संत पॉल पब्लिक स्कूल तेघड़ा में पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया गया

शिक्षक दिवस शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता एवं नमन का अवसर होने के साथ  साथ दार्शनिक, चिंतक और मूल रूप से आजीवन शिक्षक रहे मनीषी सर्वपल्ली राधा कृष्णन के स्मरण का दिन है – राम कुमार मिश्रा

डीएनबी भारत डेस्क

बेगूसराय-गुरुवार को संत पॉल पब्लिक स्कूल तेघड़ा में पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया गया। मौके पर विद्यालय के प्राचार्य डॉ विनय ओझा एवं वरिष्ठ शिक्षक एवं समन्वयक श्री राम कुमार मिश्रा ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मंच का संचालन कर रहे विद्यालय के वरीय शिक्षक श्री राम कुमार मिश्रा ने कहा – शिक्षक दिवस शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता एवं नमन का अवसर होने के साथ  साथ दार्शनिक, चिंतक और मूल रूप से आजीवन शिक्षक रहे मनीषी सर्वपल्ली राधा कृष्णन के स्मरण का दिन है।

भारत के दुसरे राष्ट्रपति और सोवियत रूस में राजदूत की गौरवपूर्ण पद-प्रतिष्ठा के बाबजूद वे प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास, मैसूर एवं कलकत्ता विश्व विद्यालय के अध्यापन काल के साथ काशी हिंदू विश्व विद्यालय में कुलपति पद के कार्यकाल को वे जीवन का ‘स्वर्णिम काल’ मानते रहे। इसी के साथ प्राचार्य महोदय ने विद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक श्री सचित के.आर.रामचन्द्रन और श्री प्रवीन कुमार प्रवेन्द्र को “दी बेस्ट टीचर अवार्ड” देकर सम्मानित किया I

शिक्षिका प्रीति प्रिया और शिक्षक भीम कुमार के निर्देशन में कक्षा अष्टम के छात्र देव दक्ष (एकलव्य), छात्रा – संजना कुमारी (भील राजा हिरण्य धनु), गुड़िया कुमारी (सुलेखा – एकलव्य की माँ) और भावना कुमारी (गुरु द्रोणाचार्य), गोपी, अक्षत मिश्रा, अमन, आर्यन, प्रियांशु, प्रणव, सत्यम आदि के कुशल और सफल अभिनय से एक एकांकी – “गुरुभक्ति एकलव्य” का मंचन किया गया I

जिसे देख दर्शक-दीर्घा के लोग आत्म-विभोर हो गए I वही सी.सी.ए. टीम के सदस्य विक्की कुमार, प्रफुल्ल कुमार, काजल कुमारी, भारती सिंह, खुशी प्रिया के सफल निर्देशन में कनिका, पीहू, मासूम सानवीं और अनोखी परी आदि के द्वारा एक से बढ़ कर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया, जो कार्यक्रम में चार चांद लगा दिया I

तत्पश्चात विद्यालय के प्राचार्य ने कहा – सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जीवन में कभी किसी से कुछ मांगा नहीं, पर उन्हें सब कुछ मिला। मई 1967 में अपने विदाई भाषण में उन्होने कहा था – हमरा नारा किसी भी कीमत पर “पावर” पाना नहीं बल्कि सेवा होना चाहिए। उनका यह मूल वक्तव्य 63वें शिक्षक दिवस पर आज हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है। उनका मानना था – यदि शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं दी गई, तो लोकतंत्र में होने वाले सभी प्रयोग असफल रहेंगे। उनके इन शब्दों को व्यवहारिक रूप से आज आत्मसात करने की जरूरत है।

प्राचार्य डॉ ओझा ने कहा – आज शिक्षकों का दायित्व है उस चेतना का संचार करे, जो जीवन-मूल्यों के उत्प्रेरक का कार्य करती है। आज ज्यादर विद्यार्थी कई तरह के दुराग्रहों के साथ शिक्षा केन्द्रों में पहुचते हैं। ऐसे में, यदि शिक्षक ही विवश हो जाएं और वे गलत को गलत न कह सकें तो इससे एक असभ्य समाज का निर्माण होगा। शिक्षकों में इतना आत्मबल होना चाहिए कि वे नि:संकोच विवेकशील दिशा – निर्देश कर सकें।

उसके बाद विद्यालय की छात्रा आयुषी कुमारी ने अपने संबोधन में कहा – इस दुनिया में शक्ती का आधार “ज्ञान” है। इसीलिये वैदिक काल से गुरुओं को पूजने की परंपरा रही है। एक आदर्श जीवन की ओर बढने, भौतिकतता से आध्यात्मिकता की ओर चलने और सदकर्मों की प्रेरणा गुरु/शिक्षक ही दे सकते हैं। उन्होंने कहा – आदि काल में वात्सल्य व सम्मान के सहारे गुरु और शिष्य का जीवन-पर्यंत एक अटूट रिश्ते में बँध जाते थे। उसी पवित्र-प्रगाढ रिश्ते की जरूरत इस भौतिकवादी युग में आन पड़ी है। तभी हम फिर से कल्याणकारी विश्व की ओर मजबूती से कदम से कदम मिलाकर बढ़ सकेंगे। उन्होने शिव को भी गुरु बताया और कहा – शिव तो समदर्शी हैं I

वक्ताओं में से एक शिक्षक भीम कुमार ने कहा – राधाकृष्णन भव्यता की प्रतिमूर्ति थे। वह शिक्षक को समाज में सम्मान और शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता के हिमायती रहे। उनके विभिन्न व्याखानों का सार तत्व था, ” मानव सर्वश्रेष्ठ है, वह ज्ञान और विवेक – सशक्त है। अन्य प्राणियों की तुलना में वह  चिंतनशील है और उसका जीवन-दर्शन सहभाव अर्थात साथ जीने का है। भारतीय-चिंतन – सर्वे भवन्तु सुखिन: से पूरे विश्व का कल्याण संभव है। उन्होने कहा – स्वाधीनता संग्राम के दौरान स्वाधीनता संग्राम का नर्सरी कहा जाने वाला काशी हिंदू विश्व विद्यालय को बन्द करने के अंग्रेजी सरकार का तानाशाही फरमान को अस्वीकार कर उन्होँने अपनी अटूट दृढ़ता और साहस का परिचय दिया था। उन्होने कहा- उनकी संत, दार्शनिक, चिंतक जैसी अनेक छवियां भारतीय इतिहास में अंकित है। पर एक शिक्षक की उनकी छवि सबसे महत्वपूर्ण है। उनके कृतित्व के कारण ही उन्हें  “एकेडमीक एक्ट्रीमिस्ट”  कहा गया।

अंतिम वक्ता के रूप कुमारी प्रीति प्रिया ने कहा ने कहा – राधाकृष्णन अपनी वक्तव्य-मान्यता “चरित्र ही मनुष्य का भाग्य और भविष्य है।” के प्रतीक पुरुष थे। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के दर्शन पर पहली पुस्तक से प्रारंभ उनकी लेखनी के प्रमाण आज विश्व स्तर पर समादृत उनकी दर्जनों पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है। उन्होने कहा – आज हम संक्राति काल से गुजर रहे हैं। सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता, प्रेम, शांति जैसे शाश्वत मानवीय मूल्यों की पुन: प्रतिष्ठा आवश्यक है, क्योंकि इनमें आई गिरावट ने सम्पूर्ण मानवता के लिए त्रासद की स्थितियाँ पैदा कर दी। अत: जरूरत है  अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के साथ – साथ मानवता की रक्षार्थ की। अंत में धन्यवाद ज्ञापन  सुरेंद्र कुमार सिंह ने किया। मौके पर मौजूद थे विद्यालय के सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं एवं शिक्षकेत्तर – कर्मी आदि I

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