नवरात्र विशेष : भैरोनाथ के दर्शन बगैर पूरा नहीं होता वैष्णो देवी का दर्शन, जानें क्या है मां वैष्णो धाम का महात्म्य और रोचक तथ्य

नवरात्रि शुरू हो गई है और आज नवरात्रि का पहला दिन है। नवरात्र विशेष सीरीज में आज हम बताने जा रहे हैं मां वैष्णो देवी की कहानी। इस सीरीज में आज हम आपको बताएंगे क्या है कहानी मां वैष्णो की और इसकी महत्ता...

डीएनबी भारत डेस्क

भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू के कटरा के समीप मौजूद है मां वैष्णो देवी का भवन। इस भवन में मां वैष्णो को ध्यान में रख कर जो भी भक्त आते हैं मां उनकी मुरादों को अवश्य पूरा करती हैं। कहा जाता है कि मां वैष्णो देवी की दर्शन मात्र से ही लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं। सनातन को मानने वालों के बीच वैष्णो धाम का बहुत ही अधिक महत्व है। वैष्णो धाम के बारे में कहा जाता है कि कटरा से कुछ दूरी पर हंसाली गांव में माता के एक परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह माता के बहुत बड़े उपासक थे लेकिन वे निःसंतान थे और इस वजह से वह काफी दुखी रहते थे। एक बार उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कन्याओं को अपने घर बुलाया। मां वैष्णो भी कन्या रूप में भक्त श्रीधर के घर पहुंची थी।

कन्या पूजन के बाद सभी कन्याएं तो अपने घर चली गई लेकिन वैष्णो देवी रुक गईं। उन्होंने फिर श्रीधर से कहा कि अपने घर में भंडारा करो और सबको निमंत्रण दे आओ। मां की बात सुन श्रीधर ने पुरे गांव में लोगों को भंडारे का निमंत्रण दे दिया और साथ ही उन्होंने गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ को भी निमंत्रण दिया। पूरा गांव के लोग भंडारा में शामिल होने के लिए श्रीधर के घर पहुंच गए और लोगों को भोजन के लिए बैठाया गया। भंडारे में शामिल लोगों को वैष्णो देवी अपने अनोखे पात्र से भोजन परोसना शुरू कर दिया। जब वैष्णो देवी भैरवनाथ को भोजन देने लगी तो बाबा भैरवनाथ ने कहा कि मुझे शाकाहारी नहीं बल्कि मांसाहारी भोजन और मदिरा चाहिए।

बाणगंगा

लाख समझाने के बावजूद बाबा भैरवनाथ नहीं माने और फिर कन्या वैष्णो देवी को पकड़ना चाहा। तब मां त्रिकुटा पर्वत की तरफ उड़ चली और भैरवनाथ भी उनके पीछे चलने लगे। कहा जाता है कि कन्या वैष्णो देवी की रक्षा के लिए उनके साथ हनुमान जी भी थे। हनुमान जी को प्यास लगने पर वैष्णो देवी ने त्रिकुटा पर्वत में बाण मारा जिससे जल की धारा निकली और हनुमान जी ने अपना प्यास बुझाया। उस जलधारा को आज बाणगंगा के नाम से जाना जाता है।

भैरवनाथ से बचने के लिए वैष्णो देवी एक गुफा में प्रवेश कर गई लेकिन भैरवनाथ देवी का पीछा करते हुए वहां भी पहुंच गए। यहां वैष्णो देवी नौ माह तक तपस्या की। गुफा के नजदीक एक साधु ने भैरवनाथ को चेताया भी कि वे जिसके पीछे पड़े हैं वह कोई आम कन्या नहीं बल्कि साक्षात आदिशक्ति हैं लेकिन भैरवनाथ नहीं माने। इस बीच वैष्णो देवी गुफा के दूसरे तरफ से रास्ता निकाल कर वहां से भाग गई। उस गुफा को आज हम अर्धकुमारी, आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से जानते हैं। इस गुफा से निकल कर देवी ने भागते हुए मुड़ कर एक जगह से भैरवनाथ को देखा था उस जगह को आज हम चरण पादुका के नाम से जानते हैं।

अर्धकुंवारी

भैरवनाथ जब लगातार मां का पीछा करते रहे तो मां वैष्णो देवी ने गुफा से बाहर निकल कर आदिशक्ति देवी का रूप धारण कर वापस गुफा में चली गई और वीर हनुमान भैरवनाथ से लड़ते रहे। लेकिन जब हनुमान जी भैरवनाथ से लड़ते हुए मूर्छित होने लगे तब मां वैष्णो गुफा से बाहर निकल कर भैरवनाथ का संहार किया। वैष्णो देवी के प्रहार से भैरवनाथ का सिर कटकर वहां से 8 किलोमीटर दूर त्रिकुट पर्वत के भैरव घाटी में गिरा जो कि भैरोनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। जिस स्थान पर वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का संहार किया वह पवित्र गुफा या भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इस गुफा में मां महाकाली (दाएं), मां सरस्वती (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) पिंडी के रूप में विराजमान हैं। इन तीनों देवी को सम्मिलित रूप में वैष्णो देवी कहा जाता है।

भैरोनाथ मंदिर

कहा जाता है कि हठी भैरवनाथ संहार के बाद भी हार नहीं मानी और मां वैष्णो देवी से क्षमादान मांगी और पश्चाताप किया। मां वैष्णो देवी भी जानती थी कि भैरवनाथ यह सब सिर्फ मोक्ष की प्राप्ति के लिए कर रहे हैं। फिर मां वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को मोक्ष देते हुए पुनर्जन्म से मुक्ति दी और वरदान दिया कि जब तक भक्त आपका दर्शन न करे मेरे दर्शन का फल प्राप्त नहीं होगा। इस बीच देवी मां के भक्त श्रीधर अधीर होकर सपने में देखे त्रिकुटा पर्वत की तरफ निकल पड़े थे और वह गुफा तक पहुंचे। वहां उन्होंने कई विधियों से पिंडियों की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली और तब से आज तक भक्त श्रीधर के वंशज मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।