स्वामी विवेकानंद जयंती की अवसर पर एपीएसएम कॉलेज में कार्यक्रम आयोजित

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डीएनबी भारत डेस्क 

अयोध्या प्रसाद सिंह स्मारक महाविद्यालय बरौनी में स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस के अवसर पर विविध कार्यक्रम आयोजित किये गए। महाविद्यालय में इस अवसर पर वार्षिक व्याख्यान श्रृंखला के तहत स्वामीजी के व्यक्तित्व एवं राष्ट्र के प्रति उनके योगदान पर विख्यात वक्ताओं द्वारा प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय प्रांगण में स्थापित स्वामी विवेकानंद की ताम्र प्रतिमा पर अतिथि एवं महाविद्यालय प्रधानाचार्य द्वारा पुष्प सह माल्यार्पण के साथ प्रारंभ हुआ।

तत्पश्चात दीप प्रज्जवलन द्वारा कार्यक्रम की शुरुआत हुई। महाविद्यालय प्रधानाचार्य एवं वरिष्ठ शिक्षकों द्वारा अतिथियों का स्वागत पुष्प गुच्छ एवं अंगवस्त्र द्वारा किया गया। स्वागत सह उद्बोधन महाविद्यालय प्रधानाचार्य डॉ मुकेश कुमार द्वारा किया गया। उन्होंने स्वामीजी के सामाजिक आर्थिक एवं आध्यात्मिक विचारों की पृष्ठभूमि से सभाकक्ष में मौजूद स्रोतो को अवगत कराया।

प्रथम वक्ता के रूप में स्वामी ब्रह्मस्वरूपानन्द जी महाराज जो कि रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ, देवघर से हैं, उन्होंने संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने स्वामी विवेकानंद के जीवन के विभिन्न प्रसंगों से अवगत कराया। उनके धैर्य, साहस और आत्मविश्वास जैसी मानवीय गुणों के साथ साथ साथ सत्य को जानने की इच्छा, व ईश्वर के अस्तित्व की आरंभिक खोज की आध्यात्मिक धारणा ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद व रामकृष्ण परमहंस के संबंधों पर प्रकाश भी डाला। स्वामीजी के व्यक्तित्व में दृढ़ता थी। साथ हीं उनमें नेतृत्व का गुण कूट कूटकर भरा था। कविगुरु रविंद्र नाथ ठाकुर के अनुसार भारत को जानने के लिए स्वामी विवेकानंद को जानना और समझना आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद भारतीय दार्शनिक परंपरा के वास्तुविद थे।

तत्पश्चात श्रीकृष्ण महिला महाविद्यालय बेगूसराय के प्रधानाचार्य महोदय डॉ बिमल कुमार ने सभा को सम्बोधित किया। उन्होंने खेतड़ी महाराज के दरबार के प्रसंग से स्रोताओं को अवगत कराया। गणिकाओं के नृत्य संगीत को देखकर वे असहज महसूस करने लगे। गणिका को हेय दृष्टि से देखने के कारण उन्हें स्वयं में आत्मग्लानि महसूस हुई तत्पष्चात उन्होंने उस गणिका को “माता” कहकर संबोधित किया। तदोपरांत उस गणिका ने उन्हें “विवेकानंद” कहकर संबोधित किया।

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बिहार विधानपरिषद सदस्य सर्वेश कुमार जो कि इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे, उन्होंने अपने संबोधन में इस व्याख्यानमाला के विषय के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हमारा देश, हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति ज्ञान आधृत है। आज के दौर में ज्ञान ही शक्ति है, तकनीक ही आधार है। हमारे संस्कृति की यही खासियत सदैव रही है कि हम ज्ञान को शक्ति मानते हैं। ऋषि परम्परा ने ज्ञान की परंपरा का जो सूत्रपात किया उसके सम्बाहक विवेकानंद हुए। विवेकानंद भारतीय संस्कृति के विविध पहलुओं के प्रतिनिधि थे। श्रेष्ठतम समाज के निर्माण का आधार और एक सबल व श्रेष्ठ राष्ट्र की अवधारणा “वसुधैव कुटुम्बकम” द्वारा ही सम्भव है।

महाविद्यालय के भूतपूर्व प्राध्यापक डॉ अमरेश शांडिल्य ने अपने समबोधन मे उन्होंने बताया कि भारतीय समाज के पिछड़ेपन और शोषण को देखकर स्वामीजी का मन विचलित था। 11 सितंबर 1893 को शिकागो में स्वामीजी ने धर्म और संस्कृति की भूमिका को दुनिया के समक्ष रखा। डॉ धर्मेंद्र कुंवर, जो कि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग में भूतपूर्व असोसिएट प्रोफेसर रहे हैं, उन्होंने स्वामीजी के व्यक्तित्व के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया। विवेकानंद की ओजस्वी वाणी का असर इतना था कि राष्ट्रवाद के उभार में इसने अहम भूमिका निबाही। भारतीयों को आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाने के लिए स्वामीजी ने निरन्तर प्रयास किये। मानवता की सेवा को उन्होंने जीवन का आधार बनाया। मनसा वाचा और कर्मणा से हम सभी नैतिक बनें ये स्वामीजी की इच्छा थी।

ध्यातव्य हो कि 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में जन्में नरेन्द्रनाथ दत्त को आध्यात्मिक मार्ग अपनाने के बाद स्वामी विवेकानंद के नाम से जाना जाने लगा। उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व को याद करने और युवाओं के प्रेरणास्रोत होने के कारण प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। बता दें कि नरेन्द्रनाथ ने बहुत कम उम्र में अध्यात्म का मार्ग अपना लिया था। साथ ही पश्चिमी संस्कृति में योग एवं वेदांत के विषय में जागृति लाने का श्रेय भी स्वामी विवेकानंद को ही जाता है। जिन्होंने 19वीं शताब्दी में विश्व भ्रमण कर धर्म, ज्ञान और योग की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया था। आज भी उनके द्वारा शिकागो में दिए गए ऐतिहासिक भाषण की चर्चा की जाती है। जब केवल ‘मेरे अमरीकी भाइयों और बहनों’ कहने मात्र से ही पूरी सभा 2 मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था।

स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्‍ण मठ, रामकृष्‍ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी। 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्‍व धार्मिक सम्‍मेलन में उन्‍होंने भारत और हिंदुत्‍व का प्रतिनिधित्‍व किया था। हिंदुत्‍व को लेकर उन्‍होंने जो व्‍याख्‍या दुनिया के सामने रखी, उसकी वजह से इस धर्म को लेकर काफी आकर्षण बढ़ा। स्वामीजी की शिक्षाओं ने भारत की युवा पीढ़ियों के लिये सदैव मार्गदर्शन का कार्य किया है। स्वामीजी कहते थे अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान। ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है। पवित्रता, धैर्य और उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं। उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तमु अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय प्रधानाचार्य डॉ मुकेश कुमार व कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ नन्दकिशोर पंडित ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के सभी शिक्षकगण व शिक्षणेत्तर कर्मी के अलावे भारी संख्या में महाविद्यालय के छात्र मौजूद रहे। धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सुशील कुमार द्वारा किया गया।

बरौनी से चंदन कुमार 

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