चलता है कि आर्यों के कुल कितने कबीले थे और आर्यों की सत्ता इस पृथ्वी पर कहां कहां तक फैली हुई थी। इतिहासकारों के अनुसार पाकिस्तान के पंजाब के निकट बहने वाली रावी नदी के पास यह युद्ध हुआ था।

इक्ष्वाकु वंश के राजा सागर भागीरथ और श्रीराम के पूर्वज थे। राजा सगर की दो रानियां थी एक केशिनी दूसरी सुमति। बहुत समय तक दोनों पत्नियों से संतान नहीं होने पर दोनों पत्नियों ने साथ मिलकर हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र की कामना के लिए तपस्या किया था। तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने वरदान दिया कि एक रानी को 60000 अभिमानी पुत्र प्राप्त होंगे और दूसरी पत्नी से एक पुत्र होगा परंतु वह 60000 पुत्र वीरगति को प्राप्त करेंगे और एक पुत्र से ही वंश आगे चलेगा।

बाद में रानी सुमति ने गर्भ पिंड को जन्म दिया जिसे राजा ने एक मटके में सुरक्षित रखा और कालांतर में राजा सगर के साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए। राजा सगर ने जब अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया तब साठ हजार पुत्रों को उसने घोड़े की सुरक्षा के लिए नियुक्त किया। देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छल पूर्वक चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।

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राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को यह लगा कि कपिल मुनि ने ही घोड़ा चुराया है इससे उन पुत्रों ने कपिल मुनि का अपमान किया तब कपिल मुनि ने इन सात हजार पुत्रों को भस्म हो जाने का श्राप दे दिया और कहा कि तुम्हें अकाल मृत्यु की प्राप्ति होगी।
कालांतर में अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए राजा भगीरथ ने घोर तप करते हुए गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल हुए।

पूर्वजों की भस्म को गंगा के पवित्र जल में डालने से ही उनके पितरों को मुक्ति प्राप्त हुई। और तभी से गंगा को मोक्षदायिनी भी कहा जाने लगा और परंपरागत रूप से अपने पितरों के मरने पर उनके जले हुए भस्म एवं अस्थि को मोक्ष की कामना से गंगा में प्रवाहित करने का परंपरागत विधान बना हुआ है जो कि आज भी चलते आ रहा है। राजा भगीरथ की कठिन तपस्या से इस पृथ्वी पर गंगा का अवतरण हुआ इसलिए गंगा को भागीरथी के नाम से भी जाना जाता है।

औऱ कहां क्या है प्रमाण

स्कंद पुराण एवं वाराह पुराण में गंगा अवतार के संदर्भ में यह चर्चा मिलती है कि जेष्ठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग से निकलकर इस पृथ्वी पर आई थी।

क्या है विशेष संयोग

वराहपुराण के अनुसार दशमी तिथि मंगलवार हस्त नक्षत्र व्यतिपात योग कन्या राशि में चंद्रमा एवं वृष राशि में सूर्य इन सबों का एक साथ मिलना विशेष संयोग है जो कि दस प्रकार के पापों को नष्ट करता है। विद्वान ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री कहते हैं कि वैसे तो गंगा स्नान नित्य ही पुण्य दायिनी माना गया है लेकिन विशेष तिथियों में एवं विशेष संयोग पर गंगा स्नान का विशेष महत्व एवं पुण्य है।

पराशर भाष्य के मतानुसार “ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशमयं हस्त योगतः। दशजन्मधाह गंगा दश पाप हरा स्मृता”।।

इस वर्ष 30 मई मंगलवार को प्रातः सूर्योदय के पश्चात सूर्यास्त तक दशमी तिथि रहेगी एवं इस दिन सूर्योदय के बाद 10 बजकर 04 मिंट तक रहेगी साथ ही कन्या राशि में चंद्रमा एवं वृष राशि में स्थित हैं यह विशेष प्रकार का संयोग लग रहा है।

गंग दशाहरा के दिन गंगा का स्नान, गंगा का स्पर्श, गंगा का दर्शन एवं गंगाजल का पीना यह सभी पापों को नष्ट करने वाला है। साथ ही दैहिक, दैविक एवं भौतिक तत्वों से मुक्ति को देने वाला होगा।

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