म्हारी छोरी छोरों से कम है के?: फिल्म देख जगी ललक, पिता ने बेटी को सिखाया कुश्ती का हुनर, समाज के ताने के बावजूद जीत आई सिल्वर

डीएनबी भारत डेस्क 

कहते हैं फिल्म समाज का आईना होता है। इस पंक्ति को बेगूसराय की मुकेश स्वर्णकार ने चरितार्थ कर दिखाया। उन्होंने बताया कि मोबाइल पर अपने परिवार के साथ साल 2016 में आई आमिर खान की फिल्म दंगल को देख रहे थे। इसी दरम्यान ख्याल आया कि हमें भी अपने दोनों बेटियों को कुश्ती का खिलाड़ी बनाऊंगा। शुरुआत के दिनों में समाज के ताने-बाने ने उन्हें काफी लज्जित किया। लेकिन संघर्ष की कहानी ने आज पूरे राज्य को गौरवान्वित कर रही है।

गांव में लड़ी पहली कुश्ती
निर्जला कहती हैं पहली बार साल 2018 में चैती दुर्गा पर महिला कुश्ती का आयोजन हुआ। शालिनी दीदी के साथ पहली बार यहीं कुश्ती खेली। शालिनी जिससे लड़ी वह मुकाबला ड्रा रहा। जबकि निर्जला ने प्रतिद्वंदी को पछाड़कर मुकाबला जीत लिया अपने पिता मुकेश के साथ प्रतिदिन सुबह शकरपुरा मैदान में प्रैक्टिस के लिए जाने लगीं।

बेगूसराय जिले के बखरी प्रखंड के सलौना के रहने वाले मुकेश सोनकर की आर्थिक रुप से काफ़ी कमजोर रहें। मां पूनम देवी अपनी सास के साथ मिलकर किराना दुकान चलाकर दोनों बेटियों का दाखिला अयोध्या नंदनी नगर एकेडमी में करवाया जहां उसकी दुनिया ही बदल गई।

 

भाई की मौत ने तोड़ दिया जज्बा, बहन की मेडल ने jga दिया फिर से
अखाड़े पर लड़ने वाली गांव की बेटी अब मैट पर कुश्ती का प्रैक्टिस करने लगी। निर्जला की बहन शालिनी कहानी सुनाते वक्त अपने जज्बात पर काबू नहीं रख पाई। उसने रुंधे गले से जो कहानी सुनाई, वह किसी का भी हौसला तोड़ देगा। उन्होंने बताया कि भाई की मौत के बाद हिम्मत ही नहीं हो रही आगे खेलने की। निर्जला तो हिम्मत कर नेशनल कुश्ती खेलकर सिलवर जीत भी ली। लेकिन भाई की मौत के सदमा ने शालिनी खेलने की इच्छा शक्ति ही खत्म कर डाली। 16 मई 2022 को दोनों बहनों का सिलेक्शन खेलो इंडिया में हुआ बेमन से पंचकुला गईं। भाई की मौत का सदमा दिमाग से नहीं निकलने के कारण पिछड़ गईं पर निर्जला को अब इस मुकाम पर देख उसका भी मनोबल बढ़ा है आगे स्वस्थ होकर वो भी पुनः पहलवानी करेगी।

 

आर्थिक तंगी आ रही आड़े
कुश्ती के खिलाडी निर्जला और शालिनी आर्थिक रूप से काफी कमजोर होने के कारण आगे का सपना पूरा नहीं कर पा रही है। इन्होंने बिहार के CM नीतीश और जिला प्रशासन से आर्थिक मदद मांगी। इनका सपना है अगर मदद मिले तो यह देश के लिए गोल्ड मेडल लाएंगे

डीएम ने दिया मदद का भरोसा
ऐसे में बेगूसराय के डीएम ने भी इन दोनों बची के हौसले और लगन की जमकर तारीफ की और सरकारी स्तर से हर संभव मदद का भरोसा दिया और कहा और बच्चियों को भी इनसे प्रेरणा प्राप्त होगी। बहरहाल जो भी हो निर्जला और शालिनी ने सामाजिक तंज को दरकिनार कर ना सिर्फ अपने मां बाप का नाम रोशन किया बल्कि अपने कस्बा जिला बिहार का नाम एक बार फिर भारत के मानचित्र पर दर्शा दिया ऐसे में उनके पिता ही नहीं आसपास के लोग भी अब यही बोल रहे की म्हारी छोरी छोरों से कम है के?

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