भारत एक महान देश है जिसका आध्यात्मिक अन्वेषण अनादि काल से विश्व पैमाने पर विश्वस्त है – चिदात्मन जी महाराज

सिमरिया धाम के चौंसठ योगिनी मैया मंदिर के प्रांगण में श्री यंत्र का विधिवत पूजन किया गया

डीएनबी भारत डेस्क 

चैत्र पूर्णिमा के सुअवसर पर अनादि काल के बाद दुर्लभ संयोग से सिद्धाश्रम सिमरिया धाम के चौंसठ योगिनी मैया मंदिर के प्रांगण में श्री यंत्र का विधिवत पूजन किया गया। जिसमें चैत महीना के इस विशिष्ट योग में ब्रह्मपुत्र कामाख्या प्रसिद्ध है, आदि कुंभ स्थली सिमरिया धाम मंे लगभग 22 वर्षों से चौंसठ योगिनी मंदिर में श्री यंत्र की पूजा होती आ रही है जो उस समय के जिलाधीश तेज नारायण लाल दास के कर कमलों से प्रतिष्ठित किया गया और जिसमें पूर्व मेयर उपेंद्र सिंह के साथ-साथ बहुत सारे भाग्यशाली का तन मन धन से सहयोग हुआ।

आज चैत पूर्णिमा गुरुवार को विधिवत सर्वमंगला परिवार के साथ साथ राष्ट्रहित में जनहित में समाज हित में संस्कृति हित में सत्य और न्याय के पुजारी परमात्मा विरनदो के साथ-साथ सर्वमंगला के अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी ,व्यवस्थापक रविंद्र ब्रह्मचारी ,कोषाध्यक्ष नवीन प्रसाद सिंह , मीडिया प्रभारी नीलमणि ,रंजन ,गौरी शंकर सिंह ,अमरेंद्र ,कौशलेंद्र ,रितेश कुमार ,पप्पू त्यागी ,आचार्य नारायण झा, पंडित दिनेश झा, पंडित राजेश झा, पंडित रमेश , पंडित राम शंकर झा, अरविंद चौधरी ,राकेश कुमार ,पंडित राम, लक्ष्मण, श्याम के साथ-साथ सर्वमंगला परिवार के विशिष्ट पुण्यात्माओं के द्वारा पूजन हवन कन्या पूजन एवं विशिष्ट भंडारे का आयोजन किया गया और सब ने आदि कुंभ स्थली सिमरिया धाम के सर्वांगीण विकास जिनके सौजन्य से हुआ उन सबों के लिए सब प्रकार से मंगल हो यही जयघोष किया गया।

इस अवसर पर सिद्धाश्रम के अधिष्ठाता, करपात्री, अग्निहोत्री , प्रातः स्मरणीय पूज्य गुरुदेव स्वामी चिदात्मन् जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत एक महान देश है जिसका आध्यात्मिक अन्वेषण अनादि काल से विश्व पैमाने पर विश्वस्त है । जिसमें श्री यंत्र का अनुसंधान विशिष्ट तर है जिसमें बिंदु से लेकर त्रिकोण खरगोन ब्रिष ,भुपुर आदि दैहिक दैविक भौतिक पाप ताप संताप का समन करने वाला धर्म अर्थ कर्म मोक्ष चतुरवीद पदार्थ, अलौकिक सुख और पारलौकिक गति को देने वाला है। इसकी प्रशंसा ऋषि महर्षि आचार्य आदि के द्वारा आगम निगम पूर्ण विख्यात है ।

महर्षि वशिष्ठ गुरु, गोरखनाथ ,शंकराचार्य ,यज्ञ राज , कुबेर के साथ-साथ देवराज इंद्र एवं देव गुरु बृहस्पति ने भी भूरी भूरी प्रशंसा की। द्वादश कुंभ योग में कुंभ एवं उसका सार्थक उपयोग निश्चित तौर पर जन्म जन्मांतर के पुण्य पूंजी भूत होने पर ही संभव हो पाता है प्रत्येक वर्ष एक राशि पर 1 वर्ष बृहस्पति रहते हैं एक महीना सूरज रहते हैं और ढाई दिन चंद्रमा रहते हैं जिस राशि पर बृहस्पति के साथ सूर्य चंद्रमा का योग बनता है वह दुर्लभ योग वर्ष में केवल ढाई दिनों के लिए आता है। विषय ऋषि मुनि महात्मा संत आचार्य इंदु ने जगत कल्याण के लिए एक साथ समायोजन के लिए द्वादश विशिष्ट स्थलों को निर्धारित किया ।

बेगूसराय बीहट संवादाता धरमवीर कुमार की रिपोर्ट