52 शक्तिपीठ में से एक है जयमंगलागढ़ शक्तिपीठ, कहा जाता है ‘जागृत शक्तिपीठ’

डीएनबी भारत डेस्क

शारदीय नवरात्र के दौरान श्रद्धालुगण सुख-समृद्धि की कामना के साथ माता शक्तिदायिनी की पूजा-अर्चना कर रहे हैं साथ ही अलग-अलग शक्तिपीठों में इन दिनों माता के भिन्न-भिन्न स्वरूपों के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। ऐसे ही एक शक्तिपीठ का दर्शन हम आपको कराने जा रहे हैं।

अखंड भारत के 52 शक्तिपीठों में से एक बिहार के बेगूसराय का जयमंगलागढ़ सिद्धपीठ भी है। यह बेगूसराय जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर उत्तर एशिया के सबसे बड़े गोखुर झील काबर झील के पास स्थित है। यहाँ तंत्र सिद्धि की प्राप्ति के लिए साधु-संत आते रहे हैं। देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक इस मंदिर को जागृत स्थल और सिद्ध शक्तिपीठ माना जाता है। कहा जाता है कि जब सती का शव लेकर भगवान भोले शंकर तांडव नृत्य कर रहे थे, तब देवी का वाम स्कंद इसी स्थान पर गिरा था।

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सती के स्कंद (कंधा) के गिरने की आवाज से झंकार उत्पन्न हुआ तो इस जगह पर गंधर्व पहुंच गए, जिसके बाद इस जगह पर गंधर्वों ने पूजा की थी तो यह स्थल शक्ति पीठ के साथ- साथ सिद्धपीठ के रुप में भी स्थापित हो गया। मान्यता और सिद्धि प्राप्त करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण शारदीय नवरात्र में जिले ही नहीं बल्कि दूर-दूर से लोग यहां पर माता के दर्शन और पूजन के लिए भारी संख्या में जुटते हैं।

कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की यज्ञ विध्वंस के बाद क्रोधित भगवान शिव माता सती का शव लेकर महातांडव कर रहे थे तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। सती के शरीर के खंड व आभूषण जहां-जहां गिरे वहां वहां शक्तिपीठ बने। उन्हीं में से एक अंग बेगूसराय स्थित जयमंगलागढ़ में गिरा था।

देवी भागवत के अनुसार जब त्रिपुरासुर का आतंक धरती पर बढ़ने लगा था तब भगवान शिव ने यहां आकर माता जयमंगला की पूजा अर्चना की, तब मा‌ं ने प्रकट होकर असुर के वध करने का आशीर्वाद दिया था। जिसके बाद त्रिपुरासुर का अंत हुआ था। धर्म ग्रन्थ देवी भागवत में भी जयमंगला देवी का उल्लेख है। दरअसल जयमंगला देवी का नाम “जयंती मङ्गला काली भद्र काली कपालनी स्वहा स्वधा नमोस्तुते” इसी लाइन के प्रथम शब्द जयंती मङ्गला से है। कहा जाता है कि सिद्धि की प्राप्ति के लिए कामाख्या धाम और विंध्वासिनी देवी के बाद जयमंगलागढ़ आने के बाद ही सिद्ध पुरुष को सिद्धि प्राप्त होती है।

नवरात्र में पूजा का विशेष महत्व ऐसे मंदिर परिसर में सालों भर श्रद्धालुओं व भक्तों की भीड़ जुटती है। लेकिन मंगलवार व शनिवार को बेगूसराय जिला के साथ-साथ मिथिलांचल क्षेत्र के भी लोग जुटते हैं। नवरात्र में स्थानीय श्रद्धालु भी मन्दिर परिसर में बैठकर शप्त शती का पाठ करते हैं। विधि विधान के साथ बेलवा निमंत्रण दी जाती है। इसके पश्चात जागरण के बाद मां का दर्शन के लिए पट खुलता है। शारदीय नवरात्र में मां की पूजा व दर्शन का विशेष महत्व है।

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