मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा-चकेवा भाई और बहन ने  मिलकर बेगूसराय में बड़ी धूमधाम से मनाया

 

डीएनबी भारत डेस्क

मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा-चकेवा भाई और बहन मिलकर बेगूसराय में बड़ी धूमधाम से मनाया। वहीं भाई-बहन के अटूट स्नेह दर्शाने वाले इस लोक पर्व का मतलब शरद ऋतु में मिथिला में प्रवास करने वाले पक्षियों का स्वागत से है।इस दौरान एक महीना तक चलने वाली भाई बहन का अटूट सामा चकवा बड़ी धूमधाम से बेगूसराय के सिमरिया गंगा घाट में अंतिम विदाई दी गई।

इस दौरान उन्होंने बताया है कि एक महीना तक यह पर्व हम लोगों के द्वारा मनाया जाता है। और भाई की लंबी उम्र की कामना की जाती है। उन्होंने बताया है कि आज पूजा करने के बाद गंगा जी में सामा चकेवा को विसर्जन करते है। इस दौरान अद्भुत तरीके से गीत गाकर सामा चकेवा का गंगा जी में समर्थक सेवा का मूर्ति का विसर्जन किया गया।

आपको बताते चले की छठ के दिन से शुरू इस पर्व का समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है। शाम ढ़लते ही मिथिला की ललनाएं चौक-चौराहों पर सामा- चकेवा की डाला के साथ मधुर चुटीले गीतों से 30 दिनों तक यह लोकपर्व मनाती हैं। अपने भाई के लंबे जीवन, धनवान होने की कामना करती हैं।

इस लोक पर्व के मुख्य पात्र सामा चकेवा, सतभैया, चौकीदार, खरलुच भैया, लहू बेचनी, झांसी कुकुर, ढोलकिया, सीमा मामा इत्यादि की मूर्तियां बनाई जाती हैं। किंबदंतीयों के मुताबिक त्रेता युग में चुड़क नामक दुष्ट की चुगली के कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पुत्री साम्बा को शापित कर चकवी पक्षी बना दिया था। उसके बाद साम्बा के प्रति ऋषि चारुबकय शिव की तपस्या कर चकवा पक्षी होने का वरदान प्राप्त किया।

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