फ़फौत अंधविश्वास भगाओ देश बचाओ,समाज सुधार जागरूकता कार्यक्रम आयोजित
डीएनबी भारत डेस्क
बेगूसराय जिले के खोदावंदपुर प्रखंड के फफौत गांव में अंधविश्वास भगाओ देश बचाओ कार्यक्रम का आयोजन किया गया।सदियों से चली आ रही समाजिक कुरीति मृत्युभोज आज के सामाजिक दौर में जिंदा है। सिर्फ जिंदा ही नही ताकतवर और जवान है। इन्शान स्वर्ग जाने व पकवान खाने की लालच में कितना गिर चुका है। इसका जीता जागता नमुना है समाजिक कुरीतियां। ऐसी ही पीड़ा देने वाली कुरीति वर्षो पहले कुछ स्वार्थी पोंगा पंडितो द्वारा भोले भाले लोगो में फैलाई गयी भ्रम मृत्युभोज है। उनके भ्रमजाल में फंसकर आज हर जातियों के लोग मृत्युभोज करते है,अमीर हो या गरीब।
अमीर लोग तो सक्षम होने के कारण कर लेते हैं लेकिन गरीब लोग आर्थिके तंगी के कारण कर्ज में डूब जाते है जिससे उसके बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाते है । उनका विकास थम जाता है । इस लिए मृत्युभोज पर रोक लगाना जरूरी है । नशा बंदी के तरह लोग मृत्युभोज को भी बहिष्कार करे। सरकार को इसको भी बंद करना चाहिए। राजस्थान की तरह मृत्युभोज पर प्रतिबंध लगाने की जरुरत है । उक्त बातें अल्पसंख्यक आयोग पूर्व सदस्य सह साइंस फ़ॉर सोसाइटी पटना बुध प्रकाश ने कही । फ़फौत गांव स्थित सेवानिर्वित शिक्षक राजेन्द्र महतो के आवास पर शुक्रवार को अंधविश्वास भगाओ देश बचाओ,समाज सुधार जागरूकता शिविर को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “लीक लीक गाड़ी चलै, लिकहि चले कपूत , ये तीनो उल्टे चले शायर सिंह सपूत” लीक से हटके चलने के लिए हौसला और साहस की जरूरत पड़ती है ।
धारा के साथ तो कोई भी चल सकता है , लाशें भी धारा के साथ बहती है । आसन्न परस्थिति में धारा के विपरीत चलने वाले लोगो की जरूरत है । जो धारा के विपरीत चलकर एक नया मार्ग बनाता है । जिसका अनुसरण कर लोग विकास की गाथा लिखते हैं । उन्होंने बताया कि ऐसे ही समाज सुधारक बेगूसराय क्रांतिकारी मार्क्सवादी आई पी एस कमांडेंट एस के सिंह से उनकी मुलाकात हुई । जिन्होंने अपने पिता के मृत्यु उपरांत न ही उतरी पहने न ही मुंडन करवाया । इतना ही नही ? अपने पिता के मृत्यु उपरांत उन्होंने मृत्युभोज भी नही किया । सिर्फ 15 वीं दिन एक शोक सभा का आयोजन किया । जिसमें गरीब लोगों के बीच गर्म कंबल का वितरण किया और उन्हें ही खाना खिलाया ।
सगे संबंधी उनके घर आते हैं । लोग पकवान खाकर खुशी का इजहार भी करते हैं । तो समझ मे आता है कि उसके घर शादी विवाह का फंग्शन , होली ,दिवाली , तीज त्योहार का आयोजन था । तो लोग खुशी में भोज किए । लेकिन यह बात समझ मे नही आता कि लोगो के अपने विछुड़ गए , इस दुनियां से चल बसे , लेकिन इस इन्शान की फितरत तो देखिए । ये कुछ देर के लिए मातम मनाता है । लेकिन कुछ भी छन बाद भोजभात के चक्कर मे पड़ जाता है । अंत्येष्टि स्थल से ही शुरू हो जाता है ।इतना ही नही , शवयात्रा में भाग लेने वाले लोग जब अंत्येष्टि चल रही होती है इसी बीच कुछ लोग तो यह पूछ बैठते हैं कि और कितना वक्त लगेगा जलने में । ताकि बगल के होटल में जहां पूरी पकवान बनी होती है उसका मजा उठाऊं ? वाह रे इन्शान , क्या तेरी यही इंसानियत है । इसे देख तो जानवर की आंखे भी शर्म से झुक जाएगी ।
उन्होंने कहा कि इस शर्मनाक परंपरा को किस श्रेणी में रखा जाय , इंसानों की गिरावट को मापने का पैमाना कहां खोजे समझ में नही आता है । उन्होंने इस शर्मनाक परम्परा मृत्युभोज को बंद करने के लिए , समाज मे पोंगा पंडितो द्वारा फैलाये गए अंधविश्वास , स्वर्ग और नर्क का भय को लोगो के जेहन से दूर भगाने के लिए पंडित राहुल सकृत्यायन की पुस्तक तुम्हारी क्षय , अज्ञान का नाम भगवान । खट्टर काका हरिमोहन झा की पुस्तक , डॉ कामेश्वर शर्मा की पुस्तक श्राद्ध पाखंड पढ़ने का आह्वान किया । उन्होंने लोगो को उस पुस्तक के माध्यम से जागरूक करते हुए कहा कहा कि उपर्युक्त सभी पुस्तको के रचयिता ब्राम्हण होते हुए भी ब्राम्हणवाद का विरोध किया है जो आप लोगो के लिए नजीर है । इसे पढ़ने से आपलोगो की आंखे खुल जाएगी।
बेगूसराय खोदावंदपुर संवाददाता नितेश कुमार की रिपोर्ट