51 शक्तिपीठों में से एक हैं मां मुंडेश्वरी देवी, यहां बिना खून बहाए दी जाती है बलि

बिहार की राजधानी पटना से करीब 215 किलोमीटर दूर कैमूर की पहाड़ी पर स्थित मुंडेश्वरी धाम मंदिर की है अद्भुत कहानी। बिना खून बहाए दी जाती है बलि। भगवान शिव भी हैं यहां विराजमान। मार्कण्डेय पुराण में है इस मंदिर का वर्णन

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बिहार की राजधानी पटना से करीब 215 किलोमीटर दूर कैमूर की पहाड़ी पर स्थित मुंडेश्वरी धाम मंदिर की है अद्भुत कहानी। बिना खून बहाए दी जाती है बलि। भगवान शिव भी हैं यहां विराजमान। मार्कण्डेय पुराण में है इस मंदिर का वर्णन

डीएनबी भारत डेस्क 

बिहार की राजधानी पटना से करीब 215 किलोमीटर दूर कैमूर की पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित मां मुंडेश्वरी मंदिर लोगों के आस्था का पर्याय माना जाता है। इस मंदिर में मां दुर्गा और भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। यह मंदिर भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। पुरातात्विक प्रमाण और यहां से मिले शिलालेखों के आधार पर यह माना जाता है कि यह मंदिर कुषाण काल से अवस्थित है। भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर नागर शैली वास्‍तुकला का नमूना है।

बनावट
कहा जाता है कि इस मंदिर की स्‍थापना 108 ई में की गई थी। 1915 के बाद से यह भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित स्‍थल है। शिलालेख के अनुसार उदयसेन नामक राजा के शासनकाल में इसका निर्माण कराया गया था। यह देश के 51 शक्तिपीठों में शामिल है। मंदिर की बनावट अष्‍टकोणीय है।

कैसे पहुंचें?
यह मंदिर कैमूर के पंवड़ा पहाड़ी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को सबसे पहले भभुआ भगवानपुर के रास्ते सवारी गाड़ी आसानी से मिल जाती है। इसके अलावा भभुआ से भभुआ – चैनपुर पथ पर मोकरी गेट से दक्षिण होकर मुंडेश्वरी धाम मंदिर पहुंचा जा सकता है। मुंडेश्वरी धाम तक पहुंचने के लिए पहाड़ी को काट कर सीढि़यों व रेलिंग युक्त सड़क बनाई गई है।

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मुंडेश्वरी धाम मंदिर

पौराणिक मान्यता
पौराणिक कथाओं में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार माता भगवती ने यहां पर अत्याचारी असुर मुंड का वध किया था। इसी वजह से इस मंदिर का नाम मुंडेश्वरी पड़ा। श्रद्धालुओं के अनुसार मां मुंडेश्वरी से सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। शारदीय और चैत्र नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। इसके अलावा यहां रामनवमी और महाशिवरात्रि पर भी श्रद्धालु की भारी भीड़ जुटती है। मंदिर में एक पंचमुखी शिवलिंग भी है। कहा जाता है कि दिन के तीन समय शिवलिंग का रंग अलग-अलग दिखता है।

बिना खून के बलि 
कहा जाता है कि मुंडेश्वरी मंदिर में आदिकाल से बलि की परंपरा है। देवी मां से मांगी गई मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु यहां बकरे की बलि देते हैं। यहां बलि देने की एक अद्भुत और चमत्कारिक तरीका है कि बिना खून बहाए या बकरे की जान लिए बिना ही यहां बलि दी जाती है। परंपरा के अनुसार मंदिर के पुजारी बलि के बकरे को देवी मां की प्रतिमा के सामने खड़ा कर देते हैं और देवी मां के चरणों में अक्षत अर्पण कर उसी अक्षत को बलि के उस बकरे पर फेंकते हैं। अक्षत फेंकने के बाद बकरा बेहोश हो जाता है और जब बकरा होश में आता है तो उसे लोग अपने घर ले जाते हैं। यहां बलि देने की यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है।

मुगल शासक औरंगजेब ने की थी मंदिर तोड़ने की असफल कोशिश
कहा जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को भी तोड़वाने का प्रयास किया था। मजदूरों को इस काम में लगाया गया। लेकिन जो मजदूर मंदिर तोड़ने में लगे थे उनके साथ अनहोनी होने लगी। तब वे काम छोड़कर भाग निकले।

 

मंजेश कुमार

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