डीएनबी भारत डेस्क
सनातन धर्म ही भारत राष्ट्र की आत्मा हैं,जिसे ऋषियों और कवियों ने युग युग से संजोया हैं।इसी कड़ी में मिथिला के महान कवि विद्यापति ने शिव के लिए नचारी और राधा कृष्ण के लिए पद लिखकर घोर मुस्लिम काल में सनातन धर्म को बचाने का काम किया था। महाकवि विद्यापति पूरे पूर्वोत्तर भारत में मध्य युगीन कवियों के भी प्रेरणा पुंज बनें। उक्त बातेंसर्वमंगला अध्यात्म योगपीठ सिमरिया धाम के ज्ञान मंच पर स्वामी चिदात्मन वेद विज्ञान अनुसंधान संस्थान के तत्वावधान में त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन के गोष्ठी के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में अपने संशोधन करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद् के संस्थापक डॉ धनाकर ठाकुर ने कहा ।
समारोह में विशिष्ट अतिथि डॉ जनार्दन चौधरी ने कहा कि राष्ट्रीय चेतना और सनातन धर्म में एक खास अभिन्नता दिखाई पड़ती हैं, जो मिथिला वनाम विद्यापति के साहित्य में दिखाई पड़ता है। सम्मानित अतिथि डॉ राम पुनीत झा ने कहा कि विद्यापति एक रससिद्ध कवि हैं। अतिथि श्याम बाबू ने कहा कि सनातन ही संस्कार, धर्म,कर्म और मर्म की जननी है। समारोह में राज किशोर जी ने कहा कि महाकवि विद्यापति ने मिथिला संस्कृति की मधुर भाव, उसकी विस्तारित जनमानस में स्तुति और राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में अपनी महती योगदान को अंतिम दम तक करते रहे। विषय प्रवेश प्रो अवधेश कुमार झा जी ने करते हुए कहा कि आज हम विश्व शांति के लिए राष्ट्र कल्याण के लिए महाकवि विद्यापति जी का स्मृति पर्व मना रहे हैं।
बेगूसराय बीहट संवाददाता धरमवीर कुमार की रिपोर्ट