डीएनबी भारत डेस्क
मां जगदम्बा स्थान असुरारी में माता की दर्शन, पूजन, अराधना, उपासना,तप,जप, आरती, हवन-यज्ञ, संत सेवा, भंडारा आयोजित करने मात्र से ही भक्तों का सर्व सिद्धि, मनवांछित फल, यश, कृति,वैभव, आयू में वृद्धि, सभी बाधाएं दूर, सभी सिंचित पापों के समूहों का नास और मन का विकार दूर हो जाता है। जिससे मानव समस्त चराचर के लिए पराक्रमी हो जाता है। ऐसा मनोरथ पूर्ण करने वाली है असुरारी वाली मां जगदम्बा।
उक्त मार्मिक कथाएं भक्तों को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध पंडित तीलरथ निवासी मुकेश कुमार मिश्र ने कहा। पंडित श्री मिश्र ने कहा कि यहां मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने के लिए जानी जाती हैं, इसलिए इनका नाम कालरात्रि है। साथ ही ये देवी अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करती हैं। इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। मां दुर्गा की सातवीं स्वरूप मां कालरात्रि तीन नेत्रों वाली देवी हैं। वहीं पपरौर निवासी पंडित विष्णु झा ने कहा कि मां कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला है। मां की श्वास से आग निकलती है। मां के बाल बड़े और बिखरे हुए हैं।
माता के गले में पड़ी माला बिजली की तरह चमकती है।मां कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल व गोल हैं, जिनमें से बिजली की भांति किरणें निकलती रहती हैं, इनकी नासिका से श्वास तथा नि:श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। मां का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है। वहीं एक देवी भक्त दिक्षित वैष्णव संध्या कुमारी ने कहीं की सभी देवी देवता मिलकर भगवान शंकर के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। तब महादेव ने मां पार्वती से असुरों का अंत कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। इसके बाद माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया माता के सामने असली चुनौती राक्षस रक्तबीज ने पेश की।
उन्होंने माता के सप्तमी व्रत के दौरान ध्यान मंत्रों का उच्चारण करते हुए कहा कि कालरात्रिमर्हारात्रिर्मोहरात्रिश्च दारूणा। त्वं श्रीस्त्वमीश्वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा।मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुर से जीवन की रक्षा हेतु भगवान विष्णु को निंद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने इसी मंत्र से मां की स्तुति की थी। यह देवी काल रात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं। इन्होंने ही सृष्टि को एक-दूसरे से जोड़ रखा है। देवी का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है।
वहीं महर्षि गुरु विश्वामित्र के तपोस्थली और संत सनातन धर्म के सबसे आदर्श पुरुष पुरूषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी के ज्ञानस्थली, गौतम ऋषि नारी माता अहिल्या का पौराणिक तपो भूमि बक्सर के पंडित त्रिदंडी स्वामी के शिष्य माता का अराधक ज्ञानेश्वर कुमार ने कहा कि कहा की दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं। इस दिन मां की आंखें खुलती हैं। षष्ठी पूजा के दिन जिस विल्व को आमंत्रित किया जाता है उसे आज तोड़कर लाया जाता है और उससे मां की आंखें बनती हैं।
दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है। इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाजा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं। वहीं चेती दूर्गा को लेकर यहां तैयारी का अंतिम स्वरूप दिया जा रहा है। माता की प्रतिमा बरौनी फुलवरिया कैरिबारी के कलाकारों द्वारा बनाया गया है। प्रतिदिन यहां संध्या महाआरती में असुरारी, असुरारी गाछी टोला, पिपरा देवस, हाजीपुर,हवासपूर , पपरौर, बथौली, नगर परिषद बीहट सहित आस-पास व सुदूरवर्ती क्षेत्रों से भक्त आकर आकर्षक महाआरती में शामिल होते हैं। मौके पर पर पूजा समिति सहित समस्त ग्रामवासी याचक बनकर माता के भक्तों एवं माता की सेवा करने में तल्लीन रहते हैं।
यहां महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती है। ताकि माता के दरबार में आए श्रद्धालु भक्तगणों को दर्शन,पूजन,अराधना, उपासना,जप -तप, दृढ़ नेम, व्रत,आरती, हवन-यज्ञ,संत सेवा, भंडारा आयोजित करने में किसी भी प्रकार से कोई कठिनाई नहीं हो। यहां आने के लिए तीन प्रमुख मार्ग हैं। जिसमें एक अवध तिरहुत सड़क पर असुरारी स्कूल के सामने दक्षिण दिशा में जाने वाली प्रमुख ग्रामीण सड़क तथा जीरोमाइल,बीहट होल्ट, असुरारी गांव होते हुए ग्राम कचहरी के रास्ते आने का सुलभ मार्ग है। और एक मार्ग एन एच 28 पर मां शैल सर्विस पैट्रोल पंप के बगल से निकली मार्ग भी माता जगदम्बा के दरबार तक आती है।
बेगूसराय बीहट संवाददाता धरमवीर कुमार की रिपोर्ट