नालंदा: पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण अपने अस्तित्व को खो रहा है 300 बीसी में निर्मित राजगीर का साइक्लोपियन वॉल,चीन की दीवार से भी पुराना है यह दीवार

 

बरसात के कारण ध्वस्त हो रहा है दीवार

डीएनबी भारत डेस्क

नालंदा-300 बीसी में निर्मित अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर में स्थित साइक्लोपियन वॉल के अस्तित्व पर अब संकट खड़ा हो गया है। जहां एक ओर सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे दुनिया के आठ अजूबों में शामिल कराने को लेकर प्रयासों में जुटे हुए हैं। इससे जुड़े प्रस्ताव को यूनेस्को को भेजा गया हैं। तो वहीं पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण साइक्लोपिन वॉल अब ध्वस्त होने लगी है।

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प्राचीन काल में ऐसी मान्यता है की साइक्लोपियन वॉल की नींव महाभारत काल में राजा बृहद्रथ के द्वारा रखी गई थी। उस वक्त राजगीर को बृहद्रथपुरी के नाम से जाना जाता था। बाद में राजा बृहद्रथ के पुत्र ने राज्य की सुरक्षा के लिए दीवार को पूर्ण करने का काम किया था। राजगीर के पंच पहाड़ियों को जोड़ने वाली साइक्लोपियन वाल 40 किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है।

नालंदा की सीमावर्ती जिला गया एवं नवादा के वनगंगा के दोनों ओर उदयगिरि एवं सोनागिरी पर्वत पर साइक्लोपिन वाल राजगीर प्रवेश करने के दौरान नजर आती है। वही इस संबंध में पुरातत्व विभाग के संरक्षण सहायक अमृत झा ने बताया की साइक्लोपियन वॉल ध्वस्त होने की सूचना पर उनके निरीक्षण किया गया है निरीक्षण के बाद इसकी सूचना वरीय पदाधिकारी को दी गई है जल्द ही इस समस्या को दूर किया जाएगा।

वहीं स्थानीय पत्रकार रामविलास ने कहा कि यह साइक्लोपियन वाल चीन की दीवार से भी काफी पुराना है। इन दोनों पुरातत्व विभाग के अनदेखी के कारण इसके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। साइक्लोपियन वाल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से राजगीर के लिए एक अहम धरोहर में से एक है।

डीएनबी भारत डेस्क

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