डीएनबी भारत डेस्क
करवा चौथ का व्रत आज पूरे देश में में परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। सुहागन महिलाएं अपने पति के दीर्घ आयु की कामना को लेकर निर्जला उपवास रख रही है। संध्या समय चलनी से अपने पति के चेहरे एवं चांद को देखते हुए व्रत का निस्तार करेगी। इस व्रत को लेकर खोदाबंदपुर बाजार में चलनी, मिट्टी का करवा, दीप एवं सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री की खरीदारी को लेकर भारी भीड़ है। मिठाई एवं पकवानों की भी खरीदारी हो रही है।
भारत में अति प्राचीन काल से इस व्रत का प्रचलन है। विशेष कर मिथिलांचल में इसका विशेष महत्व है। विद्वान पंडित चंदन ठाकुर कहते हैं यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष को चंद्रोदय चतुर्थी में किया जाता है। सुहागन स्त्रियां करवा चौथ को बहुत ही श्रेष्ठ व्रत मानती है। स्त्रियां इस दिन चावल पीसकर दीवार पर करवा चौथ बनती है अथवा मिट्टी का करवा खरीद कर लाती हैं जिसे वर कहते हैं।
करवा चौथ में पति के अनेक रूप बनाए जाते हैं तथा सुहाग की वस्तुओं के साथ-साथ दूध देने वाली गाय, करवा बेचने वाली कुम्हारन महावर लगाने वाले, चूड़ी पहनने पहनने वाली मनिहारन, सात भाई और उनकी कलूटी बहन, सूर्य, चंद्रमा, गौरा पार्वती आदि देवी देवताओं के चित्र बनाए जाते हैं। सुहागिन इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और रात्रि में जब चंद्रमा निकल आते हैं तब उसे अर्घ्य देकर भोजन करती हैं।
पीली मिट्टी की गौरा बनाने का भी प्रावधान है, जिसकी पूजा करती है। इसको लेकर संपूर्ण प्रखंड क्षेत्र में चहल-पहल देखा जा रहा है। विशेष रूप से सुहागन महिलाओं में इस पर्व को लेकर विशेष उत्साह है।